देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद का नाम किताब से गायब
स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद का नाम राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की संशोधित राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया है। किताब में मौलाना आज़ाद का कोई भी उल्लेख अब नहीं मिलता। 11वीं क्लास की किताब से इस तथ्य को भी मिटा दिया है कि जम्मू और कश्मीर इस वादे के आधार पर भारत में शामिल हुआ था कि राज्य हमेशा स्वायत्त बना रहेगा। बीजेपी के नए दोस्त और कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद ने आज एक ट्वीट करके मौलाना आजाद का नाम किताबों से हटाए जाने पर कड़ी आपत्ति प्रकट की है। उन्होंने कहा है कि यह किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
Unacceptable. Maulana Azad's contributions to India's freedom movement & education system are undeniable & erasing his name would be counterintuitive to our progress as a nation. Let's acknowledge & appreciate the great leaders of our past who helped shape our future! https://t.co/aUvKrBv8fo
— Ghulam Nabi Azad (@ghulamnazad) April 14, 2023
द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने की आड़ में पाठ्यपुस्तकों से कई चैप्टर हटाने का विवादास्पद काम किया है। इसमें मौलाना आजाद का नाम और योगदान गायब करना सबसे ताजा मामला है। तथ्य यह है कि एनसीईआरटी ने जितने भी चैप्टर या महान स्वतंत्रता सेनानियों के नाम किताबों से हटाए हैं, उन्होंने सार्वजनिक डोमेन में घोषित नहीं किया। इस संबंध में सबसे पहले इंडियन एक्सप्रेस ने तथ्य बताने शुरू किए। अब द हिन्दू ने मौलाना आजाद का चैप्टर हटाने का मामला प्रकाशित किया है।
देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद का संदर्भ पुरानी कक्षा 11 एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में भारतीय संविधान पर पहले अध्याय में था। जिसका शीर्षक था "संविधान - क्यों और कैसे?" पिछले साल, जब एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से चैप्टर हटाने की जो सूची प्रकाशित की थी, तो उसने घोषणा की थी कि इस विशेष पाठ्यपुस्तक में 'कोई बदलाव नहीं' किया गया है। लेकिन वो बात झूठ थी।
आजाद कैसे छूटेः पाठ्यपुस्तक के पुराने संस्करण में, पहले अध्याय के एक पैराग्राफ में लिखा था- संविधान सभा में विभिन्न विषयों पर आठ प्रमुख समितियाँ थीं। आमतौर पर जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आज़ाद या आम्बेडकर इन समितियों की अध्यक्षता करते थे। ये ऐसे पुरुष नहीं थे जो कई बातों पर एक-दूसरे से सहमत हों। आम्बेडकर कांग्रेस और महात्मा गांधी के कटु आलोचक थे। पटेल और नेहरू के बीच कई मुद्दों पर असहमति थी। फिर भी, वे सभी एक साथ काम करते थे।
पाठ्यपुस्तक के पुराने और संशोधित संस्करण के बीच बदलाव की मैपिंग करने पर, द हिंदू ने पाया कि आज़ाद का नाम नए संस्करण से हटा दिया गया है। अब उस लाइन को इस तरह लिखा गया है - आमतौर पर, जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल या बी.आर. आम्बेडकर ने इन समितियों की अध्यक्षता की।
हालाँकि, आज़ाद ने 1946 में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब उन्होंने भारत की नई संविधान सभा के चुनावों में कांग्रेस का नेतृत्व किया था, जिसे भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना था। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपने छठे वर्ष में ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के साथ बातचीत करने वाले प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया था।
आजाद फेलोशिप बंदः इतिहासकार और लेखक एस. इरफ़ान हबीब, जिनकी लिखी जीवनी मौलाना आज़ाद: ए लाइफ इस साल की शुरुआत में जारी की गई थी, कहते हैं कि यह पहली बार नहीं है कि आज़ाद के संदर्भों को मौजूदा राजनीतिक चैप्टर से हटा दिया गया है।
पिछले साल, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने मौलाना आज़ाद फैलोशिप को बंद करने का फैसला किया, जिसे 2009 में लॉन्च किया गया था और छह अल्पसंख्यकों समुदायों– बौद्ध, ईसाई, जैन, मुस्लिम, पारसी और सिख समुदाय के एमफिल और पीएचडी करने वाले छात्रों को पांच साल के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती थी।
प्रोफ़ेसर हबीब कहते हैं, जो चीज़ हटाना अधिक स्पष्ट करती है, वह यह है कि आज़ाद स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे और 14 साल तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा जैसे प्रमुख सुधारों की वकालत करने में उनकी अग्रणी भूमिका थी। आज़ाद जामिया मिलिया इस्लामिया, विभिन्न भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों, भारतीय विज्ञान संस्थान और स्कूल ऑफ़ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के प्रमुख संस्थापक सदस्य भी थे।
मौलाना आजाद का नाम हटाना इसलिए भी बड़ा झटका है, क्योंकि बीजेपी जब केंद्र की सत्ता में आई थी तो उसने मौलाना आजाद परिवार से जुड़े तमाम लोगों को विभिन्न पदों से नवाजा था। आरएसएस से जुड़े राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा की सलाह पर केंद्र सरकार ने कई नामचीन लोगों को मौलाना आजाद परिवार के नाम पर वीसी तक बनाया था।