सुप्रीम कोर्ट के लगातार दबाव के बीच अब सरकार ने फ़ैसला किया है कि महिलाओं को भारतीय सेना में पर्मानेंट कमीशन के लिए नेशनल डिफ़ेंस एकेडमी यानी एनडीए में शामिल किया जाएगा। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि तीनों सेना प्रमुख महिलाओं को इसकी अनुमति देने के लिए सहमत हो गए हैं। हालाँकि सरकार ने कहा है कि महिलाओं को एनडीए में शामिल करने के लिए गाइडलाइंस तैयार करने में कुछ वक़्त लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को इस मामले में जवाब देने के लिए 10 दिन का समय दिया है। सेना में महिलाओं की भागीदारी और बराबरी के हक को देखते हुए यह एक ऐतिहासिक फ़ैसला है।
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा, 'मेरे पास एक अच्छी ख़बर है। सेना प्रमुखों और सरकार ने तय किया है कि एनडीए और नौसेना अकादमी के माध्यम से लड़कियों को स्थायी कमीशन दिया जाएगा। फ़ैसला कल देर शाम लिया गया।' भाटी ने आगे सुप्रीम कोर्ट को बताया कि महिलाओं को तीनों रक्षा बलों में स्थायी कमीशन दिलाने के लिए नीति और प्रक्रिया पर काम किया जा रहा है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हमें यह जानकर बेहद खुशी हुई कि सशस्त्र बलों ने स्वयं महिलाओं को एनडीए में शामिल करने का निर्णय लिया है। हम जानते हैं कि सुधार एक दिन में नहीं हो सकते... सरकार प्रक्रिया और कार्रवाई की समयसीमा तय करेगी।' सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी आज तब की जब वह महिलाओं को एनडीए और नेवल एकेडमी की परीक्षा देने की अनुमति देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इसे लंबे समय से देख रहा है। जस्टिस एसके कौल ने कहा, 'लैंगिक समानता पर सशस्त्र बलों को और अधिक काम करना होगा। मुझे खुशी है कि सशस्त्र बलों के प्रमुखों ने यह फ़ैसला लिया है। उन्हें मनाने के लिए आपको तारीफ़ मिलती है।'
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, 'अगर आपको पिछली सुनवाई में निर्देश दिया गया होता कि यह फ़ैसला लिया जा रहा है तो हमें दखल देने की ज़रूरत नहीं पड़ती। आपको एक हलफनामा दाखिल करना होगा कि आप क्या कर रहे हैं, भविष्य में क्या क़दम होंगे और हमसे किस तरह के आदेश की ज़रूरत होगी।'
आज की सुनवाई से क़रीब एक महीने पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक अंतरिम आदेश में कहा था कि महिलाएँ एनडीए प्रवेश परीक्षा में बैठ सकती हैं। इस साल 24 जून को होने वाली परीक्षा को 14 नवंबर के लिए पुनर्निर्धारित किया गया है।
अदालत ने 18 अगस्त को सुनवाई के दौरान देश के सशस्त्र बलों में पुरुषों और महिलाओं के लिए समान सेवा के अवसरों को लेकर कहा था कि यहाँ 'मानसिकता की समस्या' है। उसने सरकार को चेतावनी दी थी कि 'बेहतर होगा कि आप बदलाव करें'।
अदालत ने यह भी उम्मीद जताई थी कि अंतरिम आदेश सेना को अपनी मर्जी से बदलाव शुरू करने के लिए राजी करेगा, न कि न्यायपालिका के एक निर्देश के कारण ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाएगा।
पुरुषों ने पुरुषों के लिए नियम बनाए- सुप्रीम कोर्ट
इससे पहले मार्च महीने में एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया था कि सेना में सबसे उँचे पद यानी सेना की कमान महिलाओं के हाथ देने में कितना पक्षपात होता रहा है। कोर्ट ने तब कहा था कि सेना में पर्मानेंट कमीशन पाने के लिए महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस का जो नियम है वह 'मनमाना' और 'तर्कहीन' है। इसने कहा था कि ये नियम महिलाओं के प्रति पक्षपात करते हैं। तब सुप्रीम कोर्ट सेना में पर्मानेंट कमीशन को लेकर क़रीब 80 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर फ़ैसला सुना रहा था। कोर्ट ने कहा था कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि समाज का जो ढाँचा है वह पुरुषों द्वारा और पुरुषों के लिए तैयार किया गया है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेना की चयनात्मक वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट मूल्यांकन और चिकित्सा फिटनेस मानदंड देर से लागू होने से महिला अधिकारियों के ख़िलाफ़ भेदभाव होता है। अदालत ने कहा था, 'मूल्यांकन के पैटर्न से एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला अधिकारियों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुक़सान होता है।'
बता दें कि इससे पहले पिछले साल फ़रवरी में सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारियों के लिए बड़ा फ़ैसला सुनाया था। सेना में सबसे उँचे पद यानी सेना की कमान महिलाओं के हाथ देने के ख़िलाफ़ सरकार जो तर्क देती रही थी उसे सुप्रीम कोर्ट ने तब एक झटके में खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि पुरुष अफ़सर की तरह ही महिला अफ़सर सेना की कमान संभाल सकती हैं। यानी सीधे-सीधे कहें तो यह कहा गया था कि महिला अफ़सर कर्नल रैंक से ऊँचे पदों पर अपनी योग्यता के दम पर जा सकती हैं। कोर्ट ने साफ़-साफ़ कहा था कि इस फ़ैसले को तीन महीने के अंदर लागू करना होगा। हालाँकि सरकार तीन महीने में इस पर फ़ैसला नहीं ले सकी थी।