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आईएमएफ़ ने भारत का विकास दर अनुमान घटाकर 5.9% किया

आईएमएफ़ ने भारत का विकास दर अनुमान घटाकर 5.9% किया

वैश्विक आर्थिक मंदी का असर क्या भारत पर भी काफ़ी ज़्यादा पड़ने वाला है और क्या इसके संकेत अभी से मिलने लगे हैं? जानिए, आईएमएफ़ ने क्या अनुमान लगाया है।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने मंगलवार को चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के आर्थिक विकास दर अनुमान को 6.1 प्रतिशत से घटाकर 5.9 प्रतिशत कर दिया है। हालाँकि आईएमएफ़ ने कहा है कि अनुमान को घटाए जाने के बाद भी भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। पिछले वर्ष के अनुमानित 6.8 प्रतिशत की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24 में 5.9 प्रतिशत की वृद्धि दर रहने का अनुमान है।

अपने वार्षिक विश्व आर्थिक आउटलुक में आईएमएफ ने 2024-25 के वित्तीय वर्ष के पूर्वानुमान को घटाकर 6.3 प्रतिशत कर दिया, जो इस साल जनवरी में 6.8 प्रतिशत था। आईएमएफ़ ग्रोथ का अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमान से कम है। आरबीआई ने 2022-23 में 7 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि और 1 अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष में 6.4 प्रतिशत का अनुमान लगाया है। सरकार ने अभी तक 2022-23 के लिए पूरे साल के जीडीपी आंकड़े जारी नहीं किए हैं।

विश्व आर्थिक आउटलुक के आंकड़ों से पता चलता है कि 2022 में विकास दर के अनुमानों में 6.8 प्रतिशत से 5.9 प्रतिशत की महत्वपूर्ण गिरावट के बावजूद भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार चीन की विकास दर 2023 में 5.2 प्रतिशत और 2024 में 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि 2022 में इसकी विकास दर तीन प्रतिशत थी।

वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी के शक्तिशाली असर और यूक्रेन पर रूस के युद्ध से धीरे-धीरे उबरने के लिए तैयार लगती है। चीन अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से खोलने के बाद जोरदार वापसी कर रहा है। 

कुछ दिन पहले ही अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ की प्रमुख ने कहा था कि इस साल विश्व अर्थव्यवस्था के 3 प्रतिशत से कम बढ़ने की संभावना है। हालाँकि 2023 में वैश्विक विकास का आधा हिस्सा भारत और चीन के होने की उम्मीद है। 

आईएमएफ़ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने चेताया था कि महामारी और यूक्रेन पर रूस के सैन्य आक्रमण की वजह से पिछले साल विश्व अर्थव्यवस्था में तीव्र मंदी इस साल भी जारी रहेगी।

वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को भी तगड़ा झटका लगता दिख रहा है। जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान फिर से घटाया गया है। इसी हफ्ते विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि धीमी आय और खपत में कमी के कारण वित्त वर्ष 2024 में भारत की जीडीपी वृद्धि 6.3 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। विश्व बैंक ने पहले भारत की आर्थिक वृद्धि 6.6% रहने का पूर्वानुमान लगाया था। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था अपेक्षा के अनुरूप गति नहीं पकड़ रही है और कई मोर्चे पर दिक्कतें हैं।

अर्थव्यवस्था में इन दिक्कतों की वजह से पिछले कई तिमाहियों में जीडीपी दर में गिरावट आई है। पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर से दिसंबर 2022 के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर महज 4.4 फीसदी रही थी। यह तीन तिमाहियों में अर्थव्यवस्था के बढ़ने की सबसे कम रफ्तार थी। आख़िरी तिमाही की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट आने के मुख्य कारणों में विनिर्माण में नरमी आना और निजी उपभोग व ख़र्च में गिरावट आना रहा।

तीसरी तिमाही के आँकड़े आने से पहले अर्थशास्त्रियों के एक सर्वेक्षण में सख्त मौद्रिक नीति और ऊंची ब्याज दरों के मद्देनज़र अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर कम रहने का अनुमान जताया गया था। वैसे, एक बड़ी चिंता महंगाई की भी है जो भस्मासुर की तरह मुँह बाए खड़ा है।

महंगाई ने फिर ख़तरे की घंटी बजा दी है। जनवरी में खुदरा महंगाई का आँकड़ा एक बार फिर रिज़र्व बैंक की पहुँच से बाहर छलांग लगा गया है। दिसंबर में बारह महीने में सबसे कम यानी 5.72% पर पहुंचने के बाद जनवरी में खुदरा महंगाई की रफ्तार फिर उछलकर 6.52% हो गई है। 

पिछले साल 2022 के शुरुआती दस महीने यह आंकड़ा रिजर्व बैंक की बर्दाश्त की हद यानी दो से छह परसेंट के दायरे से बाहर ही रहा और सिर्फ नवंबर-दिसंबर में काबू में आता दिखाई पड़ा था। जनवरी में फिर इसका यह हद पार कर जाना फिक्र की बात है।

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