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कब तक नहीं करेंगे बात भारत-पाकिस्तान?

कब तक नहीं करेंगे बात भारत-पाकिस्तान?

शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन के मौके पर बिश्केक में यह साफ़ हो गया कि भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत फ़िलहाल तो नहीं होने को है। आख़िर कब तक ऐसा चलेगा?

क्या भारत-पाकिस्तान रिश्ते सबसे ख़राब दौर में हैं? क्या दोनों देश अपनी-अपनी घोषित स्थिति से थोड़ा भी नहीं हिल सकते और एक-दूसरे को थोड़ी भी रियायत नहीं दे सकते? यह सवाल अधिक महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि बीते दिनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने एक तीसरे देश में एक ही टेबल पर खाना खाया, लेकिन उनके बीच दुआ-सलाम तक नहीं हुई। उनके बीच तीन कुर्सियों का फ़ासला था। उसी जगह एक कॉन्सर्ट में दोनों एक ही लाइन में लगी कुर्सियों पर बैठे रहे, किसी ने किसी से हाल चाल तक नहीं पूछा। दोनों के बीच सात कुर्सियों का फ़ासला था।

दक्षिण एशिया के इन दो पड़ोसियों के बीच का तनावपूर्ण सम्बन्ध इस तरह समझा जा सकता है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते अपने ‘सबसे निचले बिन्दु’ पर हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह उम्मीद जताई कि ‘मोदी को जो विशाल जनमत मिला है, वह उसका इस्तेमाल रिश्ते सुधारने में करेंगे।’

क्या हुआ बिश्केक में?

क्या वाकई ऐसा होगा? इसकी संभावना फ़िलहाल तो नहीं दिखती है। शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के नेता मौजूद थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने सऊदी अरब और दूसरे कई देशों के नेताओं से मुलाक़ात की, भारत के प्रधानमंत्री ने रूस, चीन और ईरान के राष्ट्रपतियों से मुलाक़ात की।

दक्षिण एशिया के दोनों पड़ोसी देशों के नेताओंं ने आपस में कोई मुलाक़ात नहीं की। सामने पड़ने पर एक-दूसरे से कन्नी काटी, हाथ नहीं मिलाया, हाल-चाल नहीं पूछा।

हालाँकि इमरान ख़ान ने शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रवाना होने से पहले यह उम्मीद जताई थी कि वह मोदी से मिलना चाहेंगे। पर ऐसा नहीं हुआ।

ऐसा पहले नहीं हुआ कभी

‘लव-हेट रिलेशन’ में रहने वाले दोनों देशों के सम्बन्ध इतने बुरे पहले नहीं थे। जून 2017 में भी दोनों देशों के प्रधानमंत्री शंघाई सहयोग संगठन में भाग लेने के लिए कज़ाख़स्तान की राजधानी अस्ताना गए हुए थे। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ थे। दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच कोई मुलाक़ात या बैठक तय नहीं थी। पर जब दोनों एक कन्सर्ट में थे, नरेंद्र मोदी चल कर नवाज़ शरीफ के पास गए थे, उनसे हाथ मिलाया था, बातचीत की थी। कुछ दिन पहले ही शरीफ़ का ऑपरेशन हुआ था, उसके बारे में मोदी ने पूछा। उन्होंने शरीफ़ की माँ का हालचाल भी पूछा। पर इस बार ऐसा नहीं हुआ।

बिश्केक जाने के लिए पाकिस्तान की हवाई सीमा का इस्तेमाल करने की अनुमति भारत ने माँगी, जिसे पाकिस्तान ने सैद्धान्तिक रूप से मान लिया। उसने कहा कि आगे की औपचारिकता पूरी की जा सकती है। पर इसके बाद भारत ने तय किया कि मोदी का जहाज़ दूसरे रास्ते जाएगा। वैसा ही हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री का विमान लंबा रास्ता तय कर चक्कर लगाते हुए दुबई के ऊपर से उड़ते हुए बिश्केक पहुँचा। यह सीधे पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान-कज़ाख़स्तान होते हुए भी किर्गिस्तान की राजधानी उतर सकता था।

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क्या कहना है पाकिस्तान का?

