किसान आंदोलन के चेहरे इस बार क्यों बदले हुए हैं, सब कुछ पंजाब के कंट्रोल में क्यों

09:39 am Feb 13, 2024 | सत्य ब्यूरो

दिसंबर 2021 में किसान आंदोलन समाप्त होने के बाद, संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के सदस्यों के भीतर मतभेद उभर आए, जिसके कारण एसकेएम (गैर-राजनीतिक) का निर्माण हुआ, जो बाद में किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) में बदल गया। जहां केएमएम 13 फरवरी को 'दिल्ली चलो' का आयोजन कर रहा है, वहीं एसकेएम 16 फरवरी को 'भारत बंद' का आयोजन कर रहा है।

किसान आंदोलन के लिए पंजाब पहले से मशहूर है। पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन 1907 में अंग्रेजों के खिलाफ पंजाब के किसानों ने शुरू किया था। इसका नेतृत्व शहीद-ए-आजम भगत सिंह के दादा सरदार अजीत सिंह ने किया था। अजीत सिंह के साथ उस समय हर समुदाय के लोग शामिल थे। इसकी शुरुआत लायलपुर से हुई थी। लायलपुर अब पाकिस्तान में है। प्रसिद्ध गायक बांके दयाल ने 3 मार्च 1907 को लायलपुर की रैली में इस पर एक गीत भी गाया था। उसके बाद पगड़ी संभाल जट्टा एक सशक्त नारा बन गया।


किसान आंदोलन के नेताओं में लोकप्रियता हासिल करने के बाद तमाम तरह की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जाग जाती है। पिछले आंदोलन में देखा गया था कि कुछ किसान नेताओं ने पंजाब में अलग राजनीतिक पार्टी बनाई और चुनाव लड़ने निकल पड़े। इसे बाकी किसान नेताओं ने पसंद नहीं किया। इसी तरह गुरनाम सिंह चढ़ूनी और राकेश टिकैत भी अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के जरिए सामने आ गए। जिसमें राकेश टिकैत के फाइव स्टार होटल में आराम फरमाते हुए कई फोटो पिछले आंदोलन के दौरान ही वायरल हो गए थे। इसलिए इस बार पंजाब के किसान नेताओं ने पूरा नेतृत्व, कमांड और कंट्रोल अपने पास रखा है। हालांकि सोशल मीडिया पर तमाम तत्व इन लोगों के खिलाफ दुष्प्रचार करने में जुटे हुए हैं।

पंजाब में फरीदकोट के दल्लेवाल गांव से ताल्लुक रखने वाले भारती किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) के प्रदेश अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल की क्षेत्र के किसान वर्ग में अच्छी पकड़ है। केएमएम समन्वयक दल्लेवाल को सितंबर 2022 में लगातार तीसरी बार संघ का अध्यक्ष चुना गया था।

इसी तरह एक प्रभावशाली वक्ता के रूप में पहचान बनाने वाले केएमएससी के महासचिव सरवन सिंह पंधेर ने धीरे-धीरे खुद को माझा में किसान आंदोलन के एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर लिया है। वो एक अमृतधारी सिख हैं, जो अपनी सच्चाई, ईमानदारी और मजबूत इरादों के लिए जाने जाते हैं। पंधेर ने आनंदपुर साहिब के सिख मिशनरी कॉलेज से पढ़ाई की है। वह लंबे समय तक बीकेयू (उगराहां) की जिला इकाई के अध्यक्ष भी रहे।

बठिंडा से बीकेयू (क्रांतिकारी) के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फुल उन 25 किसानों में शामिल थे, जिन्होंने आंदोलन समाप्त होने से पहले केंद्र के साथ कृषि कानूनों पर चर्चा की थी। कृषि कानूनों का जबरदस्त विरोध करने की वजह से उन पर 2009 में पंजाब सरकार ने यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया था। अकाली-भाजपा सरकार ने उस समय उन पर माओवादियों के साथ संबंध का आरोप लगाया था। हालांकि उसका वो बार-बार खंडन करते रहे हैं। 

एसकेएम (गैर-राजनीतिक) ने दावा किया है कि उसे राष्ट्रीय स्तर पर कम से कम 200 संगठनों का समर्थन प्राप्त है, जिनमें से 16 पंजाब से हैं।

पंजाब से किसान आंदोलन के पुराने चेहरे

बीकेयू (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल (80) साल भर चले किसानों के विरोध प्रदर्शन में प्रमुख चेहरों में से एक थे, जिसने केंद्र को तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया था। बाद में, राजेवाल ने 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए संयुक्त समाज मोर्चा (एसएसएम) का गठन किया, जिसमें वह भारी अंतर से हार गए।

बीकेयू (उगराहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां ने करीब डेढ़ साल तक सेना में सेवा की। बाद में, वह 1979 में नौजवान भारत सभा में शामिल हो गए। 1984 में, वह भूपिंदर सिंह मान की अध्यक्षता में बीकेयू में शामिल हो गए। 1989 में विभाजन के बाद, वह बीकेयू (लाखोवाल) और बाद में बीकेयू (सिद्धूपुर) में शामिल हो गए। उन्होंने बीकेयू (उगराहां) की स्थापना की, जिसकी राज्य में लगभग 2,000 इकाइयाँ हैं।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पेशे से वकील, अखिल भारतीय किसान महासंघ की राज्य इकाई के अध्यक्ष प्रेम सिंह भंगू अपने छात्र जीवन से ही नागरिक अधिकारों के आंदोलन से जुड़े हुए हैं। वह 1990 के दशक के दौरान स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष थे।

इस बार किसान आंदोलन में प्रमुख किसान संगठनों में बीकेयू (राजेवाल), बीकेयू (कादियान), कीर्ति किसान यूनियन, आजाद किसान संघर्ष समिति, पंजाब किसान यूनियन, कीर्ति किसान यूनियन (हरदेव), जम्हूरी किसान सभा, भारतीय किसान संघ, कीर्ति किसान मोर्चा रोपड़, दोआबा किसान संघर्ष समिति, कौमी किसान यूनियन और किसान समिति (दोआबा) भी शामिल हैं।