
धनखड़ ने शाह के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव खारिज क्यों किया?
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ कांग्रेस द्वारा लाए गए विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव को खारिज कर दिया। यह प्रस्ताव कांग्रेस के राज्यसभा में मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने मंगलवार को आपदा प्रबंधन विधेयक पर चर्चा के दौरान अमित शाह के एक बयान के जवाब में दिया था। जयराम रमेश ने आरोप लगाया था कि गृहमंत्री ने अपने बयान में कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य सोनिया गांधी पर अपमानजनक टिप्पणी की, जिसमें प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष यानी पीएमएनआरएफ़ के संचालन को लेकर आक्षेप लगाया गया था।
राज्यसभा में आपदा प्रबंधन विधेयक पर बहस के दौरान अमित शाह ने मंगलवार को कहा था कि कांग्रेस शासन के दौरान पीएमएनआरएफ़ पर केवल एक परिवार का नियंत्रण था और इसमें कांग्रेस अध्यक्ष भी शामिल थे। हालाँकि, उन्होंने सोनिया गांधी का नाम सीधे-सीधे नहीं लिया था, लेकिन कांग्रेस ने इसे उनके ख़िलाफ़ अप्रत्यक्ष हमला मानते हुए विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया।
जयराम रमेश ने अपने नोटिस में कहा कि यह बयान सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए पूर्व नियोजित था और यह राज्यसभा के नियम 188 के तहत विशेषाधिकार का उल्लंघन है।
दूसरी ओर, अमित शाह ने अपने बयान को सही ठहराने के लिए 1948 की एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि पीएमएनआरएफ़ की स्थापना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने की थी और इसका प्रबंधन एक समिति द्वारा किया जाता था, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष भी शामिल थे। सभापति धनखड़ ने इस तथ्य को आधार बनाते हुए कहा कि अमित शाह के बयान में कोई प्रक्रियात्मक उल्लंघन नहीं हुआ है और इसे प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज मौजूद हैं।
जगदीप धनखड़ ने नोटिस की जाँच के बाद इसे खारिज करते हुए कहा, 'मैंने इसे ध्यान से पढ़ा है। मुझे लगता है कि इसमें कोई उल्लंघन नहीं हुआ है।' उन्होंने अमित शाह द्वारा पेश किए गए 1948 के दस्तावेज का ज़िक्र किया, जिसमें पीएमएनआरएफ़ के प्रबंधन में कांग्रेस नेतृत्व की भूमिका का ज़िक्र है। धनखड़ ने यह भी कहा कि शाह ने अपने बयान को प्रमाणित करने की सहमति दी थी, जो उन्होंने 25 मार्च को सदन में रखा था। इस आधार पर सभापति ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
हालाँकि, इस बारे में साफ़-साफ़ नहीं कहा गया कि समिति में कांग्रेस अध्यक्ष के शामिल होने का मतलब यह कैसे हो सकता है कि 'पीएमएनआरएफ़ पर केवल एक परिवार का नियंत्रण था'।
कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमला तेज करने की कोशिश की थी। जयराम रमेश ने अपने नोटिस में अमित शाह के बयान को निराधार और अपमानजनक क़रार दिया और इसे सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ व्यक्तिगत आक्षेप बताया। कांग्रेस के विरोधी इसके इस क़दम को सरकार को संसदीय मंच पर घेरने की कोशिश मान रहे हैं। हाल के दिनों में विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने कई मौक़ों पर सरकार के मंत्रियों के बयानों को लेकर विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की कोशिश की है, लेकिन अधिकांश मामलों में ये प्रस्ताव तकनीकी आधार का हवाला देते हुए खारिज कर दिए गए हैं।
इस घटना से यह भी साफ़ है कि कांग्रेस सोनिया गांधी को लेकर किसी भी कथित हमले को लेकर संवेदनशील बनी हुई है। पार्टी इसे अपने प्रमुख नेतृत्व की गरिमा और सम्मान से जोड़कर देखती है। लेकिन सभापति के फ़ैसले ने कांग्रेस की इस कोशिश को झटका दिया है, जिससे विपक्ष की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं।
बीजेपी और सरकार ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन अमित शाह के बयान को सही ठहराने के लिए ऐतिहासिक दस्तावेज़ों का हवाला दिया गया है। एक तरह से यह तर्क देकर यह साबित करने की कोशिक की गई है कि अमित शाह का बयान कांग्रेस शासन के दौरान पीएमएनआरएफ़ और वर्तमान सरकार के PM CARES फंड की तुलना करने का हिस्सा था। पीएम केयर्स को बीजेपी अक्सर अपनी पारदर्शिता और जवाबदेही के दावों के साथ पेश करती है।
यह घटना संसद में सत्ता और विपक्ष के बीच बढ़ते तनाव का एक और उदाहरण है। विशेषाधिकार प्रस्ताव का खारिज होना कांग्रेस के लिए एक नैतिक हार हो सकता है, लेकिन इस विवाद के जल्द ख़त्म होने की संभावना कम है। विपक्ष इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस मुद्दे को कैसे आगे बढ़ाती है और क्या यह संसद के बाहर भी कोई बड़ा राजनीतिक आंदोलन बन पाता है।
(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)