पाकिस्तान ने गजब की पलटी खाई है। यह किसी शीर्षासन से कम नहीं है। पाकिस्तान सरकार के मंत्रिमंडल की आर्थिक सहयोग समन्वय समिति ने परसों घोषणा की कि वह भारत से 5 लाख टन शक्कर और कपास खरीदेगा लेकिन 24 घंटे के अंदर ही मंत्रिमंडल की बैठक हुई और उसने इस घोषणा को रद्द कर दिया।
यहां पहला सवाल यही है कि उस समिति ने यह फैसला कैसे किया? उसके सदस्य मंत्री लोग तो हैं ही, बड़े अफसर भी हैं। क्या वे प्रधानमंत्री से सलाह किए बिना भारत-संबंधी कोई फैसला अपने मनमाने ढंग से कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। उन्होंने प्रधानमंत्री इमरान खान की इजाजत ज़रूर ली होगी।
लेकिन जैसे ही परसों दोपहर समिति ने यह घोषणा की, पाकिस्तान के विरोधी दलों ने इमरान सरकार पर हमला बोलना शुरू कर दिया। उन्हें कश्मीरद्रोही कहा जाने लगा। कट्टरपंथियों ने इस फैसले के विरोध में प्रदर्शनों की धमकी भी दे डाली।
इमरान इतने मजबूत आदमी हैं कि वे इन धमकियों की भी परवाह नहीं करते, क्योंकि उन्हें अपने कपड़ा-उद्योग और आम आदमियों की तकलीफों को दूर करना था। कपास के अभाव में पाकिस्तान का कपड़ा उद्योग ठप होता जा रहा है, लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए हैं और शक्कर की महंगाई ने पाकिस्तान की जनता के मजे फीके कर दिए हैं।
ये दोनों चीजें अन्य देशों में भी उपलब्ध हैं लेकिन भारत के दाम लगभग 25 प्रतिशत कम हैं और परिवहन-खर्च भी नहीं के बराबर है। इसके बावजूद इमरान को इसलिए दबना पड़ रहा है क्योंकि फौज़ ने कश्मीर को लेकर सरकार का गला दबा दिया होगा। क्योंकि जब तक कश्मीर का मसला जिंदा है, फौज का दबदबा कायम रहेगा।
इमरान, भला फौज़ की अनदेखी कैसे कर सकते हैं? इसीलिए मानव अधिकार मंत्री शीरीन मज़ारी ने अपने वित्त मंत्री हम्माद अजहर की घोषणा को रद्द करते हुए कहा है कि जब तक भारत सरकार कश्मीर में धारा 370 और 35 ए को फिर से लागू नहीं करेगी, आपसी व्यापार बंद रहेगा। आपसी व्यापार 9 अगस्त, 2019 से इसलिए पाकिस्तान ने बंद किया था कि 5 अगस्त को कश्मीर से इन धाराओं को हटा दिया गया था।
इसके पहले ही भारत ने पाकिस्तानी चीज़ों के आयात पर 200 प्रतिशत का तटकर लगा दिया था। पाकिस्तान को भारत से होने वाले निर्यात में 60 प्रतिशत कमी हो गई थी और भारत में पाकिस्तानी निर्यात 97 प्रतिशत घट गया था। पिछले एक साल में कपास का निर्यात लगभग शून्य हो गया है। अब पाकिस्तान सरकार ने खुद अपने फैसले को उलट दिया। भारत सरकार को हाँ या ना कहने का मौका ही नहीं मिला।
पाकिस्तान की इस घोषणा से यह सिद्ध होता है कि पाकिस्तान की जनता को तो भारत से व्यवहार करने में कोई एतराज नहीं है लेकिन फौज़ उसे वैसा करने दे, तब तो! इसीलिए मैं कहता हूं कि भारत और पाकिस्तान की फौजे़ें और सरकारें जो करना चाहें, करती रहें लेकिन दोनों मुल्कों और सारे दक्षिण और मध्य एशिया के देशों की आम जनता का एक ऐसा लोक-महासंघ खड़ा किया जाना चाहिए, जो भारत के सभी पड़ोसी-देशों का हित-संपादन कर सके और फौज़ी व सरकारी दबावों का मुकाबला कर सके।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)