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टैक्स से सरकार का खजाना तो भर गया, टैक्सपेयर के लिए क्या?

टैक्स से सरकार का खजाना तो भर गया, टैक्सपेयर के लिए क्या?

देश में लक्ष्य से ज़्यादा टैक्स वसूली का फायदा किसे मिलेगा? क्या जनता के उस वर्ग को राहत मिलेगी जिसने तमाम बाधाओं को पार करते हुए देश में खपत को बढ़ावा दिया?

देश में टैक्स वसूली के आँकड़े लगातार आ रहे हैं और वित्त मंत्रालय की बाँछें खिलती जा रही हैं। वसूली का वर्षों का रिकॉर्ड न केवल टूट गया बल्कि अभी और भी राजस्व आने की उम्मीद है। आँकड़ों से पता चलता है कि कोविड महामारी का असर अर्थव्यवस्था से हट गया है और लोग जमकर खरीदारी कर रहे हैं। यह खरीदारी ही भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है और इसकी तेजी ही देश को आगे रखेगी। इसमें कोई भी कमी फिर से उसके क़दम खींच लेगी।

इनकम टैक्स विभाग ने बताया है कि वित्त वर्ष 2022-23 में देश की डायरेक्ट टैक्स वसूली में 25.90 फीसदी बढ़ी है। 17 दिसंबर तक कुल राजस्व बढ़कर 13,63,649 करोड़ रुपये हो गया है जबकि पिछले साल यह 10,83,150 करोड़ रुपये था। इस वसूली में 7,25,036 करोड़ रुपये व्यक्तिगत टैक्स वसूली है। इससे पता चलता है कि देश में कोविड महामारी के बाद लोगों की आय भी बढ़ी है।

वित्त मंत्रालय ने हाल में एक ट्वीट किया था जिससे पता चलता है कि नवंबर तक डायरेक्ट टैक्स वसूली में आशातीत बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2022-23 में कुल वसूली पिछले साल की तुलना में 22.26 फ़ीसदी बढ़ी। यह बजट अनुमानों का 61.79 फ़ीसदी है। इसका मतलब है कि अभी शेष चार महीनों में यह लक्ष्य से कहीं ज़्यादा हो जायेगी। उधर देश में इनकम टैक्स वसूली भी तेजी से बढ़ी है और नवंबर महीने में यह 8.77 लाख करोड़ रुपये हो गई जो पिछले साल के इसी महीने की तुलना में 24.3 फ़ीसदी ज़्यादा है।

जीएसटी जिसे भविष्य का राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत माना जा रहा था उसकी भी वसूली बढ़ी है। अक्टूबर महीने में जीएसटी वसूली 1,51,718 करोड़ रुपये थी जो अब तक की सबसे ज्यादा माहवार वसूली है। हालाँकि नवंबर में इसमें थोड़ी गिरावट आई और यह 1,45,867 करोड़ रुपये थी। इसका कारण संभवतः यह था कि अक्टूबर महीने में सबसे बड़े-बड़े त्योहार जैसे दशहरा, दिवाली वगैरह मनाये जा रहे थे। लेकिन एक ट्रेंड साफ दिख रहा है कि जीएसटी वसूली में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 

पूर्व वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली ने उम्मीद ज़ाहिर की थी कि जीएसटी वसूली शीघ्र ही हर महीने दो लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो जायेगी। हालांकि कोविड के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ लेकिन अब चूंकि इकोनॉमी में तेजी आती दिख रही है, इस लक्ष्य तक पहुंचना आसान दिख रहा है। यानी आने वाले समय में सरकार की टैक्स वसूली और बढ़ेगी। लेकिन इसके लिए राज्यों को भी प्रयास करना होगा क्योंकि जीएसटी चोरी की समस्या यूपी सहित कई राज्यों में बहुत ज़्यादा है। इस पर अंकुश लगाना होगा ताकि जीएसटी वसूली बढ़े।

