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अमेरिका-रूस-चीन के परमाणु होड़ में फंस जाएगा भारत?

अमेरिका-रूस-चीन के परमाणु होड़ में फंस जाएगा भारत?

क्या रूस-चीन-अमेरिका के परमाणु होड़ में भारत फँस जाएगा? इससे भारत को रणनीतिक स्तर पर फ़ायदा है या नुक़सान? क्या आज के युग में परमाण हथियारों की ज़रूरत है?

दुश्मन देश पर हावी होने के लिये आख़िर कितने परमाणु हथियार काफी होंगे यह सवाल दशकों से सामरिक विशेषज्ञों को कौंधता रहा है। लेकिन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने अपने  देश के रक्षा बजट में नई किस्म के परमाणु हथियारों के विकास के लिये भारी प्रावधान कर यह बहस फिर तेज़ कर दी है कि क्या अमेरिका को अपने मौजूदा परमाणु हथियार भंडार से संतोष नहीं है या क्या उसके पास मौजूद परमाणु हथियारों का ज़खीरा उसकी सुरक्षा के लिये काफी  नहीं होगा  

क्या अमेरिका को अपने मौजूदा परमाणु हथियार भंडार से संतोष नहीं है या क्या उसके पास मौजूद परमाणु हथियारों का ज़खीरा उसकी सुरक्षा के लिये काफी नहीं होगा

परमाणु हथियारों की ज़रूरत नहीं

राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में रूस के साथ नये सिरे से स्टार्ट (सामरिक अस्त्र परिसीमन)  संधि कर यह संदेश दिया था कि अमेरिका अपनी सुरक्षा तैयारी में परमाणु हथियारों की भूमिका को कम करेगा।

लेकिन डोनल्ड ट्रम्प के ताज़ा रक्षा बजट और इसमें नई किस्मों के परमाणु हथियारों के विकास के लिये किये गए प्रावधानों से यह संकेत मिलता है कि अमेरिका एक बार फिर से अपनी सुरक्षा रणनीति परमाणु हथियारों पर केन्द्रित करते हुए परमाणु हथियारों की भूमिका  को बढ़ाएगा।

चीन के मंसूबे

ट्रम्प प्रशासन का तर्क है कि चूंकि किसी अंतरराष्ट्रीय परमाणु संधि में चीन शामिल नहीं हो रहा  है, इसलिये उसे चीन के मंसूबों को लेकर चिंता हो रही है। आखिर चीन भी एक बड़ी परमाणु ताक़त बन चुका है औऱ मौजूदा दौर शीतयुद्ध के तीन दशक बाद का है। इसलिये चीन को भी अंतरराष्ट्रीय परमाणु संधियों का हिस्सा बनना होगा।

हालांकि अमेरिका के पास चीन की तुलना में कहीं बीसियों गुना ज्यादा  परमाणु हथियार भंडार है, लेकिन अमेरिका को चीन के आक्रामक होते सामरिक मंसूबों को लेकर चिंता सता रही है।

नए, अधिक घातक हथियार

कुछ दिन पहले वाशिंगटन में घोषित साल 2021 के लिये अमेरिकी रक्षा विभाग के लिए 705 अरब डालर का रिकार्ड बजट घोषित हुआ तो सामरिक हलकों में नये सिरे से परमाणु हथियारों की होड़ शुरु होने का डर पैदा हुआ। इस बजट में  दो नये परमाणु हथियार औऱ दो नई मिसाइलों के विकास के लिये 19.8 अरब डालर का विशेष बढ़ा हुआ प्रावधान किया गया है। इनमें एक हैं डब्लू-93  मिसाइल  जिसकी क्या खासियतें होंगी इनका खुलासा नहीं किया गया है। लेकिन  अमेरिकी रक्षा अधिकारियों का कहना है कि इनका विकास 2034 तक हो पाएगा।

इसके अलावा एक औऱ किस्म की परमाणु मिसाइल 87-1 का विकास भी होगा जो कि वास्तव में  ज़मीन से छोड़ी जाने वाली मिसाइलों पर तैनात करने योग्य 40 साल पुराने थर्मो न्यूक्लियर वेपन का नया डिजाइन किया होगा और इसका विकास 2030 तक ही होने का अनुमान है।

