पूर्व निदेशक आलोक वर्मा का यह कहना कि उन्होंने सीबीआई की विश्वसनीयता को बचाए रखने की कोशिश की हालांकि कुछ लोगों ने इसे बर्बाद करने की कोशिशें कीं, केंद्र सरकार के कामकाज पर कई सवाल खड़े करता है। गुरुवार की शाम तबादला किए जाने के बाद उन्होंने कहा कि उन्होंने संस्थान की सच्चाई बचाए रखने की भरपूर कोशिश की, हालाँकि कुछ लोग इसे बर्बाद करने पर तुले हुए थे। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, पर उन्होंने यह बात तब कही थी जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट से पद पर बहाल करने के बाद भी केंद्र सरकार ने तबादला कर कहीं और भेजने का फ़रमान जारी कर दिया था।
उन्होंने कहा, 'यह दुखद है कि मेरा तबादला ऐसे आरोपों के आधार पर किया गया जो झूठ, बग़ैर किसी साक्ष्य के और ग़ैर ज़िम्मेदाराना तरीके से उस आदमी से कही गई थी जो मुझसे दुश्मनी रखता था।' ग़ौरतलब है कि उनके ख़िलाफ़ सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने आरोप लगाए थे। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'सीबीआई देश की प्रमुख जाँच एजंसी है जो सार्वजनिक संस्थानों में ऊँची जगहों पर भ्रष्टाचार की जाँच करती है, ऐसे में इसकी आज़ादी बचाए रखनी चाहिए। मैने इसकी सच्चाई बनाए रखने की कोशिश की, जबकि इसे नष्ट करने की कोशिशें की जा रही थीं।'
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सीबीआई के पूर्व निदेशक ने कहा, 'मेरा तबादला उस कमिटी के आदेश पर किया गया, जिसे सीबीआई निदेशक के रूप में मेरे भविष्य के कामकाज पर फ़ैसला करना था। मैंने हमेशा संस्थान की विश्सनीयता बचाए रखने की कोशिश की है और यदि मुझे कहा गया तो भविष्य में भी करूंगा।'
केंद्रीय जाँच ब्यूरो के दो सर्वोच्च पदों पर बैठे लोगों के बीच चली लड़ाई के सड़क पर आने और उसमें नरेंद्र मोदी सरकार के हस्तक्षेप करने के बाद सरकार की काफ़ी किरकिरी हुई थी। प्रधानमंत्री ने निजी रूप से इसमे दिलचस्पी ली थी और दोनों को बुला कर बात की थी। वर्मा को पद से हटाया गया, जिसके ख़िलाफ़ निदेशक अदालत गए। अदालत ने उन्हें अपने पद पर बहाल किया, हालाँकि यह भी कहा कि वे नीतिगत फ़ैसले नहीं ले सकेंगे। लेकिन इसके बाद ही सरकार ने उनका तबादला कर दिया, यानी एक बार फिर पद से हटा दिया। यह सरकार के कामकाज के तरीके पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।