बड़ी चिंता- 80 फ़ीसदी मरीज़ों में कोरोना के लक्षण ही नहीं दिखे: वैज्ञानिक
इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक का कहना है कि भारत में क़रीब 80 फ़ीसदी ऐसे कोरोना के मरीज़ हैं जिनमें कोरोना वायरस के कोई लक्षण ही नहीं दिखे थे। यदि आपमें कोरोना के लक्षण नहीं दिखे और आप यह समझकर लोगों से मिलते रहें कि आपको कोरोना वायरस नहीं लगा है तो आगे चलकर स्थिति कितनी चिंताजनक होगी
स्थिति चिंताजनक इसलिए होगी क्योंकि कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद इसके लक्षण दिखने में 1-14 दिन तक का समय लग जाता है। यानी इतने लंबे समय तक वायरस एक से दूसरे लोगों में फैलता रहेगा।
ऐसे में यदि आप कहें कि लॉकडाउन के कारण कोई बाहर जाकर किसी से मिल नहीं रहा है तो संक्रमण कैसे होगा तो इसका सीधा सा जवाब यह है कि आप अपने घरों में ही परिवार के सदस्यों या आसपड़ोस के लोगों से तो संपर्क में आते हैं। जब तक आपमें कोरोना के लक्षण दिखेंगे तब तक परिवार के दूसरे लोगों के संक्रमित होने का ख़तरा रहेगा। ऐसा ही मामला अभी दो दिन पहले उत्तरी दिल्ली के जहाँगीरपुरी में आया था। एक परिवार से जुड़े 26 लोगों में कोरोना वायरस की पुष्टि हुई है। उनके घर में एक वृद्ध महिला कोरोना से संक्रमित पाई गई थीं। यह तब है जब कंटेनमेंट क्षेत्र घोषित होने के कारण वह क्षेत्र पूरी तरह सील है और 25 दिन से ज़्यादा समय से दिल्ली पूरी तरह लॉकडाउन में है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को बिना लक्षण दिखे ही कोरोना वायरस पॉजिटिव आने के मामलों का ज़िक्र किया था। उन्होंने कहा कि 736 सैंपलों में से 186 लोगों में कोरोना की पुष्टि हुई थी और इन्हें यह नहीं पता था कि वे वायरस से संक्रमित थे। यानी उनमें कोई लक्षण नहीं दिखा था। उनका सैंपल इसलिए लिया गया था कि उनके परिवार या आसपड़ोस की बिल्डिंग में किसी व्यक्ति में कोरोना की पुष्टि हुई थी।
आईसीएमआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमण आर गंगाखेडकर ने देश में ऐसे ही मरीज़ों की बात कही है। 'एनडीटीवी' के साथ एक इंटरव्यू में डॉ. गंगाखेडकर ने कहा, '80 फ़ीसदी मामले लक्षण-रहित हैं। हमारी बड़ी चिंता उनको ढूँढने की है। कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग (कोरोना मरीज़ के संपर्क में आए लोगों को ढूँढने) के अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।'
अब ऐसे में क्या उपाय हो सकता है डॉ. गंगाखेडकर कहते हैं कि देश के सभी लोगों का टेस्ट तो एक साथ संभव नहीं है। यानी कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग ही एकमात्र उपाय है। यह पूछे जाने पर कि क्या लक्षण-रहित कोरोना मरीज़ों का पता लगाने और जाँच की नीति में कोई बदलाव किया जाएगा, डॉ. गंगाखेडकर कहते हैं कि दूसरा कोई रास्ता नहीं है। हालाँकि वह यह भी कहते हैं कि जहाँ कहीं भी संक्रमण या हॉसस्पॉट है वहाँ इंफ्लूएंज़ा या फ़्लू जैसे लक्षण दिखने पर जाँच की जा रही है। वह कहते हैं कि मई के दूसरे हफ़्ते में वे स्थिति का आकलन करने के लिए बेहतर स्थिति में होंगे।
बता दें कि बड़े पैमाने पर लक्षण-रहित कोरोना पॉजिटिव आने का मामला भारत के लिए ठीक नहीं है। यह इसलिए कि भारत में टेस्टिंग कम हो रही है, इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसकी क्षमता ही बेहद कम है। टेस्टिंग लैब की संख्या और टेस्टिंग किट की उपलब्धता उतनी नहीं है।