+
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा- लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म में अनिवार्य नहीं

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा- लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म में अनिवार्य नहीं

सभी धार्मिक स्थलों के लाउडस्पीकरों से बढ़ते शोर पर अदालत ने सख्त निर्देश जारी किया है। धार्मिक स्थलों खासकर मस्जिद-मंदिर में लगे लाउडस्पीकरों से निकलने वाले शोर विवाद का विषय रहे हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट में सिर्फ मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से होने वाले शोर को लेकर याचिका दायर की गई थी लेकिन अदालत ने अपने आदेश में किसी धर्म या समुदाय विशेष का नाम लेकर इसे सभी धार्मिक संस्थाओं के लिए लागू करने को कहा। अदालत ने इस संबंध में एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश देने से भी मना कर दिया।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य पहलू नहीं है। अगर इसके लिए अनुमति नहीं दी जाती है तो किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है। अदालत ने यह टिप्पणी जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन बनाम पुलिस कमिश्नर मामले में की है।

बार एंड बेंच के मुताबिक बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- "शोर सेहत के लिए एक बड़ा खतरा है। कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि अगर उसे लाउडस्पीकर का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी गई तो उसके अधिकार किसी भी तरह से प्रभावित होंगे। यह सार्वजनिक हित में है कि ऐसी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ऐसी अनुमति देने से इनकार करके, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 या 25 के तहत अधिकारों का बिल्कुल भी उल्लंघन नहीं है। लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।''

यह मुद्दा इसलिए खड़ा हुआ, क्योंकि महाराष्ट्र में तमाम मस्जिदों पर लाउडस्पीकर हटाने को कहा गया या आवाज कम करने का निर्देश सरकार की ओर से दिया गया। इसके बाद मंदिरों में बजने वाले लाउडस्पीकरों पर भी ऐतराज हुए कि अगर मस्जिद में लाउडस्पीकर से लोगों को परेशानी होती है तो मंदिरों के लाउडस्पीकर से क्यों नहीं हो रही है। मामला अदालत में जा पहुंचा।

मुंबई के कुर्ला और चूनाभट्टी इलाकों में दो संगठनों ने ध्वनि प्रदूषण मानदंडों का हवाला देते हुए कई मस्जिदों और मदरसों के खिलाफ एफआईआर की मांग की है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि लाउडस्पीकर से अज़ान और धार्मिक प्रवचनों के कारण आसपास की शांति भंग हो रही है। शोर का स्तर निर्धारित सीमा से ज्यादा है। पुलिस कुछ कर नहीं रही है। 

इसके जवाब में अदालत ने एफआईआर दर्ज कराने का आदेश देने से मना कर दिया। लेकिन अदालत ने धार्मिक स्थलों पर इस्तेमाल होने वाले लाउडस्पीकरों के डेसीबल लेवल को नियंत्रित करने पर जोर दिया। अदालत ने अपने आदेश में मस्जिद, मदरसा जैसा शब्द इस्तेमाल नहीं किया। उसने कहा कि हर धर्म के धार्मिक स्थलों के लाउडस्पीकरों से निकलने वाली आवाज का लेवल कम किया जाए। अदालत ने कहा कि राज्य के सभी धार्मिक संस्थान लाउडस्पीकर, वॉयस एम्पलीफायर, पब्लिक एड्रेस सिस्टम (सार्वजनिक संबोधन प्रणाली) या किसी अन्य आवाज पैदा करने वाले गैजेट में आवाज का डेसीबल लेवल नियंत्रित करने के लिए सिस्टम बनाए।

अदालत ने कहा कि राज्य सभी धर्मों के पूजा स्थलों में इस्तेमाल किए जाने वाले लाउडस्पीकरों और एम्प्लीफायरों के लिए डेसिबल लिमिट को कैलिब्रेट करने या ऑटो-सेटिंग के लिए निर्देश जारी करने पर विचार कर सकता है। इसने अधिकारियों को यह भी कहा कि शोर के लेवल की निगरानी के लिए पुलिस अधिकारी मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करें।

पुलिस महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 38, 70, 136 और 149 को लागू करने के लिए बाध्य है।

अदालत ने कहा कि अगर कोई कानून तोड़ता हुआ पाया जाए तो पुलिस महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 70 के तहत उस उपकरण को जब्त कर सकती है। लाउडस्पीकर के इस्तेमाल की अनुमति देने वाले लाइसेंस को रद्द करने सहित उचित कार्रवाई कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई नागरिक शिकायत करता है, तो पुलिस को शिकायतकर्ता की पहचान पता लगाने के बजाय पहले कार्रवाई करनी चाहिए।

(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें