देश में 30 जनवरी को कोरोना पॉजिटिव का पहला मामला आया था और इसके तीन महीने बाद भी देश कोरोना टेस्ट किट सहित अधिकतर दूसरे मेडिकल उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। साफ़ तौर पर कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में देश अभी तक जाँच करने में भी आत्मनिर्भर नहीं हो सका है। वह भी तब जब इस वायरस का अब तक कोई इलाज नहीं ढूँढा जा सका है और इसको फैलने से रोकने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा यही है कि ज़्यादा से ज़्यादा जाँच हो, जल्दी रिपोर्ट आए और पॉजिटिव आए लोगों को अलग-थलग रखा जाए। लेकिन यदि ऐसा नहीं होगा तो क्या सिर्फ़ लॉकडाउन से वायरस फैलना रुक जाएगा सिर्फ़ लॉकडाउन से ऐसा न तो दुनिया में कहीं हुआ है और न ही भारत में ऐसा होता दिख रहा है।
तो कोरोना को फैलने से रोकने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण उपकरण हैं उसके निर्माण की स्थिति देश में क्या है इसकी जानकारी ऐसे उपकरणों की ख़रीद को लेकर दी गई मंज़ूरी से मिलती है।
केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन यानी सीडीएससीओ द्वारा बुधवार को जारी सूची के अनुसार, स्वीकृत 95 में से 80 एंटीबॉडी टेस्ट किट बनाने वाली कंपनियाँ यानी क़रीब 90 प्रतिशत कंपनियाँ विदेशी हैं। इसी तरह, आईसीएमआर-अनुमोदित 21 में से 11 आरटी-पीसीआर निर्माता कंपनियाँ यानी 50 प्रतिशत से अधिक विदेशी हैं। अनुमोदित रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट निर्माताओं में से साठ फ़ीसदी चीन की हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, फ़ार्मास्यूटिकल्स विभाग के सचिव और पीपीई, वेंटिलेटर आदि पर अधिकार प्राप्त समूह के अध्यक्ष पीडी वाघेला ने 1 मई को एक प्रजेंटेशन में कहा था कि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा ख़रीदे गए 35 लाख आरटी-पीसीआर टेस्ट किट में से 90 फ़ीसदी दूसरे देश से आयातित थे।
पाँच अप्रैल तक सीडीएससीओ द्वारा टेस्ट किट के लिए मंज़ूर की गई कंपनियों की सूची में कोई भी भारतीय कंपनी नहीं थी। तब 27 चीन की कंपनियाँ थीं और 2 दक्षिण कोरिया की।
चीन और दक्षिण कोरिया ही वे देश हैं जहाँ सबसे पहले कोरोना वायरस ने पैर पसारा था। दोनों देशों ने इस वायरस को नियंत्रित कर लिया है। चीन के वुहान शहर में इस वायरस का पहला मामला आया था। चीन की सीमा दक्षिण कोरिया से मिलती है। दुनिया में पहली बार चीन में दिसंबर में पहला मामला आया था और इसलिए पहले वायरस को समझने और इसकी पहचान करने के लिए जाँच किट बनाने में समय लगा। लेकिन जल्द ही इसने इतने किट बना लिये कि दूसरे देशों को सप्लाई करने लगा।
दक्षिण कोरिया में भारत से सिर्फ़ 10 दिन पहले मामला आया था। 20 जनवरी को। लेकिन इसने बिना लॉकडाउन किए कोरोना को नियंत्रित कर लिया। टेस्ट किट और जाँच से कोरोना को नियंत्रित करना दक्षिण कोरिया से पूरी दुनिया सीख सकती है।
दक्षिण कोरिया में पहला मामला आने के अगले ही दिन सरकारी अधिकारियों ने कई मेडिकल कंपनियों के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात की और आपातकालीन मंजूरी देने का वादा करते हुए उनसे आग्रह किया कि तुरंत ही वे कोरोना वायरस जाँच किट बनाना शुरू कर दें। जब देश में दो हफ़्ते के भीतर पॉजिटिव मामलों की संख्या दो अंकों में भी नहीं पहुँची थी तब उसने हज़ारों जाँच किट तैयार कर लिए थे। मार्च महीने में ही वहाँ हर रोज़ एक लाख ऐसे किट को तैयार किया जा रहा था और वह दूसरे देशों को किट निर्यात करने लगा था।
दक्षिण कोरिया ने जाँच पर काफ़ी ज़्यादा ज़ोर दिया। हॉस्पिटलों में भीड़ नहीं बढ़े इसके लिए इसने अतिरिक्त 600 जाँच केंद्र खोल दिए। सड़कों के किनारे भी। जहाँ कार चला रहे व्यक्ति को बिना कार से उतरे ही 10 मिनट में जाँच हो जाती है और घंटे भर में ही उसका परिणाम भी आ जाता है।
यही वह तरीक़ा है जिसके आधार पर बिना लॉकडाउन या कर्फ्यू लगाए ही दक्षिण कोरिया ने कोरोना को नियंत्रित कर लिया।
लेकिन भारत में स्थिति उलट है। यहाँ ज़्यादा ज़ोर लॉकडाउन पर है। टेस्ट किट, लैब की कमी के कारण जाँच अभी भी हर रोज़ 40-50 हज़ार के आसपास हो रही हैं। जाँच की रिपोर्ट भी आने में क़रीब हफ़्ते भर तक का समय लग जा रहा है।
यानी एक तरह से देखा जाए तो भारत में मेडिकल सामान के निर्माण के लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर उस तरह से काम नहीं हुआ है जैसा होना चाहिए था। यदि ऐसा होता तो इन ज़रूरी उपकरणों की इतनी ज़्यादा मात्रा में आयात करने की स्थिति नहीं बनती। वैसे, जब कोरोना की दवा मौजूद नहीं है, बचाव की तैयारी ही काफ़ी महत्वपूर्ण है। लेकिन देश में इसकी तैयारी उस तरह की है