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भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा कितना अहम? जानिए, इससे क्या बदलेगा

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा कितना अहम? जानिए, इससे क्या बदलेगा

जी20 शिखर सम्मेलन में भारत, सऊदी अरब, अमेरिका, खाड़ी व अरब देशों और यूरोपीय संघ को जोड़ने वाले व्यापक रेल और शिपिंग कनेक्टिविटी नेटवर्क की घोषणा की गई। आख़िर इसकी ज़रूरत क्यों?

क्या जी20 के दौरान घोषित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशियटिव यानी बीआरआई के जवाब में है? या फिर भारत को अरब देशों और यूरोप से जोड़ने की एक योजना भर? वैसे, इस गलियारे की घोषणा की वजह कई बताई जा सकती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे गेम चेंजिंग इनवेस्टमेंट क़रार दिया है।

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे यानी आईएमईसी के वैश्विक महत्व पर जोर देते हुए जो बाइडेन ने इसे अमेरिका के लिए एक बड़ा सौदा और गेम-चेंजिंग निवेश के रूप में क़रार दिया। उन्होंने अंगोला से हिंद महासागर तक फैली नई रेल लाइन में निवेश के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण क़दम बताया। 

कई देशों के सहयोग से चलने वाली यह प्रस्तावित परियोजना भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ती है और अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ती है। इस परियोजना में संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के माध्यम से अरब प्रायद्वीप में एक रेलवे लाइन का निर्माण शामिल होगा और इस गलियारे के दोनों छोर पर भारत और यूरोप के लिए शिपिंग कनेक्टिविटी विकसित की जाएगी।

यह गलियारा रेलवे और शिपिंग मार्गों का नेटवर्क होगा जिसके साथ डिजिटल और बिजली केबल नेटवर्क और स्वच्छ हाइड्रोजन निर्यात पाइपलाइन भी जुड़ेगा। पाइपलाइनों के माध्यम से ऊर्जा और ऑप्टिकल फाइबर लिंक के माध्यम से डेटा परिवहन के लिए गलियारे को और विकसित किया जा सकता है। जब रियाद और तेल अवीव सामान्य संबंध स्थापित करेंगे तो इस परियोजना में इज़राइल जैसे अन्य देश भी शामिल हो सकते हैं।

यह परियोजना ऐसे समय में सामने आई है जब एक दशक पुराने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई के तहत इस क्षेत्र में चीन की कनेक्टिविटी परियोजनाओं के बारे में लंबे समय से भारत चिंतित है। अरब के देशों से जमीन के रास्ते जुड़ाव को पाकिस्तान द्वारा अनुमति देने से इनकार करने की वजह से भारत को लगातार विकल्प की तलाश रही। भारत को आखिरकार अब अरब और यूरोप के देशों से जुड़ने का एक फार्मूला मिल गया है।

इसका फायदा भारत को यह हुआ है कि वह अब पाकिस्तान के ऊपर निर्भर नहीं है कि वह जमीन के रास्ते से यह पहुँच उपलब्ध नहीं कराएगा तो मध्य-पूर्व और यूरोप से संपर्क में काफ़ी ज़्यादा दिक्कत आएगी।

1990 के दशक से दिल्ली ने पाकिस्तान के साथ विभिन्न अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर जोर दिया है, लेकिन इस्लामाबाद भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक जमीन के रास्ते पहुँच देने से इनकार करता रहा है।

कहा जा रहा है कि यह आर्थिक गलियारा अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को गहरा करेगा। पिछले कुछ वर्षों में संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के साथ तेजी से राजनीतिक और रणनीतिक संबंध बढ़ाने वाली मोदी सरकार के पास अब भारत और अरब के बीच स्थायी कनेक्टिविटी बनाने का अवसर है।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि यह मेगा कनेक्टिविटी परियोजना, अंतर-क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देकर अरब प्रायद्वीप में राजनीतिक तनाव को कम करने में मदद कर सकती है। कहा जाता रहा है कि शांति लंबे समय से मध्य पूर्व के लिए एक मृगतृष्णा की तरह रही है। 

गलियारा क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास में यूरोप की सक्रियता भी अहम हो सकती है। यूरोपीय संघ ने 2021-27 के दौरान दुनिया भर में बुनियादी ढांचे के खर्च के लिए 300 मिलियन यूरो निर्धारित किए थे। नए गलियारे के लिए इसका समर्थन यूरोपीय संघ को भारत को अरब और यूरोप के साथ एकीकृत करने में एक प्रमुख भूमिका निभाएगा।

अमेरिका और यूरोपीय संघ ने अंगोला, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और जाम्बिया को जोड़ने वाला एक ट्रांस-अफ्रीकी कॉरिडोर बनाने की योजना की परिकल्पना की है। भारत भी अफ्रीका में अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ मिलकर काम करना चाहेगा।

नए गलियारे को चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। तो सवाल है कि क्या यह विकल्प के रूप में उभरेगा? बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नया गलियारा किस गति से लागू किया जाता है।

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