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डेल्टा वैरिएंट ने तबाही मचाई थी, क्या सबक़ लेकर ओमिक्रॉन से बचेंगे?

डेल्टा वैरिएंट ने तबाही मचाई थी, क्या सबक़ लेकर ओमिक्रॉन से बचेंगे?

अब जब ओमिक्रॉन का ख़तरा सिर पर है तो क्या सरकार और दूसरी एजेंसियाँ डेल्टा वैरिएंट और कोरोना की दूसरी लहर से सबक़ सिखेंगी? क्या सावधानी बरती जाएगी, क्या चुनावी रैलियों को नियंत्रित किया जाएगा?

दक्षिण अफ्रीका में मिले नये वैरिएंट ओमिक्रॉन से पूरी दुनिया में हलचल तेज है, तो भारत में इससे बचने के लिए कैसी तैयारी है? इसका अंदाज़ा आप ख़ुद ही लगा लीजिए। 

याद कीजिए, कोरोना की दूसरी लहर से पहले का वक़्त। तब लोगों ने मास्क उतार फेंके थे। लोग सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को धता बता रहे थे। कोरोना लॉकडाउन के नियमों के उल्लंघन के मामले आ रहे थे। पाबंदियों में ढील दी गई थी। स्कूल-कॉलेज खुल गए थे। और सबसे बड़ी बात जो हुई थी वह यह कि उसी दौरान चुनाव कराए गए थे। रैलियों में भीड़ जुटाने की होड़ लगी थी। नेता 'अप्रत्याशित भीड़' का बखान कर रहे थे। क्या मौजूदा हालात कुछ वैसे ही नहीं लगते?

कोरोना के नये ख़तरे के बीच मौजूदा समय में बाज़ारों में किसी के चेहरे पर मास्क शायद ही दिखता है! सोशल डिस्टेंसिंग की तो बात ही दूर है। चुनाव आयोग कई राज्यों में चुनाव कराने वाला है। चुनावी रैलियाँ शुरू भी हो गई हैं। उन रैलियों में कोरोना संक्रमित व्यक्ति यदि पहुँच जाएँ तो पिछले साल के महाकुंभ जैसे हालात न हो जाएं। 

उस तरह का डर इस वजह से है कि दक्षिण अफ्रीका में मिले ओमिक्रॉन वैरिएंट के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें बड़ी संख्या में म्यूटेंट हैं। भारत में दूसरी लहर के लिए ज़िम्मेदार डेल्टा वैरिएंट में दो या तीन म्यूटेंट थे। दक्षिण अफ़्रीका में आये नये वैरिएंट के बारे में जो शुरुआती आकलन आया है वह चिंतित करने वाला है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शुरुआती साक्ष्य से पता चलता है कि जिन लोगों को पहले कोरोना संक्रमण हो चुका है उनको 'ओमिक्रॉन' के फिर से संक्रमण का ख़तरा बढ़ सकता है। ऐसे लोग अधिक आसानी से दोबारा संक्रमित हो सकते हैं।

इस नये संक्रमण की शुरुआती जो रिपोर्टें आ रही हैं उससे दुनिया भर में चिंताएँ फैली हैं। ये चिंताएँ इस रूप में भी देखी जा सकती हैं कि जिन देशों में ओमिक्रॉन वैरिएंट के मामले आए हैं उन देशों की अंतरराष्ट्रीय उड़ानें कई देशों ने बंद कर दी हैं।

ब्रिटेन, इटली, जर्मनी जैसे देशों ने दक्षिण अफ्रीका की अपनी उड़ानें रद्द कर दी हैं। दूसरे कई देश कई तरह की पाबंदियाँ लगा रहे हैं। 

भारत में भी इसके लिए तैयारी की जा रही है। रविवार को ही केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे ओमिक्रॉन को लेकर सख्ती से क्वारेंटीन और आइसोलेशन की व्यवस्था लागू करें। साथ ही सभी को तत्काल आरटी-पीसीआर टेस्टिंग बढ़ाने और एक्टिव सर्विलांस शुरू कराने का आदेश दिया गया है।

 - Satya Hindi

लेकिन क्या यह निर्देश ही काफ़ी है? क्या राजनैतिक नेतृत्व इसको लेकर सक्रिय है जिससे किसी अप्रत्याशित स्थिति से निपटा जाए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज ही यानी सोमवार को कहा है कि नए कोविड वैरिएंट को लेकर हम सभी को सतर्क रहना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से पहले अपने संबोधन में कहा, 'हमने महामारी के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान कोविड के टीकों की 100 करोड़ से अधिक खुराक दी है। अब हम 150 करोड़ खुराक की ओर बढ़ रहे हैं। एक नए कोरोना वैरिएंट के उभरने की ख़बर से हमें और अधिक सतर्क रहने की ज़रूरत है।'

लेकिन सवाल है कि क्या यह सतर्कता बनी रहेगी? ख़बर है कि ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के चुनाव प्रचार में व्यस्त रहने वाले हैं। वह राज्य में बड़ी संख्या में रैलियाँ करेंगे। समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, बसपा जैसी दूसरी पार्टियों के नेता भी ऐसी ही रैलियाँ करेंगे। अब चुनावी रैलियों में कोरोना से बचाव के कितने उपाय किए जा सकते हैं, यह इसी साल की शुरुआत में पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों के चुनावों में दिख चुका है। यही वह वक़्त था जब भारत में दूसरी लहर आई थी और हर रोज़ 4 लाख से ज़्यादा संक्रमण के मामले आने लगे थे। गंगा में शव तैरते मिले थे और रेतों में शव दफनाए जाने वाली तसवीरें सामने आई थीं। भारत ने ऐसी तबाही शायद ही कभी देखी हो। 

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान चुनाव आयोग की भी तीखी आलोचना हुई थी। यह आलोचना इसलिए हुई थी कि कोरोना नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गई थीं। मद्रास हाईकोर्ट ने तो उतने बड़े पैमाने पर संक्रमण के लिए चुनाव आयोग को ज़िम्मेदार ठहराते हुए जमकर फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए किसी एक को ज़िम्मेदार ठहराना हो, तो अकेले चुनाव आयोग ज़िम्मेदार है। कोर्ट ने कहा था कि 'यह जानते हुए भी कि कोरोना का ख़तरा टला नहीं है, इसके बावजूद चुनावी रैलियों पर रोक नहीं लगाई। इसके लिए चुनाव आयोग के अधिकारियों पर हत्या का मामला चलाया जाना चाहिए।'

अब जब ओमिक्रॉन का ख़तरा सिर पर है तो क्या सरकार और दूसरी एजेंसियाँ डेल्टा वैरिएंट और कोरोना की दूसरी लहर से सबक़ सिखेंगी?

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