+
क्या बीजेपी में जाना सिंधिया की घर वापसी होगी?

क्या बीजेपी में जाना सिंधिया की घर वापसी होगी?

ज्योतिरादित्य यदि बीजेपी गए तो क्या यह उनकी घर वापसी होगी, क्या वह वहां सहज महसूस करेंगे, क्या यह उनकी विचारधारा के अनुरूप होगा?

क्या राहुल गाँधी के नज़दीकी दोस्त रह चुके, मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री पद संभाल चुके और पार्टी में महासचिव का काम देख चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया का बीजेपी में जाना घर वापसी की तरह होगा सिंधिया कांग्रेस छोड़ चुके हैं, इसकी संभावना है कि वे बीजेपी में शामिल हो जाएं। 

यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि कोई और नहीं, उनकी बुआ यशोदा राजे सिंधिया ने ऐसा कहा है। बीजेपी की नेता यशोदा राजे ने ज्योतिरादित्य के कांग्रेस छोड़ने के बाद कहा, सिंधिया ने ‘राष्ट्र हित’ में यह कदम उठाया है और यह उनकी ‘घर वापसी’ है।

यशोदा राजे सिंधिया ने कहा, ‘राजमाता विजया राजे सिंधिया ने जनसंघ और बीजेपी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।’

मोदी ने सम्मान दिखाया

यशोदा राजे ने कहा, ‘यह ज्योतिरादित्य की घर वापसी है। जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने उनका स्वागत किया है, राजमाता के प्रति इन नेताओं का सम्मान झलकता है।’ उन्होंने इसके आगे कहा, ‘आख़िर, कोई भी इन्सान सम्मान चाहता है।’

यशोदा राजे ने यह भी कहा कि माधवराव सिंधिया ग्वालियर से चुनाव लड़ते थे और बीजेपी उनके सम्मान में बड़ा उम्मीदवार नहीं उतारती थी।  

याद दिला दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया बीजेपी के बड़े नेताओं में एक थीं। वह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ी थीं, जीती थीं। उनकी दो बेटियाँ यशोदा राजे और वसुंधरा राजे भी बीजेपी में शामिल हुईं। वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी की क़द्दावर नेता हैं, दो बार राज्य की मुख्यमंत्री चुनी गईं। यशोदा राजे बीजेपी की विधायक हैं।

दादी-बुआ बीजेपी में!

लेकिन ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस का हाथ थामा था, वह संजय गाँधी के दोस्तों में एक थे। वह कांग्रेस से 9 नौ बार सांसद चुने गए और कई बार मंत्री बने।

माधवराव की अपनी माँ से कभी नहीं बनी। इसकी वजह पारिवारिक और विरासत की लड़ाई तो थी ही, राजनीतिक लड़ाई भी थी। विजयाराजे सिंधिया ने अपने बेटे के ख़िलाफ़ चुनाव प्रचार तक किया था।

ज्योतिरादित्य ने कभी भी सार्वजनिक तौर पर बीजेपी में काम कर रही अपनी दोनों बुआओं का विरोध नहीं किया। समझा जाता है कि उनके रिश्ते मधुर थे। लेकिन सवाल यह उठता है कि ज्योतिरादित्य क्या बीजेपी की हिन्दूत्ववादी राजनीति से तालमेल बिठा पाएंगे

 यह सिंधिया के लिए कठिन परीक्षा होगी। इसी से पता चलेगा कि बीजेपी में जाना उनकी घर वापसी होगी या एक ऐसी राजनीतिक चाल, जिस पर उन्हें बाद में पछतावा करना पड़ेगा। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें