रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने सोमवार को जिस हाइपरसोनिक एयर ब्रीदिंग स्क्रैमजेट तकनीक का परीक्षण किया है इसकी बदौलत भारत आने वाले सालों में ऐसी क्रूज मिसाइलों का विकास कर सकेगा जो आवाज से छह गुना अधिक गति से दुश्मन के ठिकानों पर हमला कर सकेंगी। इस गति से जाने वाली मिसाइल की कोई काट अब तक दुनिया में कहीं नहीं बनी है।
इस स्क्रैमजेट इंजन की बदौलत हाइपरसोनिक तकनीक प्रदर्शक यान (एचएसटीडीवी) का परीक्षण करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है। हालांकि स्क्रैमजेट तकनीक का भारत में पहला प्रदर्शन पिछले साल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान एवं विकास संगठन (इसरो) ने 28 अगस्त को किया था लेकिन डीआरडीओ द्वारा सोमवार को परीक्षण किए गए तकनीक प्रदर्शक यान यानी एचएसटीडीवी का इस्तेमाल सैन्य कार्यों के लिये किया जाएगा। इसका परीक्षण ओडिशा के अब्दुल कलाम परीक्षण स्थल से किया गया।
वायुमंडल से ईंधन बनाएगा स्क्रैमजेट इंजन
इस स्क्रैमजेट इंजन की खासियत यह है कि यह वायुमंडल से अपना ईंधन बनाएगा। इसके लिये यह अपने रॉकेट में वायुमंडल से ऑक्सीजन खींचकर ऑक्सीडाइजर की तरह इस्तेमाल करेगा और इसे अपने अंदर पहले से भरे हाइड्रोजन में मिलाकर इंजन में प्रज्वलन पैदा करेगा। इस तरह इस इंजन में किसी तरह के ठोस या दूसरे तरह के ईंधन को भरने की ज़रूरत नहीं होगी और इस वजह से यान का वजन काफी हलका होगा।
स्क्रैमजेट इंजन तकनीक बैलिस्टिक मिसाइलों और उपग्रहों के प्रक्षेपण में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी। डीआरडीओ के मुताबिक़, हाइपरसोनिक क्रूज यान में पहले से कामयाब सिद्ध किये जा चुके अग्नि मिसाइल के सॉलिड रॉकेट मोटर का इस्तेमाल किया गया है।
इस रॉकेट मोटर ने प्रक्षेपण यान को 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचाया, जहां क्रूज यान प्रक्षेपण यान से अलग हो गया और योजना के तहत यान में वायुमंडल से हवा लेने का रास्ता स्वतः खुल गया। इसके बाद क्रूज यान अपने वांछित उड़ान पथ पर आवाज से छह गुना अधिक यानी दो किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से 20 सेकेंड तक आगे बढ़ा। डीआरडीओ के मुताबिक़, इस तरह स्क्रैमजेट इंजन ने अपनी तकनीकी परिपक्वता का परिचय दिया।
स्क्रैमजेट इंजन तकनीक अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने के तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव तो करेगी ही आवाज से छह गुना अधिक गति वाली क्रूज मिसाइलों के विकास में भी अहम साबित होगी। स्क्रैमजेट इंजन तकनीक का प्रदर्शन अब तक तीन देशों अमेरिका, रूस और चीन ने ही किया है।
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने जिस एचएसटीडीवी का परीक्षण किया गया है, उसमें स्वदेशी स्क्रैमजट इंजन का इस्तेमाल किया गया है। यह तकनीक अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल के विकास में काम आएगी। एचएसटीडीवी के बारे में दावा किया गया है कि इसका विकास स्वतंत्र तौर पर डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने ही किया है।
अब तक जिन तकनीकों के बल पर बैलिस्टिक मिसाइलों को छोड़ा जाता है या अंतरिक्ष में उपग्रह स्थापित किये जाते हैं वे मल्टी स्टेज सैटेलाइट लांच व्हीकल द्वारा छोड़े जाते थे। इस रॉकेट का एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता है यानी कि अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद इनका दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता क्योंकि ये वहां पहुंच कर स्वतः जल जाते हैं।
ये लांच व्हीकल अपने इंजन में थ्रस्ट और प्रज्वलन पैदा करने के लिये ईंधन के अलावा अपने साथ ऑक्सीडाइजर ले जाते हैं। चूंकि इन लांच व्हीकलों का एक बार ही इस्तेमाल किया जा सकता है इसलिये ये खर्चीले होते हैं। इन्हें एक बार के इस्तेमाल के लिये ही डिजाइन किया जाता है। इनकी क्षमता भी कम होती है क्योंकि ये यान अपने कुल वजन के केवल 2-4 प्रतिशत वजन के उपग्रह ही ले जा सकते हैं।
सोमवार को जिस लांच वाहन का इस्तेमाल किया गया, उसके इंजन में करीब 70 प्रतिशत प्रोपेलेंट यानी ऑक्सीडाइजर व ईंधन का मिश्रण होता है। इसलिये वैज्ञानिकों ने अगली पीढ़ी के ऐसे प्रक्षेपण यान को डिजाइन किया है जिसमें ऐसे प्रोपल्सन सिस्टम का इस्तेमाल होगा जो उड़ान के दौरान वायुमंडल से ऑक्सीजन लेकर ऑक्सीडाइजर के तौर पर इस्तेमाल करेगा। इस वजह से यान में भरे जाने वाले प्रोपेलेंट की मात्रा काफी कम हो जाएगी तो यान का वजन कम हो जाएगा और बाकी हिस्से में अधिक वजन वाले और ज़्यादा संख्या में मिसाइलें या उपग्रह रखे जा सकेंगे।
इसके अलावा यदि इन वाहनों को दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाया जाए तो अंतरिक्ष में उपग्रह स्थापित करने की लागत भी काफी कम हो जाएगी। स्क्रैमजेट इंजन के वाहन दोबारा इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं इसलिये इन्हें लांच करने की लागत काफी कम हो जाएगी।
इसरो द्वारा डिजाइन किया गया स्क्रैमजेट इंजन ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन का इस्तेमाल करता है और ऑक्सीडाइजर के तौर पर वायुमंडल से आक्सीजन लेता है जिसके मिश्रण से होने वाले प्रज्वलन की वजह से इंजन को गति मिलती है।
चूंकि स्क्रैमजेट तकनीक हवा से ऑक्सीजन लेकर अपना ईंधन बनाती है इसलिये इसे एयर ब्रीदिंग तकनीक यानी हवा से सांस लेने की प्रक्रिया वाला इंजन कहते हैं। इसरो ने पिछले साल 28 अगस्त को इस इंजन का पहला सफल पायलट परीक्षण किया था। इसकी उड़ान गति आवाज से छह गुना अधिक थी।
इस हाइपरसोनिक तकनीक प्रदर्शक वाहन में जिस एडवांस्ड टेक्नालॉजी व्हीकल (एटीवी) का इस्तेमाल किया गया वह एक सॉलिड रॉकेट बूस्टर था। स्क्रैमजेट इंजन ले जाने वाले एडवांस्ड टेक्नालॉजी व्हीकल का वजन उड़ान भरने के वक्त 3277 किलोग्राम था।