
आप्रवास विधेयक 2025: संविधान विरोधी या देश की ज़रूरत?
आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक, 2025 पर हंगामा क्यों हो रहा है? विपक्ष इसका विरोध क्यों कर रहा है, क्या इस विधेयक में संविधान विरोधी प्रावधान हैं? क्या यह विधेयक भी सीएए और एनआरसी की तरह विवाद का बड़ा मुद्दा बनेगा?
दरअसल, केंद्र ने लोकसभा में 'आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक, 2025' पेश किया है। इसका उद्देश्य भारत में प्रवेश करने और या बाहर जाने वालों के लिए पासपोर्ट या अन्य यात्रा दस्तावेज़ों और विदेशी नागरिकों से जुड़े मामलों को नियंत्रित करना है। हालाँकि, इस विधेयक को पेश करते ही विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी और इसे संविधान का उल्लंघन क़रार दिया। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय जैसे नेताओं ने इस विधेयक के ख़िलाफ़ कड़ा विरोध जताया।
'आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक, 2025' को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में पेश किया। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य भारत में आप्रवासन प्रक्रिया को मज़बूत करना और विदेशी नागरिकों के प्रवेश, ठहरने और वापस जाने को नियंत्रित करने के लिए सरकार को अतिरिक्त अधिकार देना है। सरकार का तर्क है कि यह विधेयक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी है। गृह राज्य मंत्री ने कहा कि यह संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है और किसी भी देश का यह संप्रभु अधिकार है कि वह अपने क्षेत्र में विदेशियों के प्रवेश को नियंत्रित करे। उन्होंने यह भी जोड़ा कि वैश्विक स्तर पर भी आप्रवासन अधिकारियों को विदेशियों के प्रवेश पर निर्णय लेने का अधिकार होता है, और इसमें अपील का कोई प्रावधान आमतौर पर नहीं होता।
विपक्ष का विरोध- संविधान उल्लंघन का आरोप
विपक्ष ने इस विधेयक को संविधान के मूलभूत अधिकारों के ख़िलाफ़ बताया। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि यह विधेयक संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है, खासकर वे जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता की गारंटी देते हैं। उन्होंने कहा कि यह विधेयक सरकार को अनियंत्रित शक्तियां देता है, जिससे नागरिकों के अधिकारों का हनन हो सकता है। तिवारी ने मांग की कि इसे या तो वापस लिया जाए या संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी को भेजा जाए ताकि इसकी गहन जाँच हो सके।
तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने भी इस विधेयक का विरोध किया और इसे 'लोकतंत्र विरोधी' क़रार दिया। विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक अस्पष्ट है और इसके प्रावधानों का दुरुपयोग सरकार द्वारा असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है।
विपक्षी नेता का यह भी आरोप है कि विधेयक को जल्दबाज़ी में पेश किया गया और इसकी प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।
विरोध के पीछे के कारण
विपक्ष के विरोध के कई कारण हैं, जो न केवल इस विधेयक की सामग्री से जुड़े हैं बल्कि मौजूदा राजनीतिक माहौल से भी प्रभावित हैं-
अधिकारों पर अतिक्रमण?
विपक्ष को डर है कि यह विधेयक सरकार को असीमित शक्तियां दे सकता है, जिससे विदेशी नागरिकों के साथ-साथ भारतीय नागरिकों के अधिकार भी प्रभावित हो सकते हैं। खासकर, यह संदेह है कि इसका इस्तेमाल सरकार विरोधी आवाजों को चुप कराने के लिए हो सकता है।
प्रक्रिया में गड़बड़ी?
विपक्ष का कहना है कि विधेयक को पेश करने से पहले पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं किया गया। उनका आरोप है कि सरकार बहुमत के दम पर संसदीय प्रक्रिया को कमजोर कर रही है।
राजनीतिक मुद्दा?
हाल के वर्षों में नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर विपक्ष और सरकार के बीच तनाव रहा है। इस विधेयक को विपक्ष उसी कड़ी का हिस्सा मान रहा है, जिसे वह अल्पसंख्यकों और असहमति के ख़िलाफ़ एक हथियार के रूप में देखता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता:
सरकार जहां इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ज़रूरी बता रही है, वहीं विपक्ष का मानना है कि यह बहाना व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचलने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
क्या यह वास्तव में संविधान का उल्लंघन है?
यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि यह विधेयक संविधान का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसके प्रावधानों की संवैधानिकता की जांच अदालत में ही हो सकती है। हालांकि, विपक्ष के कुछ तर्क विचारणीय हैं। यदि विधेयक में स्पष्ट दिशा-निर्देशों और जवाबदेही के प्रावधानों की कमी है, तो इसके दुरुपयोग की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। दूसरी ओर, सरकार का यह तर्क भी मजबूत है कि आप्रवासन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर देश की संप्रभुता को प्राथमिकता देना ज़रूरी है।
पिछले अनुभवों को देखें तो एनआईए संशोधन विधेयक और यूएपीए जैसे कानूनों पर भी विपक्ष ने इसी तरह के आरोप लगाए थे। इन मामलों में भी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया था, लेकिन विपक्ष ने इसे अधिकारों के हनन से जोड़ा।
यह पैटर्न दिखाता है कि मौजूदा सरकार और विपक्ष के बीच विश्वास की कमी एक बड़ा मुद्दा है, जो हर विधेयक पर बहस को राजनीतिक रंग दे देता है।
'आप्रवास और विदेशी विषयक विधेयक, 2025' को लेकर लोकसभा में मचा हंगामा केवल इस विधेयक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकार और विपक्ष के बीच गहरे वैचारिक मतभेदों को उजागर करता है। जहां सरकार इसे सुरक्षा और संप्रभुता का मसला बता रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों पर हमले के रूप में देख रहा है। इस विधेयक का भविष्य अब संसद में होने वाली चर्चा और संभावित संशोधनों पर निर्भर करेगा। यदि इसे जल्दबाजी में पारित किया गया, तो इसको निश्चित रूप से अदालतों में चुनौती दी जाएगी, और तब संविधान की कसौटी पर इसकी असली परीक्षा होगी।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार विपक्ष की चिंताओं को दूर करने के लिए इसमें बदलाव करती है या अपने बहुमत के दम पर इसे लागू कर देती है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)