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सीजेआई खन्ना ने 'चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति' पर सुनवाई से खुद को अलग किया

सीजेआई खन्ना ने 'चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति' पर सुनवाई से खुद को अलग किया

नए कानून के ज़रिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को मुख्य चुनाव आयुक्त यानी सीईसी और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली समिति से हटा दिया गया है। इसी को चुनौती दी गई है।

मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पैनल से सीजेआई को हटाए जाने के सरकार के जिस फ़ैसले पर विवाद रहा है, उसपर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से सीजेआई संजीव खन्ना ने खुद को अलग कर लिया है। सरकार ने पहले क़ानून में बदलाव कर मुख्य चुनाव आयुक्तों को नियुक्त करने वाले पैनल से सीजेआई को हटा दिया है और उनकी जगह एक कैबिनेट मंत्री को रख लिया है। अब चयन समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया गया है। इसी को लेकर आपत्ति की जा रही है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े नियमों में बदलाव के ख़िलाफ़ कांग्रेस नेता जया ठाकुर, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज यानी पीयूसीएल, लोक प्रहरी आदि ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर की हैं। इसी पर सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित क़ानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

लाइल लॉ की रिपोर्ट के अनुसार मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 की धारा 7 और 8 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाओं को 6 जनवरी, 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में किसी अन्य पीठ के सामने सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया है। पीठ ने केंद्र सरकार और ईसीआई से भी अपने जवाब दाखिल करने को कहा है।

इससे पहले न्यायालय (जस्टिस खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ) ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

नए कानून के ज़रिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को मुख्य चुनाव आयुक्त यानी सीईसी और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करने वाली समिति से हटा दिया गया है। उन्हें प्रधानमंत्री, एक कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता वाली समिति की सिफारिश के आधार पर नियुक्त किया जाना है।

दिसंबर 2023 में पारित चुनाव आयुक्त अधिनियम ने चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कामकाज) अधिनियम, 1991 की जगह ली है। इसमें शीर्ष चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति, वेतन और हटाने की प्रक्रियाओं में बड़े बदलाव किए गए हैं। नए क़ानून की सबसे बड़ी खासियत यह है कि राष्ट्रपति एक चयन समिति की सिफारिश के आधार पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेंगे, जो केंद्रीय कानून मंत्री की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति द्वारा प्रस्तावित उम्मीदवारों की सूची पर विचार करने के बाद तैयार की जाती है। 

धारा 7 के अनुसार, चयन समिति में प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे। धारा 8 पैनल को पारदर्शी तरीके से अपनी प्रक्रिया को रेगुलेट करने और यहां तक ​​कि सर्च समिति द्वारा सुझाए गए लोगों के अलावा अन्य लोगों पर विचार करने का अधिकार देती है।

बता दें कि पहले न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ द्वारा चुनाव आयुक्तों को प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी और मुख्य न्यायाधीश से मिलकर बनी समिति की सलाह पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता था। 

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