ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी मामले में वहां मिली अंडाकार वस्तु की कॉर्बन डेटिंग को लेकर हिन्दू पक्ष के वकीलों में आपसी विवाद हो गया है। हिन्दू पक्ष ने इसे शिवलिंग बताया है, जबकि मुस्लिम पक्ष ने इसे वजूखाने में लगा फव्वारा (फाउंटेन) बताया है। हिन्दू वकीलों का एक पक्ष इसकी कॉर्बन डेटिंग के पक्ष में है, दूसरा पक्ष इसके खिलाफ है। अदालत पहले ही इस मामले में मुस्लिम पक्ष को नोटिस जारी कर चुका है, जिस पर 29 सितंबर को सुनवाई हो सकती है।
टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पांच महिला याचिकाकर्ताओं में से एक ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर पाए जाने वाले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग का विरोध किया है। याचिकाकर्ता राखी सिंह ने कथित 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग का विरोध करते हुए कहा है कि यह आदि विश्वेश्वर के शिवलिंग के अस्तित्व पर सवाल उठाने जैसा है। राखी सिंह के वकील और विश्व वैदिक सनातन संघ (वीवीएसएस) के चीफ जितेंद्र सिंह विशन इस संबंध में विरोध की अर्जी लगाने जा रहे हैं। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में इसकी पुष्टि की है।
हालांकि, अन्य चार महिला याचिकाकर्ताओं ने उस वस्तु की कार्बन डेटिंग का समर्थन किया है। वाराणसी जिला अदालत ने उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया था। उसी आधार पर वाराणसी कोर्ट ने मस्जिद इंतेजामिया कमेटी को नोटिस भी जारी किया है। जिसकी सुनवाई 29 सितंबर को हो सकती है। जिसमें राखी सिंह के वकील कॉर्बन डेटिंग का विरोध कर सकते हैं।
दरअसल, कॉर्बन डेटिंग पर हिन्दू पक्षों में मतभेद की वजह कुछ और भी है। जैसा कि इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि याचिकाकर्ता राखी सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील जितेंद्र सिंह विशन को कथित तौर पर लगता है कि उन्होंने यह लड़ाई शुरू की थी, लेकिन वकील हरिशंकर जैन और विष्णु जैन, जो अन्य चार याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनको ज्यादा श्रेय दिया जा रहा है। ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का वीडियो लीक होने पर भी दोनों पक्षों में विवाद हुआ था।
बहरहाल, हिंदू पक्ष ने काफी पहले दावा किया था कि मस्जिद के 'वजुखाना' में एक 'शिवलिंग' पाया गया है। मुस्लिम याचिकाकर्ताओं ने इस अंडाकार वस्तु को 'वजूखाना' का फव्वारा सिस्टम बताते हुए दावे का खंडन किया था।
पांचों महिला याचिकाकर्ताओं ने मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित 'हिंदू देवताओं' की मूर्तियों की पूजा करने की अनुमति मांगी थी।
क्या है कॉर्बन डेटिंग
इस बहस से पहले कि कोई कॉर्बन डेटिंग किसी कथित शिवलिंग की उम्र कैसे तय कर सकती है, यह जानना महत्वपूर्ण है कि कॉर्बन डेटिंग का वास्तव में क्या अर्थ है। रेडियोकॉर्बन डेटिंग या कॉर्बन डेटिंग पुरातत्व क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली एक विधि है। जिससे उस भवन या उसकी वस्तुओं की उम्र के बारे में पता लगाया जाता है।
कार्बन डेटिंग प्रक्रिया एक ऐसा तरीका है जो कॉर्बन के गुणों का इस्तेमाल करके कॉर्बनिक पदार्थ युक्त किसी वस्तु की आयु तय करने में मदद करती है। कॉर्बन डेटिंग 1940 के दौर में शुरू हुई थी। दुनिया भर में इसका व्यापक इस्तेमाल होता है।
दरअसल, सभी जीवित चीजें अपने जीवन काल में कॉर्बन को जमा करती हैं और जब यह मर जाती है, तो कार्बन जमना बंद हो जाता है। इस प्रकार, उस अंडाकार वस्तु को डेट करने वाले विशेषज्ञ पत्थर की सतह से एक नमूना लेंगे और देखेंगे कि यहां कितना कॉर्बन -14 जमा हुआ है, जिससे इसकी उम्र तय होगी।
ज्ञानवापी के वजूखाने में जिस अंडाकार वस्तु को पाया गया है, उस तरह की चीज तमाम ऐसी ऐतिहासिक स्थलों पर लगी हुई हैं, जहां पानी का इस्तेमाल होता है। इंडिया गेट पर लगे फव्वारे, ताजमहल एरिया में लगे फव्वारे उसी अंडाकार वस्तु जैसे हैं। मुगलकाल की कुछ ऐतिहासिक बिल्डिंगों के हमाम में भी ऐसी अंडाकार वस्तु पाई गई है।