मोदी सरकार गुजरात पर मेहरबान तो बंगाल को क्यों लगा रही है चाबुक?

07:05 pm May 12, 2020 | प्रमोद मल्लिक - सत्य हिन्दी

कोरोना से लड़ाई में पश्चिम बंगाल और गुजरात की स्थिति और केंद्र सरकार के प्रति इन दोनों राज्यों के अलग-अलग व्यवहार से कई सवाल खड़े होते हैं। ये सवाल संघीय ढाँचे से जुड़े हुए हैं, संविधान से जुड़े हुए हैं, नैतिकता से जुड़े हुए हैं, मानवता से जुड़े हुए हैं और राजनीति के उस स्वार्थपरता से भी जुड़े हुए हैं जहाँ महामारी का भी सियासी फ़ायदा उठाया जाता है। 

गुजरात में कोरोना

पहले, कोरोना से लड़ाई में इन दोनों राज्यों की स्थिति पर नज़र डालना ज़रूरी है। गुजरात में बीते 24 घंटे में कोरोना के 347 नए मामले सामने आए हैं। इसके साथ ही वहाँ कोरोना प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ कर 8,541 हो गई। इस राज्य में बीते 24 घंटों में 20 लोगों की मौत हुई, जिससे यहाँ इस महामारी से मरने वालों की तादाद 513 हो गई। इस राज्य में 2,780 कोरोना रोगी ठीक हो चुके हैं। कुल मिला कर 5,248 सक्रिय मामले हैं, यानी इतने लोगों को अभी कोरोना है। 

पश्चिम बंगाल में कोरोना

अब एक नज़र पश्चिम बंगाल की कोरोना स्थिति पर। इस राज्य में बीते 24 घंटों में 124 मामले सामने आए, जिससे कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 2,063 तक जा पहुँची। इस राज्य में बीते 24 घंटे में 5 लोगों की मौत होने से कुल मरने वालों की तादाद 190 हो गई। अब तक 499 कोरोना रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा चुका है और कुल मिला कर 1,374 सक्रिय मामले फ़िलहाल हैं। 

इन आँकड़ों से यह साफ़ है कि कोरोना से प्रभावित लोगों की संख्या हो या इससे मरने वालों की, गुजरात पश्चिम बंगाल से बहुत आगे है। 

गुजरात में जितने लोगों को कोरोना संक्रमण है, पश्चिम बंगाल में उसकी एक चौथाई से भी कम लोगों में यह संक्रमण है। यही स्थिति कोरोना से होने वाली मौतों का है। यानी मोटे तौर पर हम कह सकते हैं गुजरात में कोरोना का असर पश्चिम बंगाल का चार गुणा है।

निशाने पर बंगाल

लेकिन केंद्र सरकार के निशाने पर पश्चिम बंगाल है और यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि तृणमूल कांग्रेस की सरकार कोरोना संकट से निपटने में पूरी तरह नाकाम है।

केंद्र के रवैये का अंदाज इस बात से लगता है कि कोरोना की जांच के लिये केंद्रीयटीम को पश्चिम बंगाल भेजने से पहले राज्य सरकार से कोई मशविरा नहीं किया गया, उसे इसकी जानकारी भी टीम के कोलकाता पहुँचने के आधा घंटा पहले ही दी गई। 

भेदभावपूर्ण रवैया

पश्चिम बंगाल से लौटी केंद्रीय टीम ने सबको बताया कि राज्य कोरोना विस्फोट के मुहाने पर है, राज्य सरकार मौत के आँकड़े छुपा रही है, पूरा राज्य रेड ज़ोन बन सकता है। उसने इसके लिए ममता बनर्जी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया।

लेकिन गुजरात गई केंद्रीय टीम ने 8,541 कोरोना मामलों और कोरोना से होने वाली 541 मौतों के लिए किसी को दोष नहीं दिया।

गुजरात की स्थिति की विकरालता इससे समझी जा सकती है कि जब हालात बेकाबू हो गए तो ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज के निदेशक को विशेष विमान से अहमदाबाद भेजा गया। उन्होंने मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से मुलाक़ात कर इलाज की रणनीति समझाई। 

राज्यपाल की धमकी!

पश्चिम बंगाल में कोरोना पर केंद्र सरकार किस तरह की राजनीति कर रही है, यह इससे साफ़ है कि राज्यपाल जगदीप धनकड़ भी ममता बनर्जी की किरकिरी करने से नही चूकते। राज्यपाल महोदय ने ममता को 13 पेज की चिट्ठी लिख मारी और उन पर आँकड़े छिपाने, लापरवाही बरतने, जाँच नहीं करने, इलाज नहीं करने के आरोप लगाए।

उसके बाद उन्होंने ट्वीट कर मुख्यमंत्री को चेतावनी दे डाली कि वह केंद्र से सहयोग नहीं कर रही हैं, केंद्र के दिशा निर्देश नहीं मान रही हैं और इस तरह वह राज्य में केंद्रीय हस्तक्षेप को न्योता दे रही हैं।

राज्यपाल ने एक के बाद एक कई ट्वीट किए, कुल मिला कर लब्बोलुवाब यह कि राज्य सरकार उन्हें हस्तक्षेप करने और कड़ा कदम उठाने के लिए मज़बूर कर रही हैं। धनकड़ ने राष्ट्रपति शासन लगाने की बात खुल कर नहीं कही, लेकिन उनका संकेत यही था।