परमाणु आधारित सामरिक नीति

इन नई मिसाइलों के विकास के फ़ैसलों से यह संकेत मिल रहा है कि अमेरिका अपनी सुरक्षा नीति को एक बार फिर परमाणु हथियारों पर केन्द्रित करने जा रहा है। हो सकता है कि  अगली बार डोनल्ड ट्रम्प फिर ह्वाइट हाउस में नहीं विराजमान हों, अगला राष्ट्रपति इन नई घातक मिसाइल प्रणालियों के विकास के कार्यक्रम को रोक सकता है।

अमेरिका को फिर महान बनाने का संकल्प लेने वाले ट्रम्प यदि फिर राष्ट्रपति बनते हैं तो दुनिया एक बार फिर परमाणु हथियारों की होड़ देखेगी, जिसके भयावह दुष्परिणाम भारत जैसे देशों के लिये होंगे।

बड़ी ताक़तों के पास हजारों औऱ सैंक़ड़ों की संख्या में परमाणु मिसाइलें हैं और दुश्मन की इन मिसाइलों से रक्षा के लिये इंटरसेप्टर मिसाइलें भी तैनात होने लगी हैं। ऐसे में अमेरिका नई किस्म की परमाणु मिसाइलों औऱ हथियारों का विकास क्यों करने जा रहा है

अंतरिक्ष युद्ध

इसमें पनडुब्बी से छोड़ी जाने वाली  डब्ल्यू-93 न्यूक्लियर वारहेड और नई किस्म की पारम्परिक इंटरमीडियट रेंज  मिसाइलें शामिल हैं। इन हथियारों के विकास के लिये बजट 2017 के दौरान किये गए प्रावधान से 50 प्रतिशत अधिक है। इसके अलावा अंतरिक्ष में तैनात किये जाने वाले नये सैन्य-संसाधनों के लिये साढ़े 15 अरब डालर दिए गए हैं।

बजट में हाइपरसोनिक हथियारों के लिये 3.2 अरब डॉलर का प्रावधान किया गया है। कहा जा रहा है कि छूटने के बाद इन मिसाइलों का पथ सीधे रास्ते पर नहीं होता, जिससे कोई भी एंटी-मिसाइल प्रणाली इनका नाश नहीं कर सकती।

बहाना रूस का

अमेरिकियों का  बहाना है कि रूस भी कुछ इसी किस्म के हथियारों का विकास कर रहा है, इसलिये उसे भी इस तरह का विकास कार्यक्रम शुरू करना पड़ा। शंका ज़ाहिर की जा रही है कि क्या अमेरिकी  मिसाइल प्रणालियों को तब तक तैनात किया जा सकेगा जब तक रूसी मिसाइल प्रणालियों की तैनाती हो चुकी होगी

राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने जब रूस के साथ एक दशक पहले नई स्टार्ट संधि ( सामरिक अस्त्र परिसीमन वार्ता) की थी, कहा था अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में परमाणु हथियारों की भूमिका गौण रहेगी।

इसके अलावा अमेरिका 21 वीं सदी में अमेरिका परमाणु हथियारों के ख़तरों को कम करने पर ज़ोर देगा। इसके साथ ही उन्होंने यह वचन भी दिया था कि अमेरिका की सुरक्षा के लिये सुरक्षित और प्रभावी परमाणु हथियारों का समुचित भंडार बनाए रखा जाएगा।

लेकिन ओबामा प्रशासन के इस संकल्प को तोड़ते हुए डोनल्ड ट्रम्प प्रशासन ने परमाणु हथियारों के नये प्रोजेक्ट शुरू करने का ऐलान कर दिया है। ट्रम्प के रक्षा बजट में पुराने हथियारों को अधिक प्रभावी बना कर इनका इस्तेमाल करने के इरादे से  भी नये बजटीय प्रावधान किये गए हैं। 

साफ है कि ट्रम्प दुनिया को एक बार फिर नये शीतयुद्ध के युग में ले जाने को आतुर हैं, जिससे परमाणु हथियारों का डर सारी दुनिया को सताएगा। अमेरिका, रूस औऱ चीन के बीच नये सिरे से शुरु हो रही परमाणु होड़ के जाल में भारत भी फंसे बिना नहीं रहेगा।

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