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चीन के साथ साझा बयान से उम्मीदें जगीं, लेकिन इस पर कितना भरोसा करें?

चीन के साथ साझा बयान से उम्मीदें जगीं, लेकिन इस पर कितना भरोसा करें?

पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में बीते 5 मई से चल रही सैन्य तनातनी दूर करने के लिये सोमवार को दोनों पक्षों के सैन्य और राजनयिक प्रतिनिधियों की हुई छठी बैठक के बाद जारी साझा बयान उम्मीदें पैदा करता है।

पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाक़ों में बीते 5 मई से चल रही सैन्य तनातनी दूर करने के लिये सोमवार को दोनों पक्षों के सैन्य और राजनयिक प्रतिनिधियों की हुई छठी बैठक के बाद जारी साझा बयान उम्मीदें पैदा करता है। पहले भी चीन ने साझा बयान में इस तरह के वादे किये हैं। इसलिये ताज़ा साझा बयान में चीन द्वारा तनाव घटाने के उपायों पर दिखाई गई सहमति ज़मीन पर लागू होगी या नही, इस पर पूरे विश्वास के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। 

चीन की कथनी और करनी में अब तक हम भारी फर्क देखते आए हैं। इस बार के साझा बयान को इस नज़रिये से भी देखा जा सकता है कि पूर्वी लद्दाख के कई इलाक़ों में जिन चोटियों पर भारतीय सेना ने कब्जा कर लिया, उससे चीन की रणनीतिक स्थिति कमज़ोर हो गई। इसलिये यह सहमति बनी है कि अग्रिम मोर्चो पर अब और अधिक सैन्य तैनाती नहीं की जाएगी। 

साझा बयान में कहा गया है कि दोनों पक्ष एकपक्षीय तौर पर ज़मीन पर स्थिति नहीं बदलेंगे। पिछली 5 मई के बाद से चीन द्वारा जिस तरह एकपक्षीय तौर पर ज़मीनी स्थिति बदली गई है, उसे ख़त्म करने के लिये चीन कदम उठाएगा या नहीं, इस बारे में साझा बयान में कोई संकेत नहीं दिया गया है।

चीनी रणनीति

यह बातचीत बीते 10 सितम्बर को मास्को में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच बनी 5 सहमतियों की पृष्ठभूमि में हो रही थी, इसलिये चीन से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह अपने अड़ियल रुख छोड़ कर विदेश मंत्री द्वारा दी गई सहमति के अनुरूप अपने सैनिकों को 5 मई से पहले की स्थिति पर पीछे ले जाने को तैयार हो जाएगा।

चीन के ताज़ा रुख से लगता है कि वह भारत पर दबाव बनाए रखने की रणनीति पर चल रहा है ताकि भारत को सालों साल पूर्वी लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर वैसे ही अपनी सेना तैनात रखना पड़े जैसा सियाचिन पर शून्य से 50 डिग्री नीचे तापमान में भारतीय सेना तैनात है।

भारत की आशंका

भारतीय सैन्य हलकों में आशंका महसूस की जा रही है कि कहीं पूर्वी लद्दाख की पर्वतीय चोटियाँ पैंगोंग झील, गलवान, गोगरा, हाट स्प्रिंग और देपसांग के मैदानी इलाक़ों पर सियाचिन ग्लेशियर जैसी सैन्य तैनाती की शक्ल नहीं ले लें। शायद चीन की यही मंशा है कि भारत यदि उसकी शर्तें नही माने तो उसे अपने इलाक़े की चौकसी के लिये करीब 35-40 हज़ार सैनिकों को तैनात करने को मजबूर होना पड़ेगा। उसे इस पर होने वाले रोज़ाना क़रीब सौ करोड रुपये का खर्च का भारी बोझ ऐसे वक़्त उठाने को मजबूर होना पड़ेगा जब भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी की चोट से कराह रही है।

हालांकि दोनों पक्ष बातचीत का सिलसिला जारी रखने पर सहमत हुए हैं, लेकिन चीन ने अपना पक्ष नरम नहीं किया है। इसलिये आगे की बातचीत में चीन अपना अड़ियल रुख छोडेगा, इसमें शक है क्योंकि चीन ने सीमांत इलाक़ों में अपने कदम इतने गहरे जमा लिये है कि वहाँ से पीछे जाना राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर चोट के समान होगा। 

चीन अपने सैनिक पीछे ले जाने पर इसलिये भी सहमत नहीं हो रहा कि उसे एशिया से लेकर अफ्रीका तक के देशों को दिखाना है कि वह एक बड़ी ताक़त है, जिसके सामने भारत को झुकना पडा। इस बहाने चीन अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह संदेश देना चाहता है कि भारत के प्रति आकर्षित न हों।

क्या कहा शी जिनपिंग ने

मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जीनपिंग ने कहा है कि चीन शीतयुद्ध या गर्म युद्ध नहीं चाहता और वह विस्तारवाद में विश्वास नहीं करता। लेकिन भारत सहित दक्षिण चीन सागर में चीन की जो हरकतें हाल में देखी गई, वह चीन की कथनी और करनी में भारी फर्क की ही पुष्टि करता है। चीन की मंशा दक्षिण चीन सागर से लेकर ताइवान जलडमरूमध्य और हांगकांग तक अपनी दादागिरी दिखाने की रही है। चीन कोरोना महामारी के मौजूदा दौर में देशों की अस्तव्यस्त सरकारों की मजबूरी का फ़ायदा उठाना चाहता है। 

चीन ताक़त की भाषा समझता है। सोमवार को चीन के मोलदो इलाक़े में हुई छठे दौर की सैन्य कमांडरों की 13 घंटे तक चली वार्ता के लिये वह इसलिये तैयार हुआ कि भारत ने वहाँ भारी सैन्य तैनाती कर  पंगा लेने पर दोबारा सोचने को मजबूर कर दिया है। भारत ने पूर्वी लद्दाख के बर्फीले पर्वतों पर जिस तरह से आक्रामक तरीके से अपनी सैन्य तैनाती की है, उसके जरिये उसे अपने दृढ़ राष्ट्रीय संकल्प का परिचय दिया है। 

लेकिन क्या इसकी कीमत भारत को इस रूप में अदा करनी होगी कि पूर्वी लद्दाख की बर्फीली चोटियों पर सियाचिन ग्लेशियर जैसी सैन्य तैनाती करनी होगी, जिस पर रोज़ाना क़रीब सौ करोड़ रुपयों का खर्च करना होगा

राजनयिक प्रतिनिधि भी मौजूद

यह बातचीत लेह स्थित भारतीय सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन के साउथ शिनजियांग ज़िले के कमांडर मेजरजनरल ल्यु लिन की अगुवाई में हुई। इस बातचीत में पहली बार दोनों देशों के राजनयिक प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। भारतीय विदेश मंत्रालय में पूर्व एशिया विभाग के संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव बैठक में मौजूद थे।

वार्ता के दौरान भारतीय दल ने साफ शब्दों में कहा कि चूंकि चीनी पक्ष ने घुसपैठ की पहल की है, इसलिये वह अपनी पुरानी स्थिति पर लौटे। भारतीय पक्ष ने यह भी कहा कि सैन्य तनाव दूर करने और युद्ध भड़कने से रोकने के लिये वास्तविक नियंत्रण रेखा के पीछे के इलाक़ों में चीन ने जो भारी सैन्य जमावड़ा किया है, वह हटा ले।

ज़ाहिर है, चीन अभी भी तैयार नही हैं। 

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