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आईआईटी बॉम्बे: जातिगत भेदभाव बिगाड़ रहा मानसिक स्वास्थ 

आईआईटी बॉम्बे: जातिगत भेदभाव बिगाड़ रहा मानसिक स्वास्थ 

सर्वे में भाग लेने वाले लगभग एक-चौथाई एससी/एसटी छात्र मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे, जबकि उनमें से 7.5 प्रतिशत ने "गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओंऔर आत्म-ग्लानि से पीड़ित थे।

आईआईटी बॉम्बे की एससी/एसटी छात्र इकाई द्वारा पिछले साल जून में किए गए एक मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण में अहम बात सामने आई है। सर्वे के नतीजों में कहा गया है कि आईआईटी बॉम्बे में रिजर्व कैटेगरी के छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के लिए जातिगत भेदभाव मूल एवं बड़ा कारण है। सर्वे में भाग लेने वाले लगभग एक-चौथाई एससी/एसटी छात्र मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे, जबकि उनमें से 7.5 प्रतिशत "गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओंऔर आत्म-ग्लानि से पीड़ित थे।

आईआईटी बॉम्बे में एससी/एसटी छात्र इकाई द्वार(जिसमें छात्र और फैकल्टी को ओरिडिनीटर) पिछले साल दो सर्वे किए, एक फरवरी में और दूसरा जून में। पहले सर्वेक्षण का उद्देश्य परिसर में एससी/एसटी छात्रों के जीवन और उनके सामने आने वाली समस्याओं को समझने के लिए डेटा एकत्र करना था, जबकि दूसरा सर्वेक्षण आरक्षित श्रेणी के छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित था।

सर्वेक्षण संस्थान के सभी एससी/एसटी छात्रों (उनमें से लगभग 2,000) को भेजे गए थे, जिनमें से 388 ने फरवरी के सर्वेक्षण में और 134 ने जून के सर्वेक्षण में भाग लिया था। संस्थान द्वारा सर्वेक्षणों के निष्कर्षों को अभी आधिकारिक रूप से जारी नहीं किया गया है।

पिछले महीने आईआईटी के प्रथम वर्ष के छात्र दर्शन सोलंकी ने आत्महत्या कर ली थी। उसकी मौत के पीछे जातिगत भेदभाव की बात सामने आई थी, दर्शन के परिवार ने भी कैम्पस में जातिगत भेदभाव का आरोप लगाया था। इसके उलट संस्थान की एक अंतरिम रिपोर्ट में जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव से इंकार किया गया था।

जून के सर्वेक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, एससी/एसटी छात्र आरक्षण के आरोपों से बचने के लिए अपनी पहचान छिपा कर रखना पसंद करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि आईआईटी जैसी जगहों पर भी शत्रुतापूर्ण माहौल के बावजूद, 9 प्रतिशत छात्रों (12 छात्रों) ने अपनी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जाति को एक महत्वपूर्ण कारण बताया। चार छात्रों ने प्रोफेसरों के जातिवादी और भेदभावपूर्ण रवैये को उनके मानसिक स्वास्थ्य के पर प्रतिकूल प्रभाव के रूप में पहचान की। आईआईटी जैसे बड़े संस्थानों में  जाति आरक्षण के ही रूप में दिखाई देती है इसे योग्यता में कमी  के रूप में देखा जाता है।

पिछले साल फरवरी में किए गए पहले सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि "जाति अलग-अलग स्थानों में बहुत अलग तरीके से काम करती है और खुद को अलग-अलग तरीकों से स्पष्ट करती है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि लगभग एक चौथाई एससी/एसटी छात्र स्थानीय, ग्रामीण और पिछड़ी सामाजिक-आर्थिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं, जो कि सामान्य तौर उनका हाथ अंग्रेजी तंग होता है, इस कमी को उनकी जातिगत पहचान के रूप में देखा जाता है। जून में किए गये सर्वेक्षण के निष्कर्ष के अनुसार कम से कम 23.5 प्रतिशत छात्रों को संस्थान द्वारा  ध्यान देने की जरूरत है।

सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देते हुए आईआईटी बॉम्बे ने एक बयान में कहा कि सर्वेक्षण के निष्कर्षों को अभी तक प्रशासन के साथ साझा नहीं किया गया है।  

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