अडानी समूह के खिलाफ दो लोग मोर्चे पर डटे हैं। पहला नाम शिवसेना यूबीटी और दूसरा नाम कांग्रेस का राहुल गांधी का है। लेकिन शिवसेना यूबीटी अडानी समूह को लेकर ठोस मुद्दे उठा रही है। जिसके केंद्र में धारावी का रीडेवलेपमेंट प्लान है। इसी धारावी प्रोजेक्ट से जुड़ा है मुंबई के पर्यावरण मुद्दा है। जिसे लेकर पर्यावरणवादी चिंतित है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अगर धारावी मुद्दा बनता है तो यह पूरे महाराष्ट्र चुनाव की दिशा बदल सकता है।
शिवसेना नेता आदित्य ठाकरे ने आरोप लगाया है कि धारावी झुग्गियों के पुनर्विकास के लिए जारी टेंडर में कहा गया है कि भूमि उपयोग (लैंड यूज) से जो प्रीमियम वापस दिया जाएगा, उसमें अडानी समूह स्टेकहोल्डर है। इसका मतलब है कि अडानी समूह पुनर्विकास से पैसा कमाएगा और पुनर्विकास कार्य के लिए प्रीमियम राशि का बड़ा हिस्सा भी प्राप्त करेगा। बीएमसी के पास लगभग 70 प्रतिशत जमीन है जिस पर वर्तमान में धारावी झुग्गी बस्ती है। बीएमसी को ये 5,000 करोड़ रुपये मिलने चाहिए थे लेकिन करोड़ों की प्रीमियम राशि अडानी की कंपनी एसपीवी को जा रही है।”
अपने आरोप में राजनीतिक तड़का लगाते हुए आदित्य ठाकरे ने वादा किया कि "महा विकास अघाड़ी के सत्ता में आने पर टेंडर में आवश्यक बदलाव किए जाएंगे। सत्तारूढ़ भाजपा और शिवसेना के कुछ विधायकों ने कहा था कि धारावी के निवासियों को मुलुंड और कुर्ला जैसे क्षेत्रों में स्थानांतरित नहीं किया जाएगा, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक इस मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं लिया है, जिसका मतलब है कि ये विधायक "मतदाताओं को गुमराह करने के लिए झूठ फैला रहे हैं।" एमवीए में शिवसेना (यूबीटी), कांग्रेस और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) शामिल हैं।
पूरे धारावी में अब यह बात फैल गई है और शिवसेना यूबीटी ने उसी मुद्दे पर हिट किया है कि इस प्रोजेक्ट से अडानी समूह को दोहरा लाभ होगा। जैसा कि आदित्य ठाकरे वादा कर रहे हैं कि एमवीए की सरकार आने पर टेंडर प्रक्रिया के नियमों को बदला जायेगा। अगर धारावी की आबादी के बीच शिवसेना यूबीटी की यह बात पहुंच गई तो धारावी का मतदाता एक बार सोचेगा तो जरूर। लेकिन कोई नहीं जानता। क्योंकि मतदाता जब धर्म और जाति के नाम पर वोट डालते हैं तो वे अपने हित के बारे में भी नहीं सोचते।
बहरहाल, विधानसभा चुनाव से पहले, उद्योगपति गौतम अडानी और एशिया के सबसे बड़े स्लम क्लस्टर में धारावी पुनर्विकास परियोजना महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए मुद्दा तो बन गई है। कांग्रेस ने लगातार इस परियोजना को 'मोदानी उद्यम' कहा। महाराष्ट्र के विपक्ष ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार के कुछ हालिया फैसलों को अडानी समूह के 'पक्ष' और 'मोदानी' एजेंडे को आगे बढ़ाने के रूप में पेश किया है।
शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जुलाई में कहा था कि राज्य में उनकी सरकार आने पर “महाराष्ट्र सरकार और अडानी समूह के संयुक्त उद्यम धारावी पुनर्विकास परियोजना प्राइवेट लिमिटेड (डीआरपीपीएल) को रद्द कर दिया जायेगा। हम मुंबई को ऐसा नहीं बनने देंगे...।“
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धारावी प्रोजेक्ट की वजह से मुंबई के पर्यावरण को खतरा है। यह बात तमाम पर्यावरणवादी काफी दिनों से कर रहे हैं। उनका कहना है कि धारावी के हिस्से में नमक की खेती होती है। यहां पर मैंग्रोव पेड़ के जंगल हैं। इनकी जगह जब विशालकाय कंक्रीट की कॉलोनी और विशालकाय भवन खड़े हो जायेंगे तो क्या होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
मुंबई के नमक क्षेत्र का जो हिस्सा है, उसमें से 256 एकड़ हिस्सा अडानी समूह को सौंपने की तैयारी शिंदे सरकार ने कर ली है। यह हिस्सा भी धारावी 'पुनर्विकास' योजना में शामिल किया गया है। कहा जा रहा है कि इसे चुनाव से पहले "दिवाली के बाद और 26 नवंबर से पहले" कभी भी मंजूरी मिल सकती है। शिंदे की महायुति सरकार द्वारा अडानी समूह को बढ़ी हुई दरों पर 6,600 मेगावाट बिजली की आपूर्ति का ठेका देने के कुछ ही दिनों बाद इस प्रोजेक्ट की फाइल मंत्रालयों में घूमने लगी।
विपक्ष और पर्यावरणविद् लंबे समय से इस बात पर जोर दे रहे हैं कि मैंग्रोव के साथ-साथ नमक क्षेत्र, मुंबई जैसे शहरी समूह के नाजुक और अत्यधिक बोझ वाले पारिस्थितिकी तंत्र (ईको सिस्टम) को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्राकृतिक स्पंज की तरह काम करते हुए, निचले नमक क्षेत्र वाले क्षेत्र मानसून के दौरान बाढ़ को रोकने में मदद करते हैं, खासकर जब अत्यधिक बारिश उच्च ज्वार के साथ मेल खाती है। कांग्रेस नेता वर्षा गायकवाड़ का कहना है कि "इन ज़मीनों पर निर्माण की अनुमति न केवल लापरवाही है, बल्कि आपराधिक भी है!"
स्कूल भी अडानी का हुआ
अडानी ग्रुप ने हाल ही में इसी इलाके में पड़ने वाले चंद्रपुर जिले में एक को-एजुकेशन स्कूल पर भी कब्जा कर लिया है। 1972 से कार्मेलाइट ननों द्वारा संचालित, माउंट कार्मेल कॉन्वेंट का स्वामित्व एसीसी (एसोसिएटेड सीमेंट कंपनी) के पास था, जिसे अडानी समूह ने 2022 में स्विट्जरलैंड स्थित होलसिम से अधिग्रहण कर लिया था। स्कूल की पूर्व प्रिंसिपल सिस्टर लीना ने यूनियन ऑफ कैथोलिक एशियन न्यूज को बताया, "अडानी ग्रुप को सौंपने के बाद हम सितंबर में स्कूल से बाहर चले गए।" उन्होंने कहा, "हम अडानी समूह के तहत काम नहीं करना चाहते थे, जिसकी प्राथमिकता व्यावसायिक हित हैं...उनकी नीति और हमारी नीति पूरी तरह से अलग है, इसलिए हम बाहर चले गए हैं।" स्कूल की देखरेख करने वाले बिशप एफ़्रेम नारिकुलम ने यूसीए न्यूज़ को बताया कि ननों ने "अडानी समूह के प्रबंधन में कुछ हस्तक्षेप के कारण स्कूल छोड़ने का फैसला किया"। हालांकि अडानी समूह का तर्क है कि एसीसी और उसकी संपत्तियों पर कब्ज़ा करने के कारण, स्कूल अब 'स्वाभाविक रूप से' हमारा है। यानी एक अच्छा खासा मिशनरी स्कूल अब अडानी समूह चलायेगा।