'लिव विथ कोरोना' नहीं साहब, 'लाइफ़ फ़र्स्ट', चीन से सीखो मोदी जी!
कोरोना संक्रमण के लिए दुनिया भर में भले ही चीन की सरकार की आलोचना की जाती है या उसे घेरा जाता है लेकिन उसने इस महामारी से लड़ने के लिए जो संदेश दिया है, वह दुनिया के अनेक देशों के लिए सबक है। विशेषतः हमारे देश की केंद्र सरकार और उन राज्य सरकारों के लिए जो दो महीने तक लोगों को घरों में कैद करने के बाद "लिव विथ कोरोना" या हमें करोना के साथ जीना सीखना होगा का ज्ञान परोसने लगी हैं।
एक के बाद एक 4 लॉकडाउन के बाद हमारे देश में स्थिति "माया मिली न राम" जैसी हो गयी है, यानी न तो अर्थव्यवस्था को संभाला जा सका और न ही कोरोना पर कोई नियंत्रण पाया जा सका।
कोविड-19 पर "श्वेत पत्र" जारी
चीन सरकार ने 7 जून को कोविड-19 के ख़िलाफ़ चीन की कार्रवाई पर "श्वेत पत्र" जारी किया है और उसमें जिस बात को सबसे प्रमुखता से उठाया है वह "लाइफ फर्स्ट" है। इस श्वेत पत्र में एक ही विचारधारा को दर्शाया है और वह है, जनता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सरकार ने कहा कि इसी विचार से चीन ने तीन महीनों के भीतर इस संक्रमण को खत्म करने में सफलता पाई है।
श्वेत पत्र में वर्ष 2019 की 27 दिसंबर को प्रथम अज्ञात निमोनिया मामले से वर्ष 2020 के मई तक चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के समापन तक महामारी को रोकने वाले कार्यों का सारांश दिया गया है। किस तरह से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने महामारी फैलने के बाद 14 बार चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पोलित ब्यूरो की स्थायी सदस्य बैठकों की अध्यक्षता की और वुहान सहित कई क्षेत्रों का दौरा किया और सभी सरकारी योजनाओं में समन्वय बिठाने का जो काम किया, उसका उल्लेख किया गया है।
हर व्यक्ति की जान बचाने की कोशिश
साथ ही इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि चीन ने हर एक संक्रमित रोगी, जिसमें तीस दिन के शिशु और सौ वर्ष की उम्र के बुजुर्ग तक शामिल हैं, की जान बचाने के लिए किसी भी कीमत पर कोशिश की और सबसे गंभीर रोगियों के इलाज में सबसे श्रेष्ठ डॉक्टर और सबसे उन्नतिशील उपकरणों को जुटाया गया।
वर्ष 2020 की 31 मई तक चीन में नये कोरोना वायरस निमोनिया रोगियों की इलाज दर 94.3% तक रही। चीन में कोविड-19 के रोगियों के इलाज का खर्च सरकार के द्वारा उठाया गया है। स्वास्थ्य सेवा के मामले में ही नहीं, महामारी की रोकथाम के बाद आर्थिक बहाली या अर्थव्यवस्था को किस तरह से पटरी पर लाया गया, इस बात का जिक्र भी श्वेत पत्र में किया गया है।
श्वेत पत्र में कहा गया है कि अप्रैल माह के अंत तक चीन में अपेक्षाकृत बड़े कारोबारों में उत्पादन की बहाली दर 99 प्रतिशत रही। छोटे व मझोले कारोबारों में उत्पादन की बहाली दर 88.4 प्रतिशत रही। 95 प्रतिशत भारी परियोजनाओं का निर्माण फिर से शुरू होने लगा है।
इस महामारी से लड़ने के लिए हमें चीन से सीखने की इसलिए भी ज़रूरत है क्योंकि भारत की तरह ही चीन में भी विशाल जनसंख्या है। लॉकडाउन के दौर में देश के नाम संबोधन में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार यूरोपीय देशों में बढ़ रहे कोरोना संक्रमण के आंकड़े बताकर यह जताने का प्रयास कर रहे थे कि हमारे यहां स्थिति बेहतर है, लेकिन अब भ्रम अब टूट चुका है।
बात आंकड़ों की करें तो देश का एक सूबा, महाराष्ट्र ही अब संक्रमण के मामले में चीन को पीछे छोड़ चला है। हमारे देश की अर्थव्यवस्था विश्व में पांचवें क्रमांक की हो या न हो लेकिन कोरोना संक्रमण को लेकर हम दुनिया के प्रमुख पांच देशों की श्रेणी में आ चुके हैं और यह स्थिति कोरोना संक्रमण की जांच कम होने के आरोपों के बाद की है।
चीन में कोरोना ने जन्म ज़रूर लिया लेकिन उस देश ने इस संक्रमण के साथ जीने का नारा अपने देशवासियों को नहीं दिया। उसने अपने संसाधनों से इस संक्रमण को ख़त्म कर एक नए चीन का निर्माण करने का नारा दिया है।
भारत में कोरोना से लड़ने की जो कवायदें केंद्र सरकार की तरफ से की गयी हैं, उनका आकलन करें तो यह कहा जा सकता है कि इसे नासूर बनने दिया गया है। जिस तरह से मरीजों की संख्या बढ़ रही है उसे देख कर तो यही लग रहा है कि इस महामारी का "महाकाल" तो अब शुरू होने वाला है।
सोमवार से देश में अनलॉक का महत्वपूर्ण चरण शुरू हुआ है और आज स्थिति यह है कि देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई में अस्पतालों में मरीजों के लिए बेड की कमी है।
बिना सोचे-समझे किया गया लॉकडाउन!
बीते कुछ दिनों से हर दिन संक्रमण का आंकड़ा एक नया रिकॉर्ड दर्ज करा रहा है। दो लाख संक्रमितों की स्थिति में अनलॉक की घोषणा करने से बेहतर क्या यह नहीं था कि 500 संक्रमितों के समय किये गये पहले लॉकडाउन को नियोजित तरीके से किया जाता। करोड़ों मजदूरों और परिवारों को कम से कम इस तरह पलायन तो नहीं करना पड़ता। मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल को "पॉलिसी पैरालिसिस" की संज्ञा दी जा सकती है तो मोदी 2.0 को क्या कहा जाना चाहिए
सरकार द्वारा घोषित तमाम योजनाओं का रंग बदरंग होता दिख रहा है। अर्थव्यवस्था हो, स्वास्थ्य और रोजगार हो या किसानों की उपज को उचित दाम दिलाने का मामला, सबने निराश ही किया है। सरकारी आंकड़ों में विकास की गंगा बहायी जा रही है लेकिन देश में वे करोड़ों लोग जो रोजगार और बेहतर जिंदगी की आशा में महानगरों में किस्मत चमकाने गए थे, आज जान बचाने के लिए नंगे पैर अपने घरों को लौट रहे हैं।