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दसवें दौर की बैठक में चीन को दबाव में रख पाएगा भारत?

दसवें दौर की बैठक में चीन को दबाव में रख पाएगा भारत?

दसवें दौर की बैठक महत्वपूर्ण तो है लेकिन इस चिंताजनक सवाल के साये में भी है कि क्या भारत ने पैंगौंग के दक्षिण में अपनी उस मजबूत पोजिशन को छोड़ दिया है जिसे पिछले साल अगस्त के महीने में सैनिकों ने बहादुरी से हासिल किया था?

चुशुल-मोल्डो सीमा पर चीनी इलाके में भारत-चीन के दरम्यान दसवें दौर की बातचीत की अहमियत दो वजहों से है। पहली वजह है कि यह बैठक दोनों देशों के बीच नौवें राउंड की बातचीत में हुए समझौते के लागू हो जाने की पुष्टि है। समझौते में यह तय था कि दोनों ओर से डिसइंगेजमेंट (सेना की वापसी) प्रक्रिया पूरी होने के बाद 48 घंटे के भीतर अगले दौर की बातचीत होगी। 

दूसरी महत्वपूर्ण वजह पर भी गौर करें। पैंगौंग त्सो लेक के दक्षिण में अपने ही इलाके में जिन चोटियों पर भारत ने अगस्त 2020 में अपनी पोजिशन मजबूत की थी और जहां से मोल्डो गैरिसन व आसपास के चीनी इलाकों को निशाने पर ले रखा था, उसी इलाके में यानी मोल्डो में यह बैठक हो रही है। 

दसवें दौर की बैठक महत्वपूर्ण तो है लेकिन इस चिंताजनक सवाल के साये में भी है कि क्या भारत ने पैंगौंग के दक्षिण में अपनी उस मजबूत पोजिशन को छोड़ दिया है जिसे पिछले साल अगस्त के महीने में सैनिकों ने बहादुरी से हासिल किया था?

नौवें दौर की बातचीत के बारे में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में जो बयान दिया था उसका लब्बोलुआब यही था कि दोनों देश अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल करने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। पैंगौंग के उत्तर और दक्षिण में यह प्रक्रिया पहले लागू होगी। यानी अस्थायी निर्माण, तंबू, हथियार, सेना की तैनाती सबकुछ हटेंगे। फिंगर 4 से लेकर फिंगर 8 तक पेट्रोलिंग अगली वार्ताओं के बाद ही बहाल होंगे। भारत को फिंगर 3 में लौटना होगा और चीनी सीमा को फिंगर 8 के पूर्व तक। दसवें दौर की वार्ता का मतलब है कि दोनों देशों ने समझौते का पालन कर लिया है।

भारत ने खो दी बढ़त? 

नॉर्दर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने कहा था कि चीन फिंगर 4 और फिंगर 8 के बीच के इलाके को खाली करने को तैयार नहीं था लेकिन 29-30 अगस्त को स्थिति बदल जाने के बाद उसे हमारी शर्तों पर बातचीत को तैयार होना पड़ा। यह बात बहुत महत्वपूर्ण है जो यह बताती है कि बातचीत में हमारी सेना ने ऐसी स्थिति बनायी कि हमारी शर्तों पर चीन को बात करनी पड़ी। 

मगर, नौवें दौर की वार्ता के बाद हुए डिसइंगेजमेंट में क्या हमने इस बढ़त को खो नहीं दिया? अब दसवें दौर की बातचीत में हॉटस्प्रिंग-गोगरा की पीपी 15 और पीपी 17ए के साथ-साथ देपसांग घाटी से चीनी कब्जे को हटाने की बात होगी, तब अपनी बढ़त वाली स्थिति खो चुकने के बाद क्या भारत चीन पर कोई दबाव बना पाएगा?- यह बड़ा सवाल बन चुका है।

सरकार की कमजोर प्रतिक्रिया 

भारत-चीन के बीच गलवान घाटी का संघर्ष भारतीय सेना की बहादुरी के लिए स्मरणीय रहेगा। मगर, 20 जवानों की शहादत के बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली ‘मजबूत’ सरकार की प्रतिक्रियाओं के लिए भी इस संघर्ष को याद रखा जाएगा। जवान तो सीमा पर डटे रहे लेकिन चीनी ऐप्स पर बैन लगाने के अलावा कोई उल्लेखनीय प्रतिक्रिया सरकार ने नहीं दी। 

