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क्या फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर भारत का रुख बदला? जानें अब क्या दी सफ़ाई

क्या फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर भारत का रुख बदला? जानें अब क्या दी सफ़ाई

हमास-इज़राइल संघर्ष के तुरंत बाद भारत के रुख पर सवाल पूछा जा रहा था कि क्या फिलीस्तीन पर भारत का रवैया बदल गया है? अब इस पर ठोस और आधिकारिक सफाई आई है। जानिए, विदेश मंत्रालय ने क्या कहा है। 

हमास ने जब इज़राइल पर हमला किया तो पहली प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि वह 'इजराइल में आतंकवादी हमलों की खबर से सदमे' में हैं और भारत इस कठिन समय में इजराइल के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है। उनके इस बयान से एक बड़ा संदेश गया और सवाल उठा कि क्या फिलिस्तीन पर भारत का रुख बदल गया है। लगातार यह सवाल पूछा जाता रहा, लेकिन विदेश मंत्रालय की ओर से साफ़ तौर पर कुछ भी नहीं कहा गया था। अब विदेश मंत्रालय ने इस पर आधिकारिक बयान जारी किया है। 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा है, 'इस संबंध में हमारी नीति लंबे समय से और लगातार वही रही है। भारत ने हमेशा सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना और इजराइल के साथ शांति से रहने के लिए सीधी बातचीत बहाल करने की वकालत की है।'

विदेश मंत्रालय का यह बयान गुरुवार को तब आया जब इसने साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में मीडिया को संबोधित किया। इसमें सवालों के जवाब में उन्होंने फिलीस्तीन पर भारत की नीति को स्पष्ट किया और इस पर जोर दिया कि इसकी लंबे समय से जो नीति रही है उसमें कोई बदलाव नहीं आया है। हालाँकि, उन्होंने आतंकवादी कृत्य की आलोचना की। बता दें कि 7 अक्टूबर को इज़राइल पर हमास के अभूतपूर्व हमले के कुछ घंटों बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवादी हमलों पर गहरा क्षोभ व्यक्त करते हुए एक्स पर एक बयान पोस्ट किया था और कहा था कि 'हम इस कठिन समय में इज़राइल के साथ एकजुटता से खड़े हैं।'

भारत की ओर से इज़राइल का समर्थन देना काफ़ी अहम है, क्योंकि इसने शुरुआत से ही फिलिस्तीन के मुद्दे का समर्थन किया है। 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ मतदान किया था। फिलिस्तीन के नेता यासर अराफात कई बार भारत आए। उनके इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक के नेताओं से अच्छे संबंध रहे। 1999 में तो फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात तत्कालीन पीएम वाजपेयी के घर पर उनसे मिले थे।

2015 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, 2012 में तत्कालीन विदेश मंत्री एस एम कृष्णा, 2000 में तत्कालीन गृहमंत्री एल के आडवाणी और तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने फिलिस्तीन का दौरा किया था। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में पहली बार फिलिस्तीन की ऐतिहासिक यात्रा की थी। उनसे पहले 2016 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर भी फिलिस्तीन गए थे।

हाल के दिनों में भारत की नीति इज़राइल की तरफ़ झुकी हुई दिखती है। पीएम मोदी के कार्यकाल के दौरान इज़राइल के साथ संबंध बेहद घनिष्ठ हुए हैं। इसी बीच हमास का हमला हुआ और प्रधानमंत्री ने इज़राइल को समर्थन की बात कही।

बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार को भी कहा, 'नेतन्याहू से फोन पर बात हुई। उन्होंने मौजूदा स्थिति पर अपडेट जानकारी दी। भारत के लोग इस कठिन समय में इजराइल के साथ मजबूती से खड़े हैं। भारत आतंकवाद के सभी रूपों और उसकी गतिविधियों की मज़बूती से और साफ़ तौर पर निंदा करता है।' इसके बाद से लगातार सरकार से सवाल किए जाते रहे।

पाँच दिन बाद इज़राइल-हमास युद्ध पर अपने पहले आधिकारिक बयान में भारत ने इसको साफ़ किया है। विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक ब्रीफिंग में सवालों के जवाब में कहा कि 'अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करना एक सार्वभौमिक दायित्व है' और सभी तरह के आतंकवाद के ख़तरे से लड़ना भी एक वैश्विक जिम्मेदारी है। इस बयान में इजराइज और हमास दोनों को संदेश देने की कोशिश की गई।

बता दें कि फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि इजरायली नागरिकों के खिलाफ लक्षित हमलों में इजराइली पक्ष के 1,300 लोगों की जान चली गई है और इजराइली हवाई हमलों के कारण ग़ज़ा में मरने वालों की संख्या 1,350 से अधिक हो गई है। हमास-इज़राइल युद्ध को लेकर अब भारत ने वहाँ से अपने लोगों को निकालना शुरू किया है। इज़राइल से पहली उड़ान भारत पहुँच चुकी है। 

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