सीएए पर अमेरिकी टिप्पणी से भारत बोला- हम बहुलवादी परंपरा वाले, पाठ न पढ़ाएँ
सीएए को लेकर अमेरिका की टिप्पणी पर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए के कार्यान्वयन पर अमेरिका के बयान पर कड़ा जवाब देते हुए कहा है कि यह भारत का आंतरिक मामला है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि जो लोग भारत की बहुलवादी परंपराओं को नहीं समझते हैं, उनके लिए बेहतर होगा कि वे पाठ पढ़ाने का प्रयास न करें। जयसवाल ने कहा, 'भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। अल्पसंख्यकों के प्रति किसी भी चिंता का कोई आधार नहीं है। संकट में फँसे लोगों की मदद के लिए एक प्रशंसनीय पहल के बारे में वोट बैंक की राजनीति के रूप में निर्धारित नहीं करना चाहिए।'
इससे पहले आज अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर से पूछा गया था कि क्या अमेरिकी सरकार चिंतित है कि सीएए भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है। इस पर मिलर ने जवाब दिया, 'हम चिंतित हैं... हम इस कानून की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं और इसे कैसे लागू किया जाएगा।' उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और सभी समुदायों के लिए कानून के तहत समान व्यवहार मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत हैं।
उनकी प्रतिक्रिया तब आई है जब नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए को हाल ही में अधिसूचित कर दिया गया। इसको क़रीब पाँच साल पहले ही क़ानून बना दिया गया था। लेकिन इसको लागू किए जाने और पूरी प्रक्रिया के लिए नियम-क़ायदों को अधिसूचित नहीं किया गया था और इस वजह से इसे लागू नहीं किया जा सका था। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इन देशों के हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदाय के उन लोगों को नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे।
अमेरिका की टिप्पणी पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा कि अमेरिका की टिप्पणियाँ सही नहीं, गलत सूचना और अनुचित हैं।
उन्होंने कहा, 'नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 भारत का आंतरिक मामला है और यह भारत की समावेशी परंपराओं और मानवाधिकारों के प्रति दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए है। यह अधिनियम अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई से संबंधित उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को सुरक्षित आश्रय देता है। उन लोगों को जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश कर चुके हैं। सीएए नागरिकता देने के बारे में है, नागरिकता छीनने के बारे में नहीं, इसलिए इसे रेखांकित किया जाना चाहिए। यह मानवीय गरिमा प्रदान करता है, और मानवाधिकारों का समर्थन करता है।'
जयसवाल ने यह भी कहा कि 'जिन लोगों को भारत की बहुलवादी परंपराओं और क्षेत्र के विभाजन के बाद के इतिहास की सीमित समझ है, उनको पाठ पढ़ाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। भारत के शुभचिंतकों को उस इरादे का स्वागत करना चाहिए जिसके साथ यह कदम उठाया गया है।'