भारत में मंकीपॉक्स का पहला केस केरल में मिला, यूएई से लौटा था
भारत में मंकीपॉक्स के पहले मामले की पुष्टि हुई है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने गुरुवार को कहा है कि संयुक्त अरब अमीरात से यात्रा करने वाले केरल का एक व्यक्ति मंकीपॉक्स पॉजिटिव पाया गया है। वह 12 जुलाई को तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर उतरा था।
स्वास्थ्य मंत्री ने एएनआई से कहा है कि मरीज की स्थिति सामान्य और स्थिर है। उन्होंने कहा, 'चिंता करने की कोई बात नहीं है। सभी क़दम उठाए जा रहे हैं और मरीज स्थिर है।' उन्होंने कहा कि मरीज के संपर्क में आए लोगों की भी पहचान की गई है, जिनमें उनके पिता, मां, एक टैक्सी चालक, एक ऑटो चालक और बगल की सीटों पर बैठे 11 साथी यात्री शामिल हैं। इससे पहले उन्होंने कहा था कि विदेश से लौटे एक व्यक्ति में मंकीपॉक्स के लक्षण पाए गए और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। इससे पहले आज ही केंद्र सरकार ने राज्यों को एहतियाती क़दम उठाने के लिए लिखा था।
मंकीपॉक्स एक संक्रामक बीमारी है जो संक्रमित जानवरों, आमतौर पर रोडेंट से मनुष्यों में फैलती है। वायरस को पहली बार 1958 में मैकाक के एक समूह में खोजा गया था, जिसका अध्ययन अनुसंधान उद्देश्यों के लिए किया जा रहा था।
यह आम तौर पर अफ्रीका में उत्पन्न होने वाली एक दुर्लभ बीमारी है जो आमतौर पर अपने आप ठीक हो जाती है। लेकिन कभी कभी अफ्रीका के बाहर भी इसके मामले सामने आए हैं। 2003 में अमेरिका में कम से कम 71 मामले आए थे। तब मंकीपॉक्स किसी यात्री से नहीं फैला था, बल्कि अफ्रीकी देश घाना से आयात किए गए रोडेंट (चूहे) की वजह से फैला था। उन रोडेंट ने तब पालतू कुत्तों को संक्रमित किया, और फिर अमेरिकी लोग संक्रमित हुए।
इस साल अब तक यूके, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी, बेल्जियम, फ्रांस, नीदरलैंड, इटली और स्वीडन जैसे देशों में मंकीपॉक्स के मामलों की पुष्टि हुई है।
हालाँकि, पहले भारत में मंकीपॉक्स के मामले नहीं आए थे, लेकिन यूरोप और दक्षिण अमेरिका में आए मामलों पर चिंतित भारत सरकार ने मई में आइसोलेशन और संपर्क में आए लोगों को ढूंढने के बारे में दिशानिर्देश जारी किए थे।
जानिए क्या है लक्षण
यह सिरदर्द और बुखार से शुरू होता है। ये सामान्य चीजें हैं जो एक वायरल संक्रमण होने पर शरीर में होती हैं। संक्रमण होने से शरीर की रक्षा प्रणाली काम शुरू करती है और इस वजह से सिरदर्द और बुखार होता है। सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द होता है। फिर, एक या दो सप्ताह के भीतर कुछ लोगों के शरीर पर दाने हो जाते हैं जो फुंसी के रूप में उठ आते हैं। लेकिन जब शरीर की रक्षा प्रणाली जब पूरी तरह एक्टिव हो जाती है तो उस संक्रमण को ख़त्म कर देता है। लेकिन इसके लिए मरीज की अच्छी तरह डॉक्टर की देखभाल की ज़रूरत होती है।
कितना घातक है यह?
अफ्रीका से बाहर फैली इस बीमारी से अब तक शून्य मौतें हुई हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य अफ्रीकी नस्ल के लिए 1-3 प्रतिशत मृत्यु दर या 10-13 प्रतिशत मृत्यु दर भी देखी गई है। इस बीमारी की मृत्यु दर इस बात पर निर्भर करती है कि रोगियों की देखभाल कैसे की जाती है। यदि कोई मरीज घर पर है, जहां कोई ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है, कोई आईसीयू नहीं है, कोई चिकित्सा पेशेवर मरीज की देखभाल नहीं कर रहा है तो उसकी मृत्यु का जोखिम अधिक है। ग्रामीण अफ्रीका में मृत्यु दर ज़्यादा रही है, लेकिन अच्छी स्वास्थ्य देखभाल और दवाओं वाले देशों में मृत्यु दर 1 प्रतिशत से नीचे या 0 प्रतिशत रही है।