इमरान ख़ान ने शिखर सम्मेलन के पहले रूसी अख़बार ‘स्पुतनिक’ को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘हमने चुनाव के ठीक बाद भारत को यह संकेत दिया था कि हम बातचीत शुरू करना चाहते हैं। दरअसल, हमने चुनाव के पहले ही उससे यह कहा था।'

हमें लगा कि वहाँ एक तरह का उन्माद पैदा किया जा रहा है, दुर्भाग्यपूर्ण रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी पाकिस्तान-विरोधी हवा बना रही थी और उनके लोग दक्षिणपंथी हिन्दू राष्ट्रवादियों को अपील कर रहे थे, तो ऐसे में बातचीत की गुंजाइश नहीं बचती थी।


इमरान ख़ान, प्रधानमंत्री, पाकिस्तान

उन्होंने आगे कहा, ‘अब जबकि चुनाव ख़त्म हो चुके हैं, हमे उम्मीद है कि भारत का नेतृत्व इस मौके को समझेगा और पाकिस्तान जो प्रस्ताव दे रहा है, उसका भरपूर इस्तेमाल करेगा और इस तरह दोनों देशों के बीच के तमाम मुद्दे सुलझाए जा सकते हैं, दरअसल मुद्दों को सुलझाने का यही एक तरीका है।’

मोदी के पक्ष में इमरान?

यह सच है कि चुनाव के पहले भी दोनों देशों के बीच यह स्थिति नहीं थी। नरेंद्र मोदी ने इमरान ख़ान को पाकिस्तान दिवस पर फ़ोन कर बधाई दी थी। पाकिस्तान दिवस 23 मार्च को मनाया जाता है। इसकी जानकारी ख़ुद ख़ान ने ट्वीट कर दी थी और मोदी को धन्यवाद कहा था। 

चुनाव के ठीक पहले इमरान ख़ान ने एक अख़बार से बात करते हुए कहा था कि वह और उनकी पार्टी चाहती है कि भारत में होने वाले चुनाव में बीजेपी जीते और मोदी एक बार फिर प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने कहा था कि इससे दोनों देशों के बीच के रिश्ते सुधारने में मदद मिलेगी।

जैसा इमरान चाहते थे, चुनाव में बीजेपी ही जीती और मोदी ही प्रधानमंत्री बने। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने मोदी के जीतने पर फ़ोन कर बधाई दी और बातचीत जल्द शुरू करने का आग्रह किया। मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में 8 देशों के प्रधानों को न्योता दिया था, पर उनमें पाकिस्तान नहीं था। इसके ठीक बाद पाकिस्तान के विदेश सचिव भारत आए और कई अधिकारियों से मुलाक़ात की। उन्होंने एक बार फिर बातचीत शुरू करने पर ज़ोर दिया।

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चीन से शिकायत

इसके बाद ही बिश्केक शिखर सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की और पाकिस्तान की शिकायत की। उन्होंने कहा कि भारत तब तक पाकिस्तान से बातचीत शुरू नहीं कर सकता जब तक इस्लामाबाद आतंकवाद रोकने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाता और ऐसा नहीं दिखता है कि पाकिस्तान ऐसा कुछ कर रहा है।

क्या भारत वाकई पाकिस्तान से कोई बातचीत तब तक नहीं करेगा जब तक इस्लामाबाद आतंकवाद रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता है? लेकिन करतारपुर साहिब गलियारे पर तो बातचीत हुई और आगे भी होने पर दोनों देश राजी हैं।

पाक को रियायत नहीं?

क्या नई दिल्ली पाकिस्तान को रियायत नहीं देगा? पर भारत ने मसूद अज़हर के मामले में पाकिस्तान की बात मानी थी। उसने पड़ोसी देश की बात मान कर ही मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करते समय पुलवामा का जिक्र करने पर ज़ोर नहीं दिया था।

समझा जाता है कि इसकी पीछे सत्तारूढ़ दल की अपनी नीतियाँ है। यह सच है कि चुनाव के समय पाकिस्तान को मुद्दा बनाया गया था। ख़ुद प्रधानमंत्री ने चुनाव सभाओंं में विस्तार से बताया था कि किस तरह उन्होंने ‘पाकिस्तान के अंदर घुस कर मारा’, किस तरह ‘पाकिस्तान की नींद हराम हो गई’ और किस तरह ‘पाकिस्तान डर गया’। उन्होंने यहाँ तक कह दिया था कि ‘परमाणु बम दीवाली के लिए तो नहीं बनाए हैं।’ उन्होंने कहा था कि ‘यदि पाकिस्तान ने भारतीय वायु सेना के पायलट वर्तमान अभिनंदन को रहा नहीं किया होता तो वह क़यामत की रात होती क्योंकि उन्होंने हमले करने के लिए विमान तैयार रखने को कहा था।’

बीजेपी राष्ट्रवाद के मुद्दे पर इतनी आक्रामक थी कि पूरा विपक्ष सहमा हुआ था और किसी ने बीजेपी से सवाल नहीं किया। अब यकायक यदि वही मोदी पाकिस्तान के प्रति नरमी दिखाएँगे तो दिक्क़त होगी। वह इसे उचित नहीं ठहरा पाएँगे। इसलिए सरकार अपने तेवर ढीले नहीं कर रही है। यह इसके उग्र राष्ट्रवादी छवि के अनुरूप ही है।

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