सीवर: 75 मौतें, दोषी सिर्फ़ एक; यानी मौत के मुंह में धकेलो और बच निकलो!
सफ़ाई कर्मी गंदगी में डूब जाते हैं। नीचे उतरते ही साँसें अटक जाती हैं। और कई बार तो जान ही चली जाती है। सीवर लाइन की सफ़ाई करते हुए सफ़ाई कर्मियों की मौत की ख़बरें लगातार आती रही हैं। आरोप लगता है कि ऐसी मौतों की गिनती तक के लिए अभी तक कोई ठोस काम नहीं हुआ है। हालाँकि, जब तब कुछ आँकड़े ज़रूर बताए जाते हैं। और मौत के जो मामले सामने आते हैं और दोषियों को सजा दिलाने की बारी आती है तो मामला और भी नगण्य हो जाता है। यानी मौत के मुँह में धकेलने वालों को सजा न के बराबर हो पाती है। यानी मृतक व उसके परिजनों को न्याय मिलने की बात दूर की कौड़ी साबित होती है।
ऐसे मामलों में क़ानूनी कार्रवाई के मामले बेहद शर्मिंदा करने वाले हैं। द इंडियन एक्सप्रेस ने ऐसे मामलों की पड़ताल की है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले 15 वर्षों में दिल्ली में सीवर की सफाई करते समय कुल 94 लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन इन मौतों में से, जिनके रिकॉर्ड उपलब्ध हैं, केवल एक मामले में ही पीड़ितों को अदालत में दोषसिद्धि के रूप में न्याय मिल पाया है। सूचना के अधिकार यानी आरटीआई अधिनियम के तहत प्राप्त आंकड़ों पर अख़बार ने यह रिपोर्ट दी है।
अंग्रेज़ी अख़बार द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि 75 सीवर मौतों के संबंध में दायर 38 मामलों में से केवल नौ का ही न्यायालय में निपटारा किया गया है। इन नौ मामलों में कुल 19 लोगों की जान गई थी। इनमें से सिर्फ़ एक दोषसिद्धि का मामला बना। बाक़ी दो मामलों में बरी होना, दो मामलों को उच्च न्यायालय द्वारा खारिज किया जाना, एक समझौता का मामला होना, एक क्लोजर रिपोर्ट होना और दो मामलों में दिल्ली पुलिस ने कहा कि आरोपी का पता नहीं लगाया जा सका। आरटीआई से पता चलता है कि पुलिस ने अभी तक बरी होने के आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी है।
2009 के बाद से एकमात्र मामला जिसमें दोषसिद्धि हुई है, वह एक साइट सुपरवाइजर से जुड़ा था। इसे उस वर्ष 15 मार्च को सुंदर नगर के पास एक सीवर के अंदर भेजने से पहले पीड़ित को ऑक्सीजन मास्क और अन्य सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराने के लिए दोषी पाया गया और छह महीने के कारावास की सजा सुनाई गई।
बाकी कई मामले दिल्ली की विभिन्न अदालतों में अधिकारियों और गवाहों के सुनवाई के लिए उपस्थित न होने से लेकर पर्याप्त कर्मचारियों की कमी तक के कारणों से लंबित हैं।
रिपोर्ट के अनुसार कम से कम तीन मामलों में पुलिस ने अदालत को बताया कि वे आरोपी का पता नहीं लगा पा रहे हैं। कम से कम दो मामलों में जांचकर्ता गवाह का पता प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे।
रिपोर्ट के अनुसार कम से कम पांच मामलों में, गवाह या जांच अधिकारी नियमित रूप से अदालत में पेश नहीं हुए। और फिर कम से कम पांच मामले ऐसे हैं जिनमें पुलिस ने अभी तक जांच पूरी नहीं की है और आरोप पत्र दायर नहीं किया गया है। कुछ अन्य मामलों में अदालत ने पाया कि वह कर्मचारियों की कमी के कारण सुनवाई पूरी नहीं कर सकी और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के असहयोग का हवाला दिया।
मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 खतरनाक सफाई पर रोक लगाता है, लेकिन सीवर और सेप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है जब तक कि सुरक्षात्मक गियर दिए गए हों। कानून में 44 प्रकार के सुरक्षात्मक गियर तय किए गए हैं, जिनमें सांस मास्क, गैस मॉनिटर और फुल बॉडी वेडर सूट शामिल हैं। लेकिन इन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ख़तरनाक कामों में सफाई कर्मचारियों को लगाया जाता रहा है।
सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में इससे जुड़े आयोग से कहा था कि वह पता लगाए कि इस तरह की कितनी मौतें हुई हैं। तब आयोग ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र प्रशासित क्षेत्रों से रिपोर्ट देने को कहा। पिछले साल तक सिर्फ़ 13 यानी आधे से भी कम राज्यों ने ही रिपोर्ट दी थी।
सरकार की ओर से अख़बारों की कटिंग और इधर-उधर की सूचनाओं के आधार पर जनवरी, 2017 से लेकर 2018 के आख़िरी के महीनों तक सीवर लाइन में मरने वालों की संख्या 123 बताई गई थी। यह रिपोर्ट नेशनल कमीशन फॉर सफ़ाई कर्मचारी ने तैयार की थी। लेकिन दिक्कत यह है कि इस संख्या का आधार ठोस नहीं है। 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में से सिर्फ़ 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने आँकड़े भेजे थे। तब मैग्सेसे अवार्ड जीतने वाले बेज़वादा विल्सन की संस्था सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन ने सरकार के आँकड़ों को ग़लत बताया था और इसकी संख्या 300 बताई। संस्था ने यह दावा सफ़ाई कर्मचारियों की मौत के आँकड़ों और उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर किया था।
हालाँकि बाद में संसद में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2019 और 2023 के बीच देश भर में कम से कम 377 लोगों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई से हुई।
केंद्र सरकार का तर्क है कि देश भर में मैनुअल स्कैवेंजिंग एक प्रथा के रूप में समाप्त हो गई है और अब जिस चीज को ठीक करने की जरूरत है, वह है सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई।
बहारहाल, सीवर की सफाई के लिए लोगों को काम पर रखने वाले लोग बेखौफ होकर बच निकलते हैं। यह बहुत चिंता का विषय है।
सफाई में लगे सबसे ज़्यादा एससी वर्ग के लोग
बता दें कि हाल में एक सर्वे में यह पता चला था कि सफ़ाई करने वाले लोग कौन हैं। भारत के शहरों और कस्बों में सीवरों और सेप्टिक टैंकों की ख़तरनाक सफ़ाई में लगे लोगों की गणना करने के अपने तरह के पहले प्रयास में, 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 3,000 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों से जुटाए गए सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि अब तक प्रोफाइल किए गए 38,000 श्रमिकों में से 91.9% अनुसूचित जाति यानी एससी, अनुसूचित जनजाति यानी एसटी या अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी समुदायों से हैं। द हिंदू ने यह रिपोर्ट दी है। यदि इनको भी अलग-अलग करके देखा जाए तो श्रमिकों में से 68.9% अनुसूचित जाति, 14.7% अन्य पिछड़ा वर्ग, 8.3% अनुसूचित जनजाति तथा 8% सामान्य वर्ग से थे।