सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा- 'न्यायिक आजादी का मतलब हमेशा सरकार विरोधी रुख नहीं'
भारत के मौजूदा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं है कि हमेशा सरकार के खिलाफ फैसला दिया जाए। एक्सप्रेस अड्डा पर सोमवार शाम डीवाई चंद्रचूड़ ने न्यायिक प्रणाली के भीतर निष्पक्षता के महत्व पर जोर देते हुए जनता से अपने फैसलों में जजों पर भरोसा करने का आग्रह किया।
कई मामलों में अदालतों द्वारा जमानत न दिए जाने के मुद्दे पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सीजेआई के रूप में उनके लिए "यह गंभीर चिंता का विषय रहा है।" क्योंकि मैंने ही यह कहा था कि जमानत अपवाद के बजाय नियम है, वो संदेश ट्रायल कोर्ट तक नहीं पहुंचा है। वो जमानत देने में अभी भी आनाकानी कर रहे हैं।“ सीजेआई ने कहा- मैंने हमेशा कहा है कि मैंने ए से ज़ेड तक – अर्नब से लेकर ज़ुबैर तक को जमानत दी है। यही मेरा दर्शन है। सीजेआई ने यह भी कहा कि उनके दो साल के कार्यकाल में शीर्ष अदालत में 21,000 जमानत मामले दायर किए गए, जबकि 21,358 जमानत मामलों का निपटारा किया गया।
फिर दी सफाई
एक्सप्रेस अड्डा पर सीजेआई ने एक सवाल पर दोहराया कि “प्रधानमंत्री एक नितांत निजी कार्यक्रम के लिए मेरे घर आए, यह कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं था। ठीक है, मुझे लगता है कि, आप जानते हैं, इसमें कुछ भी गलत नहीं था, इसका सीधा सा कारण यह है कि ये न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच, यहां तक कि सामाजिक स्तर पर भी, बैठकें होती हैं, संवाद होता है।”
इस कार्यक्रम में चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि जब उन्होंने चुनावी बांड योजना को अमान्य कर दिया और केंद्र सरकार के खिलाफ फैसला सुनाया, तो उन्हें "बहुत स्वतंत्र" कहा गया। चीफ जस्टिस ने कहा- "जब आप चुनावी बांड पर फैसला लेते हैं, तो आप बहुत स्वतंत्र होते हैं, लेकिन अगर फैसला सरकार के पक्ष में जाता है, तो आप स्वतंत्र नहीं हैं... लेकिन यह मेरी स्वतंत्रता की परिभाषा नहीं है।"
सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी, 2024 को चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिससे एक विवादास्पद राजनीतिक फंडिंग पद्धति प्रभावी रूप से समाप्त हो गई। भाजपा की केंद्र सरकार ने 2018 में इसकी शुरुआत की थी। जिसके बाद से उसे आलोचना का सामना करना पड़ा था। इसे राजनीतिक दलों को सीधी रिश्वत माना गया। इसमें सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को ही हुआ, जिसे तमाम कंपनियों और लोगों ने चंदा दिया। इसमें वो कंपनियां भी शामिल थीं, जिनके खिलाफ ईडी, इनकमटैक्स, सीबीआई जांच कर रही थीं या मुकदमे दर्ज थे।
चीफ जस्टिस ने सोमवार के कार्यक्रम में कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता का जो पारंपरागत विचार है, उसके तहत उसे एग्जेक्यूटिव पावर (कार्यकारी शक्ति) से अलगाव की जरूरत है। परंपरागत विचार यही है कि लोकतांत्रिक अखंडता को बनाए रखने में न्यायपालिका की भूमिका महत्वपूर्ण है। इसलिए न्यायपालिका आजाद होना चाहिए।
उन्होंने दावा किया- “न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ अब भी सरकार से स्वतंत्रता है। लेकिन न्यायिक स्वतंत्रता के संदर्भ में केवल यही बात नहीं है। हमारा समाज बदल गया है. विशेष रूप से सोशल मीडिया के आगमन के साथ... हित समूह (इंटरस्टे ग्रुप), दबाव समूह (प्रेशर ग्रुप) और अन्य समूह जो अपने पक्ष का निर्णय पाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का इस्तेमाल करके अदालतों पर दबाव बनाते हैं।''
उन्होंने कहा कि कई समूह न्यायपालिका को तभी आजाद मानते हैं जब जज उनके पक्ष में निर्णय देते हैं। यदि आप मेरे पक्ष में निर्णय नहीं लेते हैं, तो आप आजाद नहीं हैं, इसी पर मुझे आपत्ति है। स्वतंत्र होने के लिए, एक जज को यह निर्णय लेने की आजादी होनी चाहिए कि उनका विवेक उनसे क्या कहता है। बेशक उस विवेक को कानून और संविधान द्वारा निर्देशित होना चाहिए।”