इंडिया गठबंधन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी की है। इसके लिए याचिका तैयार कर ली गई है और कई सांसदों ने इस पर हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने वीएचपी के कार्यक्रम में शिरकत की थी और विवादास्पद भाषण दिया था। तो सवाल है कि क्या जज को अब इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लें कि जस्टिस शेखर कुमार यादव चर्चा में क्यों हैं। पिछले हफ़्ते विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने एक विवादास्पद टिप्पणी की थी। रविवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में वीएचपी के कानूनी प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर कुमार यादव ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि यह हिंदुस्तान है और यह देश बहुमत की इच्छा के अनुसार चलेगा। जज ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विवादास्पद बयान दिया और कहा कि बहुसंख्यकों का कल्याण और खुशी दूसरों की इच्छाओं से ऊपर है।
उन्होंने कहा कि हिंदू धर्मग्रंथों जैसे शास्त्रों और वेदों में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, लेकिन एक खास समुदाय के लोग अभी भी कई पत्नियाँ रखने, हलाला करने या तीन तलाक का अधिकार मांगते हैं।
उन्होंने कहा, 'आप उस महिला का अपमान नहीं कर सकते जिसे हमारे शास्त्रों और वेदों में देवी के रूप में मान्यता दी गई है। आप चार पत्नियाँ रखने, हलाला करने या तीन तलाक का अधिकार नहीं मांग सकते। आप कहते हैं कि हमें 'तीन तलाक' कहने का अधिकार है और महिलाओं को भरण-पोषण नहीं देना है। यह अधिकार काम नहीं करेगा।'
जज ने कई विवादास्पद बयान दिए, जिसमें व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मुसलमानों के खिलाफ आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द 'कठमुल्ला' का इस्तेमाल करना भी शामिल है। चरमपंथियों को 'कठमुल्ला' कहते हुए उन्होंने कहा कि देश को उनके प्रति सतर्क रहना चाहिए। उन्होंने कहा, 'लेकिन ये जो कठमुल्ला है जो…ये सही शब्द नहीं है… लेकिन कहने में परहेज नहीं है क्योंकि वो देश के लिए बुरा है… देश के लिए घातक है, खिलाफ़ है, जनता को भड़काने वाले लोग हैं… देश आगे ना बढ़े इस प्रकार के लोग हैं… उनसे सावधान रहने की ज़रूरत है।'
जज के इस बयान को लेकर राज्यसभा में इंडिया गठबंधन की पार्टियाँ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस देने की तैयारी कर रही हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि विभिन्न दलों के 36 विपक्षी सांसदों ने पहले ही याचिका पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस याचिका की शुरुआत निर्दलीय राज्यसभा सांसद और वकील कपिल सिब्बल ने की है। विपक्ष गुरुवार को और हस्ताक्षर जुटाने के बाद इसे आगे बढ़ा सकता है।
इंडिया गठबंधन के राज्यसभा में 85 सांसद हैं। रिपोर्ट के अनुसार जिन लोगों ने पहले ही इस पर हस्ताक्षर कर दिए हैं, उनमें कांग्रेस के दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश और विवेक तन्खा, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले और सागरिका घोष, राजद के मनोज कुमार झा, समाजवादी पार्टी के जावेद अली खान, सीपीआई (एम) के जॉन ब्रिटास और सीपीआई के संदोष कुमार शामिल हैं।
नोटिस में जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है। न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के अनुसार, यदि किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत लोकसभा में पेश की जाती है तो उसे कम से कम 100 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से पेश किया जाना चाहिए और यदि राज्यसभा में पेश की जाती है तो 50 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव के माध्यम से पेश किया जाना चाहिए।
सांसदों द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने के बाद सदन का पीठासीन अधिकारी इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। यदि स्वीकार किया जाता है, तो शिकायत की जांच करने और यह निर्धारित करने के लिए दो न्यायाधीशों और एक न्यायविद वाली तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है कि क्या यह महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए उपयुक्त मामला है।
समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक जज और हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं। यदि शिकायत उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध है, या यदि शिकायत सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश के विरुद्ध है, तो सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीश होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में कहा गया है कि महाभियोग के प्रस्ताव को संबंधित सदन की कुल सदस्यता के बहुमत और सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए।
दोनों सदनों में एनडीए के बहुमत को देखते हुए महाभियोग का प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में पारित होने की संभावना नहीं है।
अब तक उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर महाभियोग चलाने के चार प्रयास और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के दो प्रयास हुए हैं, जिनमें से अंतिम प्रयास 2018 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध किया गया था। इनमें से कोई भी प्रस्ताव पूरी प्रक्रिया में पारित नहीं हो सका।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)