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क्या यही ज्ञान भारत को विश्व गुरु बनाएगा?

क्या यही ज्ञान भारत को विश्व गुरु बनाएगा?

दुनिया के किसी अन्य देश में तो नहीं परन्तु भारत में इस बात का दावा ज़रूर किया जाता रहा है कि भारतवर्ष किसी ज़माने में 'विश्व गुरु' हुआ करता था।

दुनिया के किसी अन्य देश में तो नहीं परन्तु भारत में इस बात का दावा ज़रूर किया जाता रहा है कि भारतवर्ष किसी ज़माने में 'विश्व गुरु' हुआ करता था। हालांकि इस बात की भी कोई पुख़्ता जानकारी नहीं कि विश्व गुरु भारत के 'शिष्य देश' आख़िर कौन-कौन से थे। 'सुखद ' यह है कि गत कुछ वर्षों से एक बार फिर से कुछ आशावादी राजनेताओं, चिंतकों व लेखकों द्वारा यह उम्मीद जताई जाने लगी है कि भारत एक बार फिर विश्व गुरु बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर है। 

किसी भी भारतवासी के लिए इससे बड़े गर्व की बात और हो भी क्या सकती है। परन्तु जिन राजनेताओं की अगुवाई में भारत वर्ष के विश्व गुरु बनने की उम्मीद की जा रही है उनके अपने 'महाज्ञान' के बारे में भी तो देश को जानना ज़रूरी है? 

'मन की बात' कार्यक्रम                                        

आइये डुबकी लगाते हैं हिन्दू ह्रदय सम्राट के रूप में अपनी छवि बना चुके अपने 'यशस्वी' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के ज्ञान सागर में। यहाँ मैं उनकी कुछ ऐसी बातों को याद करूँगा जिसका सीधा संबंध हमारे देश के भविष्य अर्थात छात्रों से है। सुखद तो यह है कि प्रधानमंत्री स्वयं भी छात्रों से संवाद करने पर बहुत विश्वास करते हैं। उनकी 'मन की बात' के भी कई एपिसोड छात्रों को समर्पित रहे हैं। 

सरकार की ओर से भी कई बार स्कूल्स में प्रधानमंत्री की 'मन की बात' सुनाने की सरकारी स्तर पर व्यवस्था की जा चुकी है। इसका अर्थ है कि प्रधानमंत्री को अपनी क्षमता पर पूरा भरोसा है कि वे एक गुरु, अध्यापक, मार्गदर्शक या प्रेरक के रूप में 'देश के भविष्य' अर्थात छात्रों का मार्ग दर्शन कर सकें। केवल छात्रों ही नहीं बल्कि वे बड़े से बड़े विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मंचों से भी देश और दुनिया को संबोधित करते हैं और अपना 'ज्ञान' देश दुनिया से सांझा करते हैं। 

सच्चाई से दूर की बातें                                       

परन्तु कई बार हमारे यही प्रधानमंत्री जाने-अनजाने में कई ऐसी बातें भी कर जाते हैं जो सच्चाई से कोसों दूर होती हैं तथा विज्ञान और इतिहास से मेल नहीं खातीं। ऐसे में जिन छात्रों ने अब तक वह हक़ीक़त पढ़ी होती है जो विज्ञान व इतिहास की विश्व की सर्वमान्य किताबों में सदियों से दर्ज है, वे छात्र निश्चित रूप से भ्रमित हो जाते हैं। 

जब देश का प्रधानमंत्री कोणार्क के 700 वर्ष प्राचीन सूर्य मंदिर को 2000 वर्ष प्राचीन बताने लगे और वह भी अमेरिका जाकर, फिर आख़िर किसकी बात सच मानी जाए? इतिहास की या यशस्वी प्रधानमंत्री की? जब 'यशस्वी प्रधानमंत्री' तक्षशिला को बिहार (पाटलिपुत्र ) में  बताने लगें जबकि तक्षशिला अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है? 

देश का छात्र और युवा प्रधानमंत्री के इस कथन पर कैसे यक़ीन करे कि स्वतंत्रता के समय एक डॉलर की क़ीमत एक रुपये के बराबर हुआ करती थी, जबकि वास्तव में उस समय एक रुपये की क़ीमत 30 सेंट के बराबर थी तथा उस समय एक रुपया एक पाउंड के बराबर था।

इतिहास की बख़िया उधेड़ते हुए नरेंद्र मोदी ने एक बार यह भी कहा था कि जब हम गुप्त साम्राज्य की बात करते हैं तो हमें चंद्रगुप्त की राजनीति की याद आती है परन्तु वास्तविकता यह है कि वे जिस चंद्रगुप्त और उनकी राजनीति का ज़िक्र कर रहे थे, वे मौर्य वंश के थे। गुप्त साम्राज्य में चंद्रगुप्त द्वितीय हुए थे। इतिहास का ऐसा बखान तो आजतक किसी ने भी नहीं किया।