बीजेपी की भाषा

इसके अलावा राज्यपाल ने किसी विपक्षी दल की तरह राज्य सरकार पर कोरोना से लड़ाई में तुष्टीकरण का आरोप लगाया, राहत वितरण में भ्रष्टाचार नहीं करने की चेतावनी दी, तृणमूल नेताओं के हस्तक्षेप के आरोप लगाए। दिलचस्प यह है कि ये सारे आरोप भारतीय जनता पार्टी ने भी राज्य सरकार पर लगाए गए थे।

मार्के की बात यह है कि आरोप, आरोप लगाने का समय और उसकी शैली बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी विपक्षी दल बीजेपी की। उस पर तुर्रा यह कि राज्यपाल ने कहा कि वह तो बस अपने संवैधानिक दायित्व का पालन कर रहे हैं और मुख्यमंत्री की मदद करना चाहते हैं।

ख़ैर, मुख्यमंत्री ने उन्ही की शैली में उन्हें जवाब दिया। उन्होंने भी चिट्ठी लिखी, उन्होंने भी ट्वीट किया। 

अमित शाह का हमला

जब श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलने की बात हुई, केंद्र सरकार ने एक बार फिर इस पर राजनीति की और पश्चिम बंगाल सरकार को घेरने की रणनीति पर काम किया। गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक कड़ी चिट्ठी लिख कर कहा है कि वह श्रमिक एक्सप्रेस चलाने की अनुमति नहीं देकर अपने राज्य के मज़दूरों से अन्याय कर रही हैं। उन्होने कहा, '

'हमें राज्य सरकार से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है। राज्य सरकार ट्रेन पश्चिम बंगाल नहीं पहुँचने दे रही है। यह पश्चिम बंगाल के प्रवासी मज़दूरों के साथ अन्याय है। इससे उनके लिए दिक्क़तें बढ़ेंगी।'


अमित शाह, गृह मंत्री

बाद में ममता बनर्जी ने ज़ोरदार पलटवार करते हुए अमित शाह पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उन्होंने चुनौती दी कि गृह मंत्री अपना आरोप साबित करें या माफ़ी माँगे।

ममता बनर्जी का तर्क है कि उन्होंनें केंद्र की हर दिशा निर्देश का पालन किया है। उन्होंने लॉकडाउन किया, केंद्र ने जब-जब बढ़ाया, राज्य सरकार ने लॉकडाउन को बढ़ाया, राज्य सरकार अभी भी केंद्र कहे तो लॉकडाउन 4.0 करने पर भी तैयार है। बगैर पूर्व सलाह या सूचना के गई टीम के साथ सहयोग भी किया। इसके बावजूद केंद्र सरकार उसे निशाने पर लेती है।

पंजाब

इस तरह के आरोप सिर्फ पं बंगाल ही नहीं, दूसरे राज्य सरकार भी लगा रही हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने एक बार नहीं कई बार कहा है कि उन्हें वित्तीय फ़ैसले करने दिया जाए। केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने भी कहा है कि लॉकडाउन खोलने या उसमें छूट का फ़ैसला राज्य सरकार को करने दिया जाए।

तमिलनाडु-तेलंगाना

ट्रेन के मुद्दे पर पश्चिम बंगाल ही नहीं,तमिलनाडु और तेलंगाना ने भी राजनीति करने का संकेत दिया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने कहा कि उन्हें तो मीडिया में छपी ख़बरों से पता चला कि स्पेशल ट्रेन उनके यहां जाने वाली है। इसी तरह तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने भी कहा कि फ़िलहाल कोई ट्रेन उनके राज्य में न घुसे। 

जहाँ तक वित्तीय मदद की बात है, केंद्र राज्य सरकारों पर कोड़े भले फटकारे, कोई मदद अब तक नहीं की है। सोमवार की बैठक में कई राज्यों ने यह मुद्दा उठाया। 

वित्तीय मदद तो दूर की बात है, इस कोरोना संकट के दौर में ग़ैर-बीजेपी राज्य सरकारों को उनका बकाया पैसा ही नहीं दिया जा रहा है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने साफ़ कहा कि कम से कम जीएसटी के हिस्से का बकाया ही उन्हें दे दिया जाए। 

केंद्र की भूमिका पर सवाल

सवाल यह उठता है कि क्या केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले चुनाव को ध्यान में रख कर राज्य सरकार को कोरोना के मुद्दे पर घेरना चाहिए क्या मुख्यमंत्री को निशाने पर लेने के लिए राज्यपाल का इस्तेमाल करना चाहिए 

इसी तरह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद में मनोनीत करने के कैबिनेट के प्रस्ताव को क्या राज्यपाल को अस्वीकार कर देना चाहिए ताकि राज्य में अस्थिरता का संकट खड़ा हो जाये।

पश्चिम बंगाल ही नहीं, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, ओड़िशा जैसे राज्य यह आरोप लगा रहे हैं। उनका ग़ैर-बीजेपी होना क्या सिर्फ़ संयोग है।

इसे समझने के लिए यह भी याद रखना होगा कि गुजरात में कोरोना की लड़ाई पर वहाँ के राज्यपाल क्या करते हैं, वहाँ की राज्य सरकार को क्या सलाह देते हैं, केंद्र सरकार कैसे एम्स प्रमुख को विशेष जहाज से वहाँ भेज देती है। और हाँ, गुजरात में बीजेपी की सरकार है, वहाँ के राज्यपाल भी बीजेपी से जुड़े हुए रहे हैं।