चीन के साथ सीमा पर चल रहे जोरदार संघर्ष के बीच एक ओर जहां स्वदेशी जागरण मंच और कुछ अन्य हिंदू संगठनों ने चीनी सामानों के बहिष्कार का आह्वान किया हुआ है, वहीं इस मामले में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत की राय जुदा है। संघ के ही एक संगठन स्वदेशी जागरण मंच की ओर से तो चीनी सामानों की होली तक जलाई जा चुकी है।
केंद्र की मोदी सरकार लगातार 'आत्मनिर्भर भारत' की बात कर रही है और हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 'आत्मनिर्भर भारत' को बढ़ावा देने के लिए रक्षा से जुड़े 101 सामानों के आयात पर प्रतिबंध लगाने की सूची तैयार होने का एलान किया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ख़ुद कई बार लोकल के लिए वोकल होने पर जोर दे चुके हैं।
लेकिन मोहन भागवत का कहना है कि स्वदेशी का मतलब यह नहीं है कि हर विदेशी उत्पाद का बहिष्कार कर दिया जाए। संघ प्रमुख ने बुधवार को इस बात पर जोर दिया कि केवल उन्हीं तकनीकों या सामग्रियों को बाहर से आयात किया जाए जिनकी देश में परंपरागत रूप से कमी है या जो स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हैं।
भागवत ने कहा कि कोरोना महामारी के संकट के दौरान यह बात साफ हो गयी है कि वैश्वीकरण के अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं और एक ही इकनॉमिक मॉडल सभी जगहों के लिए लागू नहीं हो सकता है। भागवत एक किताब की वर्चुअल बुक लांचिंग के मौक़े पर बोल रहे थे।
भागवत ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा चलाई गई 'आत्मनिर्भर भारत' मुहिम का समर्थन करते हुए कहा कि इसका मतलब स्वदेशी उत्पादों और तकनीकों का समर्थन करना है।
लेकिन ऐसे में स्वदेशी जागरण मंच और संघ प्रमुख का बयान एक-दूसरे से कतई मेल नहीं खाता। क्योंकि मंच की ओर से दीवाली या होली के दौरान और साल भर भी चीनी और विदेशी उत्पादों के बॉयकाट का अभियान चलता रहता है।
भारत कई चीजें बनाने में सक्षम नहीं है और ऐसे में इन्हें विदेशों से ही मंगाना पड़ता है। लेकिन चीनी और विदेशी सामानों के पुरजोर विरोध के बीच संघ प्रमुख का यह बयान दिखाता है कि इस मुद्दे पर संघ परिवार के भीतर आम राय नहीं है। इस मौक़े पर भागवत ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का समर्थन किया और कहा कि यह सही दिशा में उठाया गया क़दम है।