                                     

इसी तरह फ़रवरी 2014 में नरेंद्र मोदी ने मेरठ में एक चुनावी सभा में दुनिया से अपना 'ज्ञान' सांझा करते हुए कहा था कि कांग्रेस ने आज़ादी की पहली लड़ाई यानी मेरठ में हुई 1857 की क्रांति को कम कर के आँका था। जबकि कांग्रेस पार्टी का 1857 में वजूद ही नहीं था। कांग्रेस पार्टी की तो स्थापना ही 1885 में हुई थी। 

किसकी बात मानें?

इसी तरह पटना में एक चुनावी रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सिकंदर की सेना ने पूरी दुनिया जीत ली थी। लेकिन जब उन्होंने 'बिहारियों से पंगा लिया था, तब उसका क्या हश्र हुआ, यहाँ आकर वो हार गया? परन्तु इतिहास बताता है कि सिकंदर कभी बिहार आया ही नहीं। अब किसकी बात मानी जाए, इतिहास की या अपने ज्ञानवान 'यशस्वी ' प्रधानमंत्री की? 

 - Satya Hindi

बादलों में रडार का काम 

इसी तरह नरेंद्र मोदी ने एक बार विज्ञान में भी ज़बरदस्त दख़लअंदाज़ी की थी जिसके बाद उनके ‘महाज्ञान’ की पूरे विश्व में चर्चा हुई थी। उन्होंने पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तून ख़्वाह स्थित बालाकोट में भारतीय वायुसेना द्वारा की गयी एयर स्ट्राइक का श्रेय लेते हुए अपने एक साक्षात्कार में फ़रमाया कि-'उस दिन मैं दिनभर व्यस्त था रात नौ बजे रिव्यू (एयर स्ट्राइक की तैयारियों का) किया, फिर बारह बजे रिव्यू किया। हमारे सामने समस्या थी। उस समय वेदर (मौसम) अचानक ख़राब हो गया था। बहुत बारिश हुई थी। विशेषज्ञ (हमले की) तारीख़ बदलना चाहते थे लेकिन मैंने कहा कि इतने बादल हैं, बारिश हो रही है तो एक फ़ायदा है कि हम रडार (पाकिस्तानी) से बच सकते हैं। सब उलझन में थे कि क्या करें। फिर मैंने कहा बादल है, जाइए... और वे (सेना) चल पड़े..।"  

नरेंद्र मोदी के इस कथन ने फिज़िक्स के छात्रों को ही नहीं बल्कि पूरे विज्ञान जगत को ही आश्चर्यचकित कऱ दिया। उस समय यह चर्चा छिड़ गयी कि रडार बादलों में काम करता भी है या नहीं?

ग़लत था मोदी का बयान

प्रधानमंत्री का कहना था कि बालाकोट हमले के दौरान भारतीय वायु सेना को तकनीकी तौर पर बादलों के छाए रहने का लाभ मिला। जिसके चलते भारतीय मिराज पाकिस्तान रडार में नहीं आ सका और बालाकोट में अपने निर्धारित लक्ष्य पर हमला करने में सफल हुआ। जबकि फिज़िक्स के नियमों व सिद्धांतों के अनुसार रडार किसी भी मौसम में काम करने में पूरी तरह सक्षम होता है और यह अपनी सूक्ष्म तरंगों अर्थात माइक्रो वेव्ज़ के द्वारा अपने क्षेत्र से गुज़रने वाले किसी भी विमान का पता लगा लेता है। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान भी तकनीकी रूप से पूर्णतयः ग़लत था।

हैरत की बात है कि प्रधानमंत्री इतिहास और विज्ञान को लेकर अपने 'अज्ञान का बखान' देश विदेश में कभी साक्षात्कार में तो कभी जनसभाओं में बड़े ही आत्मविश्वास के साथ करते हैं।

                                                

प्रधानमंत्री की ही तरह आरएसएस से शिक्षित व संस्कारित अनेक नेता इसी तरह की बातें अक्सर करते रहते हैं। कभी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत भारत को 200 वर्ष तक अमेरिका का ग़ुलाम बनाए रखने, उसके दुनिया पर राज करने का 'महाज्ञान' देने लगते हैं। 

कभी कोई संघ का नेता चीनी सेना को भारतीय क्षेत्र से भगाने के लिए 'मन्त्र व श्लोक’ पढ़ने की सलाह देता है। गोया इन दिनों चहुँ ओर इसी तरह की 'ज्ञान गंगा' प्रवाहित हो रही है। क्या इन्हीं महाज्ञानियों का यही ज्ञान भारत को विश्व गुरु बनाएगा?

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