'द कश्मीर फाइल्स' एक 'प्रोपेगेंडा व भद्दी' फिल्म: IFFI जूरी प्रमुख
अपने रिलीज के समय से ही विवादों में रही 'द कश्मीर फाइल्स' फिल्म को लेकर अब अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल यानी आईएफएफआई के मंच पर ही विवाद हो गया। आईएफएफआई के जूरी प्रमुख ने इस फिल्म को 'प्रोपेगेंडा और भद्दी' फिल्म क़रार दे दिया। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि यह फिल्म फेस्टिवल की स्पर्धा में शामिल भी किए जाने लायक नहीं थी। वह जब यह बोल रहे थे तब केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी मौजूद थे।
#Breaking: #IFFI Jury says they were “disturbed and shocked” to see #NationalFilmAward winning #KashmirFiles, “a propoganda, vulgar movie” in the competition section of a prestigious festival— organised by the Govt of India.
— Navdeep Yadav (@navdeepyadav321) November 28, 2022
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वैसे, द कश्मीर फाइल्स फ़िल्म शुरुआत से ही इन आरोपों का सामना कर रही है कि यह एक 'प्रोपेगेंडा' फिल्म है। विरोधी विवेक अग्निहोत्री द्वारा लिखित और निर्देशित इस फ़िल्म को नफ़रत फैलाने वाला क़रार देते रहे हैं, जबकि बीजेपी की तरफ़ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक इस फ़िल्म की तारीफ़ कर चुके हैं। बीजेपी शासित सरकारों ने तो इस फ़िल्म को टैक्स फ्री भी किया था। बीजेपी समर्थकों ने तो इस फ़िल्म की आलोचना करने वालों को 'देशद्रोही' क़रार दे रहे थे। सिनेमा हॉलों में तो इस फ़िल्म के प्रदर्शन के दौरान कई जगहों से नफ़रती नारे, भाषण और हंगामे की ख़बरें भी आई थीं।
अनुपम खेर की मुख्य भूमिका वाली यह फिल्म 2022 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्मों में से एक है।
फिल्म 1990 के दौर के उस भयावह समय पर केन्द्रित है, जब आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों की हत्याएं कीं और उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया गया। हजारों कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने पर मजबूर हो गए। 'द कश्मीर फाइल्स' का मुख्य पात्र कृष्णा पंडित नाम का लड़का है, जो दिल्ली में ईएनयू नाम के मशहूर कॉलेज में पढ़ता है। इसी के हवाले से पूरी कहानी कही गई है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था, 'वे नफरत से लोगों के दिलों को और भरना चाहते हैं। वे कह रहे हैं कि हर पुलिसकर्मी और सैनिक... सभी को यह फिल्म देखनी चाहिए ताकि वे हमसे आखिरी हद तक नफ़रत करें, जैसा कि हिटलर और गोएबल्स ने जर्मनी में किया था। तब 60 लाख यहूदियों को क़ीमत चुकानी पड़ी थी। भारत में कितनों को क़ीमत चुकानी पड़ेगी, मुझे नहीं पता।'
आलोचकों पर निशाना साधते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, 'वे गुस्से में हैं क्योंकि हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म उस सच्चाई को सामने ला रही है जिसे जानबूझकर छिपाया गया था। पूरी जमात जिसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा फहराया था, 5-6 दिनों से उग्र है। तथ्यों और कला के आधार पर फिल्म की समीक्षा करने के बजाय, इसे बदनाम करने की साज़िश की जा रही है।'
बहरहाल, 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव यानी आईएफएफआई के समापन समारोह में सोमवार को महोत्सव के जूरी प्रमुख नादव लापिड ने द कश्मीर फाइल्स को प्रतियोगिता खंड में शामिल करने की अनुमति देने पर निराशा व्यक्त की।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'मैं कार्यक्रम की सिनेमाई समृद्धि के लिए, इसकी विविधता के लिए, इसकी जटिलता के लिए उत्सव के प्रमुख और प्रोग्रामिंग के निदेशक को धन्यवाद देना चाहता हूं। यह बढ़िया था। हमने नवोदित प्रतियोगिता में सात फ़िल्में देखीं, और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में 15 फ़िल्में देखीं। उनमें से 14 में सिनेमाई गुण थे, चूक थी और इन पर चर्चाएँ हुईं। 15वीं फिल्म द कश्मीर फाइल्स से हम सभी परेशान और हैरान थे। यह एक प्रोपेगेंडा, भद्दी फिल्म की तरह लगी, जो इस तरह के प्रतिष्ठित फिल्म समारोह के कलात्मक प्रतिस्पर्धी वर्ग के लिए अनुपयुक्त है। इस मंच पर आपके साथ इन भावनाओं को खुले तौर पर साझा करने में मुझे पूरी तरह से सहज महसूस हो रहा है।'
नादव लापिड ने केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर सहित शीर्ष मंत्रियों की उपस्थिति में यह टिप्पणी की।