सरकार में दूसरों को भी साझेदार बनाएगा तालिबान?
क्या तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाते समय अपनी नीतियों में बदलाव करेंगे? कट्टरता में कमी लाएंगे और महिलाओं के अधिकारों को अपनी कठोर नीतियों में जगह देंगे? क्या वे समावेशी सरकार बनाने के लिए यह सबकुछ करेंगे?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि तालिबान ने समावेशी सरकार बनाने की बात कही है, इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई और पूर्व चीफ़ एग़्जक्यूटिव अब्दुल्ला अब्दुल्ला को मध्यस्थता सौंपी है और रूस से मदद माँगी है।
इसके पहले अमेरिका ने तालिबान को चेतावनी दी थी कि वे अफ़ग़ानिस्तान पर अकेले राज करने की कोशिश करेंगे तो उनका विरोध होगा और वे अलग-थलग पड़ जाएंगे, इसलिए वे समावेश सरकार बनाएं यानी सबको लेकर सरकार बनाएं।
मध्यस्थता
काबुल के कार्यवाहक गवर्नर मुल्ला अब्दुल रहमान मंसूर ने करज़ई और अब्दुल्ला से पिछले हफ़्ते मुलाक़ात की थी।
मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर भी हामिद करज़ई से मिल चुके हैं।
तालिबान की सांस्कृतिक शाखा के प्रमुख अहमदउल्ला वासिक ने 'न्यूयॉर्क टाइम्स' से कहा कि तालिबान के नेता अपने संगठन के अंदर बात कर रहे हैं और ऐसी ज़मीन तैयार कर रहे हैं कि आगे चल कर दूसरों से बात की जा सके।
रूस की मदद
तालिबान की सांस्कृतिक शाखा के प्रमुख अहमदउल्ला वासिक ने 'न्यूयॉर्क टाइम्स' से कहा कि तालिबान के नेता अपने संगठन के अंदर बात कर रहे हैं और ऐसी ज़मीन तैयार कर रहे हैं कि आगे चल कर दूसरों से बात की जा सके।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' के अनुसार, तालिबान ने रूस से भी संपर्क किया है और काबुल स्थित रूसी दूतावास जाकर रूसी अधिकारियों से बात की है। रूसी राजदूत दमित्री झिरनोव ने एक टेलीविज़न चैनल से बात करते हुए इसकी पुष्टि की है।
करज़ई, अब्दुल्ला से तनावपूर्ण रिश्ते
पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई और पूर्व मुख्य कार्यकारी अब्दुल्ला अब्दुल्ला दोनों ही तालिबान से बात कर रहे हैं, पर उनके रिश्ते तालिबान से बेहद खराब रहे है, वे उनके हिट लिस्ट में रहे हैं।
अभी भी उनके रिश्ते तनावपूर्ण हैं। तालिबान ने करज़ई के निवास पर क़ब्ज़ा कर लिया तो अब्दुल्ला ने उन्हें अपने घर आकर रहने का न्योता दिया।
तालिबान ने अब्दुल्ला अब्दुल्ला के घर के बाहर अपने गार्ड खड़े कर दिए, वे अंदर जाने वाली हर गाड़ी की तलाशी ले रहे हैं और लोगों पर निगरानी रख रहे हैं। ज़ाहिर है, यह करज़ई को नागवार गुजरता होगा।
इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हामिद करज़ई पर तालिबान का भरोसा नहीं है, वे उन्हें संदेह की नज़र से देखते हैं।
लेकिन दूसरी ओर अशरफ़ ग़नी करज़ई को ज़्यादा नापसंद करते थे। करज़ई पहले अमेरिका की पसंद थे, पर बाद में ड्रोन हमलों के मुद्दे पर अमेरिका से उनकी ठन गई थी।
अमीरुल्ला सालेह
अमीरुल्ला सालेह ने जिस तरह खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया, पर्यवेक्षकों का कहना है कि तालिबान को उनसे भी बात करनी होगी।
सालेह और अहमद शाह के नेतृत्व वाले सेकंड रेजिस्टेन्स गुट ने पंजशिर पर पकड़ बना ली है। समझा जाता है कि तालिबान को उनसे भी बात करनी होगी और उन्हें भी सरकार में शामिल करना होगा।