नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक यानी बीते छह साल में लोगों की स्थिति बदतर हुई है, उनका जीवन स्तर घटा है। स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और दूसरे मामलों में लोगों का जीवन स्तर नीचे आया है।
मानव विकास सूचकांक 2014 और मानव विकास सूचकांक 2019 की तुलना करने से यह बात साफ हो जाती है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (युनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम यानी यूएनडीपी) की रिपोर्टों की तुलना से यह स्पष्ट हो जाता है।
हालत बदतर क्यों
यूएनडीपी के मानव विकास सूचकांक 2014 में भारत ने पिछले साल की तुलना में पाँच अंकों की छलांग लगाई थी और वह 135 से 130 पर पहुँच गया था। सूचकांक में उसका योगदान 0.609 था। इस सूची में 188 देश शामिल थे।
भारत में बहुत सारे बच्चे स्कूल बीच में ही छोड़ने को मजबूर हैं। unicef.org
बुधवार को जारी यूएनडीपी मानव विकास सूचकांक 2019 में भारत बीते साल की तुलना में 2 स्थान नीचे फिसल गया और 131वें स्थान पर पहुँच गया। इस बार की सूची में 189 देश शामिल हैं।
सूचकांक में भारत की स्थिति बदतर होने का कारण साफ दिखता है। बीते साल भर में सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) में कमी आई है। साल 2018 में भारत की जीएनआई 6,681 डॉलर थी जो 2019 में गिर कर 6,829 डॉलर पर आ गई।
131वाँ स्थान
यूएनडीपी रिपोर्ट में कहा गया है, साल 2019 के लिए मानव विकास सूचकांक में भारत का योगदान 0.645 है, यह मध्यम श्रेणी में है और 189 देशों में इसका स्थान 131 है।संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट पर नज़र डालने से भारत की स्थिति साफ होती है। इसमें कहा गया है,
भारत में 27.9 प्रतिशत आबादी यानी 37 करोड़ 74 लाख 92,000 ग़रीबी रेखा से नीचे हैं। इसके अलावा 19.3 प्रतिशत लोग यानी 26 करोड़ 5 लाख 96 हज़ार ऐसे हैं, जो ग़रीबी के कगार पर हैं और थोड़ी सी स्थिति बिगड़ने पर गरीब हो जाएंगे।
श्रीलंका से बदतर
यह चिंता की बात इसलिए है कि भारत को बांग्लादेश, भूटान, म्याँमार, नेपाल, कम्बोडिया, कीनिया और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ एक श्रेणी में रखा गया है। यह श्रीलंका (72वां स्थान), थाईलैंड (79वां), चीन (85वां), इंडोनेशिया (107वां) और वियतनाम (117वां) जैसे देशों से भी नीचे है।
भारत में बच्चों में कुपोषण है, उनका विकास रुक जाता है। unicef.org
रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि भारत, कम्बोडिया और थाईलैंड जैसे देशों में बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं और उनका विकास रुक जाता है।
मानव विकास सूचकांक में सबसे ऊपर नॉर्वे है।
लाइफ़ एक्सपेक्टेन्सी रेट
भारत में जीवन जीने की उम्मीद (लाइफ एक्सपेक्टेन्सी रेट) कई पड़ोसी देशों से नीचे है। भारत में यह 69.7 साल है जबकि एशिया का औसत 69.9 साल है। पाकिस्तान में लाइफ़ एक्सपेक्टेन्सी रेट 67.3 साल है जबकि बांग्लादेश में यह 72.6 साल है।लेकिन 1990 और 2019 के बीच भारत में यह बढी है। जन्म के समय 11.8 साल तक के जीवन की उम्मीद की जाती है। इसी तरह बच्चों के स्कूल में समय बिताने की मियाद भी बढ़ रही है। पहले भारत में बच्चे 3.5 साल स्कूल में बिताते थे, अब 4.5 साल बिताते हैं। इसी तरह 1990 और 2019 के बीच सूचकांक में भारत का योगदान 50.3 प्रतिशत बढ़ा है।