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भारत ने ब्रिटिश उच्चायुक्त को किया तलब, विरोध जताया

भारत ने ब्रिटिश उच्चायुक्त को किया तलब, विरोध जताया

विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को ब्रिटिश उच्चायुक्त को तलब किया और ब्रिटिश संसद में भारत के किसान आन्दोलन पर हुई बहस पर विरोध जताया। विदेश मंत्रालय ने ब्रिटिश संसद में हुई बहस को भारत के 'आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप' और 'वोटबैंक राजनीति' क़रार दिया।

कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आन्दोलन पर ब्रिटिश संसद में हुई बहस का मामला तूल पकड़ता जा रहा है और इसका असर दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों पर भी पड़ने लगा है। विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को ब्रिटिश उच्चायुक्त को तलब किया और उनसे इस बहस पर विरोध जताया। विदेश मंत्रालय ने ब्रिटिश संसद में हुई बहस को भारत के 'आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप' और 'वोटबैंक राजनीति' क़रार दिया। लंदन स्थित भारतीय उच्चायुक्त ने इसके पहले ही बयान जारी कर विरोध प्रकट किया था। 

बता दें कि ब्रिटिश संसद के निचले सदन हाउस ऑफ़ कॉमन्स की पिटीशन समिति को एक लाख से अधिक हस्ताक्षर वाला एक ई-पिटीशन सौंपा गया, जिसमें भारत में चल रहे किसान आन्दोलन पर सरकार की प्रतिक्रिया पर चिंता जताई गई थी। पिटीशन समिति ने इसे सदन को भेज दिया और उसके बाद सोमवार को इस पर हाउस ऑफ़ कॉमन्स में बहस हुई। इस बहस में लेबर पार्टी, कंजरवेटिव, लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और स्कॉटिश नेशनलिस्ट पार्टी के सांसदों ने भाग लिया।

मंगलवार को विदेश मंत्रालय ने ब्रिटिश उच्चायुक्त को तलब कर विरोध प्रकट किया। विदेश मंत्रालय ने उच्चायुक्त से कहा कि 'ब्रिटिश सांसद घटनाओं को ग़लत ढंग से पेश कर वोटबैंक राजनीति करने से बचें।'

ब्रिटिश संसद में बहस

ब्रिटेन की संसद में बहस के दौरान सांसदों ने कहा कि वे कृषि सुधारों पर बहस नहीं कर रहे हैं, वह देखना भारत का काम है। लेकिन जिस तरह बार-बार पुलिस व प्रदर्शनकारियों में झड़पें हुईं, पुलिस ने आँसू गैस के गोलों और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया, उससे वे चिंतित हैं। उन्होंने पत्रकारों की गिरफ़्तारी और इंटरनेट कनेक्शन काट देने पर भी चिंता जताई और कहा कि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले हो रहे हैं।

पहले तो लंदन में तैनात भारतीय उच्चायुक्त ने एक बयान जारी कर इस पर विरोध जताया और बहस में उठाए गए मुद्दों का जवाब दिया। उच्चायुक्त के एक बयान जारी कर कहा कि यह बहस 'एकतरफ़ा' और 'झूठे नैरेटिव पर आधारित' थी। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले नहीं हो रहे हैं, यह इससे साबित होता है कि ब्रिटिश प्रेस समेत विदेशी मीडिया ने किसान आन्दोलन की रिपोर्टिंग की है।

 - Satya Hindi

ब्रिटिश संसद का हाउस ऑफ़ कॉमन्स

भारतीय उच्चायुक्त ने एक बयान में कहा था, 'हमें बेहद अफसोस है कि एक संतुलित बहस के बजाय, झूठे दावे - बिना किसी पुष्टि या तथ्यों के - किए गए और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और इसके संस्थानों पर संदेह जताया गया।'

क्या कहना है अमेरिका, कनाडा का?

इसके पहले अमेरिका ने कृषि क़ानूनों का स्वागत किया था और कहा कि यह कृषि सुधार है और इससे कृषि क्षेत्र की कार्यकुशलता बढ़ेगी।

लेकिन इसके पहले कनाडा के एक सांसद ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को चिट्ठी लिख कर किसान आन्दोलन से निपटने के भारत सरकार के तरीकों पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वे नई दिल्ली के साथ यह मुद्दा उठाएं। कनाडा के प्रधानमंत्री ने किसान आन्दोलन पर चिंता जताई थी। इस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि यह भारत का आंतरिक मामला है। विदेश मंत्रालय ने कनाडा को याद दिलाया था कि किस तरह वह कृषि सब्सिडी के ख़िलाफ़ है और विश्व व्यापार संगठन की बैठकों में इस पर ज़ोर देता रहा है कि कृषि सब्सिडी में कटौती की जाए।

किसानों के प्रदर्शन पर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बोलने के क़रीब 4 दिन बाद भारत ने कनाडा के उच्चायुक्त को तलब किया था। इसके साथ ही औपचारिक तौर पर भारत ने ट्रूडो के बयान की निंदा की थी। इसके अलावा भारत ने कनाडा के दूसरे सांसदों द्वारा किसानों के प्रदर्शन पर भी बोलने पर आपत्ति की थी। 

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