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चुनाव नियम में बदलाव के ख़िलाफ़ SC पहुँची कांग्रेस; क्या बदलाव रद्द होगा? 

चुनाव नियम में बदलाव के ख़िलाफ़ SC पहुँची कांग्रेस; क्या बदलाव रद्द होगा? 

पोलिंग बूथों की सीसीटीवी फुटेज और चुनाव आचार संहिता के दौरान की वीडियो रिकॉर्डिंग को सार्वजनिक होने से रोकने के लिए किए गए संशोधन का मक़सद क्या है? जानिए, कांग्रेस ने किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

पोलिंग बूथ की सीसीटीवी फुटेज देने से रोकने के लिए चुनाव नियमों में किये गये बदलाव के ख़िलाफ़ कांग्रेस मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट पहुँची। कांग्रेस ने एक याचिका दायर कर चुनाव संचालन नियम, 1961 में हाल ही में किए गए संशोधनों को चुनौती दी। इसने कहा है कि चुनावी प्रक्रिया की निष्ठा तेजी से ख़त्म हो रही है। सरकार ने सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक तौर पर जारी करने से रोकने के लिए चुनाव नियम में बदलाव किया है। हालाँकि इसने तर्क दिया है कि इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए ऐसा किया गया है।

पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार चुनाव आयोग को ऐसे महत्वपूर्ण कानून में एकतरफा संशोधन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने एक्स पर पोस्ट में कहा, 'चुनाव नियम, 1961 के हाल के संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर की गई है।  चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। इस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है, इसलिए इसे एकतरफा और सार्वजनिक विचार-विमर्श के बिना इतने महत्वपूर्ण नियम में इतनी निर्लज्जता से संशोधन करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती है।'

उन्होंने कहा, 'यह विशेष रूप से तब सच है जब संशोधन में ज़रूरी जानकारी तक जनता की पहुंच को ख़त्म कर दिया गया है, जो चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाती है। चुनावी प्रक्रिया की निष्ठा तेजी से ख़त्म हो रही है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा।' 

कांग्रेस की यह प्रतिक्रिया तब आई है जब शुक्रवार को चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय विधि मंत्रालय ने सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को सार्वजनिक होने से रोकने के लिए चुनाव नियम, 1961 में संशोधन किया है। केंद्र ने तर्क दिया है कि इस क़दम का उद्देश्य उनके दुरुपयोग को रोकना है।

नियम 93 के अनुसार चुनाव से संबंधित सभी 'कागज़ात' सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले होने चाहिए। हालांकि, संशोधन में एक वाक्य 'इन नियमों में निर्दिष्ट अनुसार' को जोड़ा गया है। इसी वजह से फुटेज के जारी किए जाने पर रोक लग गई है। 

दरअसल, संशोधन के बाद नामांकन फॉर्म, चुनाव एजेंटों की नियुक्ति, परिणाम और खाता की जानकारी जैसे दस्तावेज़ चुनाव आचार संहिता के नियमों के अंतर्गत शामिल हैं, लेकिन आदर्श आचार संहिता के दौरान सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग और उम्मीदवार के वीडियो जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड इससे बाहर रखे गए हैं। कांग्रेस ने इन बदलावों का तुरंत विरोध किया। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने शनिवार को कहा था कि वे संशोधन को कानूनी रूप से चुनौती देंगे। 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव नियमों में संशोधन को चुनाव आयोग की निष्ठा को कमजोर करने की एक जानबूझकर की गई साजिश बताया।

खड़गे ने इसके लिए मुख्य न्यायाधीश को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पैनल से हटाने, चुनाव में कथित गड़बड़ियों का संज्ञान नहीं लेने जैसी कई शिकायतें गिनाई हैं। उन्होंने कहा, 'मोदी सरकार द्वारा चुनाव संचालन नियमों में किया गया दुस्साहसिक संशोधन भारत के चुनाव आयोग की संस्थागत निष्ठा को तबाह करने की उसकी सुनियोजित साजिश के तहत एक और हमला है।'

खड़गे ने अपने तर्क के समर्थन में कई मामलों को गिनाया है और कहा है, 'इससे पहले उन्होंने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाले चयन पैनल से हटा दिया था, और अब वे हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी चुनावी जानकारी को छिपाने का सहारा ले रहे हैं।'

उन्होंने कहा, 'जब भी कांग्रेस पार्टी ने ईसीआई को मतदाता सूची से नाम हटाए जाने और ईवीएम में पारदर्शिता की कमी जैसी विशेष चुनावी अनियमितताओं के बारे में लिखा, तो ईसीआई ने अपमानजनक लहजे में जवाब दिया और कुछ गंभीर शिकायतों को भी स्वीकार नहीं किया। यह फिर से साबित करता है कि ईसीआई, भले ही एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, स्वतंत्र रूप से व्यवहार नहीं कर रहा है।'

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा ईसीआई की निष्ठा को जानबूझकर नुकसान पहुंचाना संविधान और लोकतंत्र पर सीधा हमला है और हम उनकी रक्षा के लिए हर कदम उठाएंगे।

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