मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व जज रोहित आर्य अपनी रिटायरमेंट के तीन महीने बाद ही उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो गए। जज रहने के दौरान कई फैसलों को लेकर उन्होंने सुर्खियां बटोरी थीं। भाजपा के नेता, कार्यकर्ता, मंत्री, विधायक, सांसद उनके फैसले से बहुत खुश होते थे और उनके फैसलों पर बयान भी देते थे।
मोदी सरकार की तारीफ करते हुए एक सेमिनार को संबोधित करते हुए जस्टिस आर्य ने कहा कि दंड संहिता को न्याय संहिता में बदलना मौजूदा सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उन्होंने कहा “हम इसके लिए केंद्र सरकार के आभारी हैं। इससे आने वाले समय में जीवन बेहतर होगा क्योंकि ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीयों पर दंड संहिता लागू की गई थी और उन्हें दंडित करने के इरादे से लागू किया गया था। हमारे देश में न्याय की भावना रामराज्य और महाभारत काल में भी थी। अंग्रेज हमारी संस्कृति और आध्यात्मिकता से हिल गए थे, इसलिए उन्होंने शिक्षा पर हमला करते हुए धीरे-धीरे संस्कृत को खत्म कर दिया और अंग्रेजी को बढ़ावा दिया।''
1984 में अपना कानूनी करियर शुरू करने वाले आर्य को 26 अगस्त 2003 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था। उनके पास सिविल, मध्यस्थता, प्रशासनिक, सेवा, श्रम और टैक्स कानूनों में लगभग तीन दशकों का कानूनी अनुभव है। अपने पूरे करियर में आर्य कई प्रमुख पदों पर रहे। उन्हें 2007 और 2013 के बीच सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पैनल वकील के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और उन्होंने 1999 से 2012 तक मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में आयकर विभाग के स्थायी वकील के रूप में भी काम किया था। साथ ही, वह वरिष्ठ वकील भी थे। उन्हें 12 सितंबर, 2013 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया और 26 मार्च, 2015 को स्थायी जज बने। अपने कार्यकाल के दौरान, आर्य ने कई मामलों की अध्यक्षता की, जिन्होंने सुर्खियाँ बटोरीं।
2021 में, उन्होंने स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और नलिन यादव को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिन पर इंदौर में एक शो के दौरान धार्मिक भावनाओं को कथित तौर पर आहत करने और कोविड -19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने का आरोप था। उन्होंने कहा कि "एकत्रित किए गए साक्ष्य जानबूझकर इरादे से भारत के नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने को दर्शाते हैं"। हालांकि बाद में उनके आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मुनव्वर फारुकी को जमानत दे दी थी।
ऐसे ही एक अन्य मामले में, जो एक साल पहले सुर्खियों में आया था, आर्य ने एक महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के आरोपी एक व्यक्ति को इस शर्त पर जमानत दी थी कि वह रक्षा बंधन के दिन शिकायतकर्ता के सामने खुद उपस्थित होगा और अपनी कलाई पर राखी बंधवाएगा। आरोपी को यह वादा करने का भी निर्देश दिया गया कि वह शिकायतकर्ता की "रक्षा" करेगा।
इस फैसले की तीखी आलोचना हुई और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया, जिसने महिलाओं के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों में जमानत याचिकाओं से निपटने के लिए निचली अदालतों को निर्देश भी जारी किए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों को महिलाओं के बारे में बोलने से पहले सोचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निचली अदालतों को "महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं, विनम्र और आज्ञाकारी होनी चाहिए, अच्छी महिलाएं यौन रूप से पवित्र होती हैं, जैसी अन्य रूढ़िवादी राय व्यक्त करने से बचना चाहिए"।