बहरहाल, देश में लक्ष्य से ज़्यादा टैक्स वसूली का फायदा किसे मिलेगा, यह सवाल उठ खड़ा हुआ है। क्या जनता के उस वर्ग को राहत मिलेगी जिसने तमाम बाधाओं को पार करते हुए देश में खपत को बढ़ावा दिया। यहाँ पर यह याद रखने वाली बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है न कि निर्यात पर। इस कारण सरकार को इस बात का ध्यान रखना ही होगा कि खपत कम नहीं हो जैसा कोविड काल में हुआ था। उन दिनों लाखों लोगों से रोजगार छिन गया था और लाखों नौकरियों से निकाल दिये गये थे। इसका नतीजा साफ हुआ कि देश में खपत गिर गई और जीडीपी भी लुढ़क गई थी। लेकिन जैसे-जैसे स्थिति में सुधार हुआ यह ऊपर जाने लगा क्योंकि देश के करोड़ों मिडल क्लास के लोगों ने फिर से खरीदारी शुरू की। 

ऐसा नहीं था कि मिडल क्लास के पास पैसे आ गये या नौकरियों की भरमार हो गई। उन्होंने अपने बचत के जमा किये पैसे से और क्रेडिट कार्ड से भी खरीदारी की जिसका रिजल्ट सामने है। बाज़ार में खपत में तेजी आई।

लेकिन उसे मिला क्या? पिछले कई वर्षों से इनकम टैक्स में कोई छूट नहीं मिली है। आज भी महज ढ़ाई लाख रुपये प्रति वर्ष कमाने वाला टैक्स के जाल में फँसा हुआ है और उसके लिए कोई राहत नहीं है। यहाँ पर भारतीय जनता पार्टी को राष्ट्रीय चुनाव में जारी अपना ही घोषणा पत्र देखना चाहिए जिसने कहा था कि सत्ता में आने के बाद पार्टी इनकम टैक्स की न्यूनतम सीमा पांच लाख रुपये सालाना कर देगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। नौकरीपेशा वर्ग टैक्स के जाल से बच ही नहीं सकता। तीन लाख रुपए सालाना कमाने वाले व्यक्ति से अगर कहा जाये कि वह आयकर की धारा 80सी के तहत एक लाख 80 हजार रुपए बचत करके टैक्स बचा ले तो यह बहुत बड़ा मजाक है। पिछले दो सालों से महंगाई का यह आलम है कि रिजर्व बैंक बार-बार चिंता व्यक्त कर रहा है और उसके गवर्नर शक्ति कांत दास अब तक पांच बार रेपो रेट बढ़ा चुके हैं। मिडल क्लास के ढाई लाख रुपये क्या पाँच लाख रुपय़े भी अब सही मायनों में उतनी खरीदारी नहीं कर सकते जितना पहले करते थे। यानी महँगाई के कारण आपकी कमाई घट गई है।

सरकार इस समय तरह-तरह की सब्सिडी पर अरबों रुपये ख़र्च करती है जिसमें अकेले खाद्यान्न सब्सिडी पर 2,06,831 करोड़ रुपये ख़र्च करती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार के पास गुंजाइश है कि वह मिडल क्लास के लिए भी प्रावधान कर सकती है। इस साल के बजट में सरकार अगर सब्सिडी घटाती है तो उसके पैसे से इनकम टैक्स में राहत दे सकती है जो उसके लिए बड़ी बात होगी। यह ज़रूरी इसलिए भी है कि इससे ही ख़पत बढ़ेगी और कारखानों के पहिए भी तेजी से घूमेंगे।

समस्या यह है कि वोट की राजनीति और राजनीतिक दबाव में आकर सरकारें ऐसे क़दम उठाती रहती हैं जिनसे कुछ मिलता तो है नहीं, सारा धन बेकार जाता है। मिडल क्लास कोई संगठित वोट बैंक नहीं है और उसके लिए आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं है। इस देश का यह दुर्भाग्य है कि अब हर चीज का फ़ैसला वोट बैंक के हाथों में है। वह वर्ग जो देश के विकास में योगदान करता है, अपने ख़र्चों में कटौती करके बचत योजनाओं में पैसा लगाता है, उपेक्षित रहता है। राजनीतिक कारणों से उसकी बात सुनी नहीं जाती है। यह वर्ग है जो न केवल राजस्व में बड़ा योगदान देता है बल्कि कई ऐसे काम भी करता है जिससे देश का नाम रोशन होता है। इस बार के बजट में अगर सरकार उसकी बात सुनती है तो यह देश हित में होगा।

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