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अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान को नहीं देगा भारत, गडकरी ने कहा

अपने हिस्से का पानी पाकिस्तान को नहीं देगा भारत, गडकरी ने कहा

पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की नीति के तहत केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एलान किया है कि भारत अपने हिस्से का पानी अब पाकिस्तान को नहीं देगा। 

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एलान किया है कि पाकिस्तान की ओर बहने वाली तीन नदियों के पानी का अपना हिस्सा भारत अब पाकिस्तान को नहीं देगा। इस पानी के इस्तेमाल और संचय के उपाय किए जाएँगे। उन्होंने कहा कि दोनों ही देशों को यह छूट है कि वह अपने हिस्से की तीन नदियों के पानी का पूरा इस्तेमाल करे। लेकिन भारत अपने हिस्से का पानी भी पाकिस्तान को देता रहा है। लेकिन अब इस पानी का इस्तेमाल यमुना में पानी बढ़ाने के लिए किया जाएगा। इन नदियों का पानी यमुना तक पहुँचाने के लिए परियोजना बनाई जाएगी। 

उन्होंने एक दूसरे ट्वीट में कहा कि रावी नदी पर शाहपुर-कान्डी में डैम बनाने का काम शुरु हो गया है। यूजीएच परियोजना बना कर जम्मू-कश्मीर के हिस्से का पानी रोक लिया जाएगा और बाकी पानी रावी-व्यास लिंक नहर में डाल दिया जाएगा। 

क्या है सिंधु नदी संधि?

भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर, 1960 को हुए सिंधु नदी समझौते में दोनों देशों के बीच छह नदियों के पानी का बँटवारा तय हुआ। तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने इस पर दस्तख़त किए थे। इस संधि के मुताबिक़, तीन पूर्वी नदियों रावी, व्यास और सतलज के पानी इस्तेमाल भारत कर सकेगा, जिसमें औसत 33 मिलियन एकड़ फ़ीट पानी बहता है। दूसरी ओर, पश्चिमी नदियों, सिंधु, झेलम और चेनाब के पानी पर पाकिस्तान का नियंत्रण होगा। इन नदियों में औसतन 80 मिलियन एकड़ फ़ीट पानी बहता है। संधि में यह भी प्रावधान था कि भारत अगले 10 साल तक पाकिस्तान को इन पूर्वी नदियों से पानी देने को बाध्य होगा। यह व्यवस्था भी की गई कि भारत 701,000 एकड़ पानी का इस्तेमाल सिंचाई वगैरह में कर सकेगा और यह अधिकतम 1.25 एकड़ पानी को जमा कर रख सकेगा। 

सिन्धु का पानी रोकना नामुमकिन है भारत के लिए

लेकिन वास्तविकता यह है कि इन पूर्वी नदियों का पानी भारत को देता है क्योंकि उसके पास इसके इस्तेमाल या संचय की सुविधा नहीं है। संधि के मुताबिक दोनों देश एक दूसरे की नदियों के पानी का इस्तेमाल नौका परिवहन, मछली पालन, सिंचाई वगैरह मे कर सकेंगे। 

सच्चाई तो यह है कि 1960 में दोनों पड़ोसियों के बीच हुए सिन्धु नदी जल समझौते के मुताबिक़, भारत को जो 20 फ़ीसदी पानी मिला था, उसके दोहन के लिए भी भारत आज तक कोई ख़ास इन्तज़ाम नहीं कर पाया है।

कश्मीर के गुरेज़ सेक्टर में किशनगंगा नदी पर एक बड़ी पनबिजली परियोजना ज़रूर चल रही है, लेकिन एक तो इसके बनकर तैयार होने में अभी दसियों साल और लगेंगे और दूसरा इसके बन जाने के बाद भी सिन्धु बेसिन के कुल पानी के मुक़ाबले उसके मामूली से हिस्से का ही दोहन हो पाएगा।

ऐसे में केंद्रीय मंत्री का कहना कि नदी का पानी रोक लेंगे, व्यवहारिक नहीं लगता है। ऐसा लगता है कि पुलवामा हमले के बाद सरकार यह दिखाना चाहती है कि वह पाकिस्तान पर दवाब डाल रही है, पर इससे पाकिस्तान पर कितना दबाव बनेगा, इस पर हर संदेह होना लाज़िमी है। 

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