चीनी कंपनी को ठेका

एक समय लगा था कि वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत जैसे नारों के बीच चीनी वस्तुओं के बहिष्कार की गैर सरकारी अपील को आगे बढ़ाया जाने वाला है लेकिन जल्द ही सबकुछ भुला दिया गया। दिल्ली-एनसीआर में 1126 करोड़ रुपये का रैपिड रेल प्रोजेक्ट का ठेका चीन की कंपनी को दे दिया गया। भारतीय कंपनी एलएंडटी को इस लायक नहीं समझा गया।

डोकलाम के दौरान नरेंद्र मोदी-शी जिनपिंग ज़रूर गुजरात के नर्मदा तट पर झूला झूल रहे थे लेकिन इस समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए दोनों नेताओं ने मुद्दा रहित एकांत वार्ता वुहान में की थी। ऐसी कोई पहल गलवान घाटी के बाद देखने को नहीं मिली। उल्टे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नववर्ष पर अपने सैनिकों को युद्ध के लिए तैयार रहने का संदेश दिया। 

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चीन का नाम नहीं लिया

जो कूटनीतिक प्रयास डोकलाम की घटना के बाद भारत ने किए थे और रूस की मदद ली थी, वैसी कोशिश गलवान की घटना के बाद नजर नहीं आयी। कभी तीसरी दुनिया का नेतृत्व कर चुके भारत के पक्ष में दुनिया के किसी देश ने चीन के खिलाफ मुंह नहीं खोला। इसकी शिकायत भी नहीं की जा सकती क्योंकि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गलवान घाटी की घटना के बाद अपने मुंह से कभी चीन का नाम नहीं ले सके हैं।

15 जून को गलवान में शहादत के बाद 19 जून को हुई सर्वदलीय बैठक में पूरे विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी एकजुटता दिखलायी थी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खुलकर कहा था कि चीन को एविएशन, टेलीकॉम, रेलवे के क्षेत्र में प्रवेश करने से हर हाल में रोकना होगा। मगर, वक्त के साथ-साथ ममता के इस आग्रह को भुलाया जा रहा है। 

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मोदी के बयान का इस्तेमाल

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूछा था कि चीन की सेना लद्दाख के इलाके में कब घुसी थी। जवाब उसी सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने दिया था कि कोई हमारी सीमा के भीतर न घुसा है, न घुसा हुआ है और न ही किसी का किसी पोस्ट पर कब्जा है। पीएम मोदी के इस बयान का भरपूर इस्तेमाल चीन ने यह बताने में किया कि गलवान की घटना चीन की घुसपैठ का नतीजा न होकर भारत की ओर से कथित उकसावे के कारण हुई थी। 

डिसइंगेजमेंट की तसवीरें बता रही हैं कि चीन भी झूठ बोल रहा था और पीएम मोदी ने भी सर्वदलीय बैठक में सच नहीं बताया था। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारतीय प्रभाव वाले इलाके में चीनी घुसपैठ की बात बीते वर्ष जून महीने में ही कही थी जिसके मुकाबले पीएम मोदी के बयान बिल्कुल अलग थे।

पूर्व सेना प्रमुख और विदेश राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह ने फरवरी महीने में यह कहकर चीन को दुष्प्रचार का बड़ा मौका उपलब्ध करा दिया कि जितनी बार चीन ने भारतीय क्षेत्र में नियंत्रण रेखा लांघी है उससे कई गुणा ज्यादा भारत ने चीनी क्षेत्र में ऐसा किया है। ये तमाम बातें बताती हैं कि सीमा पर जितनी बहादुरी से भारतीय सेना ने अपनी मौजूदगी दिखलायी, उतनी बुद्धिमत्ता से सरकार ने चीन से लड़ाई नहीं लड़ी।

मोल्डो की बैठक से पहले सूत्रों के हवाले से मीडिया यह प्रसारित करने में लगा है कि चीन हॉट स्प्रिंग-गोगरा से हटने को तो राजी हो सकता है लेकिन देपसांग से हटने को वह तैयार नहीं होगा क्योंकि यह अनधिकृत कब्जा उसने 2013 में तब किया था जब भारत ने दौलत बेग ओल्डी इलाके में अपना जहाज हरक्यूलस उतारा था। 

मगर, सच यह है कि गलवान घाटी की घटना के बाद देपसांग घाटी में चीन ने सैन्य जमावड़ा मजबूत किया है और भारत की पेट्रोलिंग को पीपी 10, 11, 12, 13 तक रोक दिया है। जाहिर है स्थिति में यह बदलाव भी अप्रैल 2020 के बाद के बदलाव में शामिल है। मगर, सवाल यह है कि अब बातचीत में दबाव कैसे बनेगा? दबाव बनाने वाली स्थिति हमने खो जो दी है।

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