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काश, मोदी सरकार ने 22,000 गरीब मरीजों के बारे में सोचा होता

काश, मोदी सरकार ने 22,000 गरीब मरीजों के बारे में सोचा होता

मिशनरीज ऑफ चैरिटीज का एफसीआरए लाइसेंस कैंसल करने से पहले अगर सरकार ने 22 हजार गरीब मरीजों के इलाज के बारे में सोचा होता तो वो यह कदम नहीं उठाती। मदर टेरेसा की यह संस्था गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज करती है और खाना देती है। देश में ईसाइयों के लिए हालात कैसे बदतर हो रहे हैं, जानिए इस रिपोर्ट से।

मिशनरीज ऑफ चैरिटी के बैंक खाते फ्रीज होने से उन 22 हजार मरीजों का क्या होगा, जिनका इलाज इस संस्था के भरोसे था, उनके भोजन का क्या होगा, जो इस संस्था के भरोसे था। उन सैकड़ों कर्मचारियों के वेतन का क्या होगा, जिन्हें चंद दिनों बाद वेतन मिलना था, उनका नया साल खुशियां लेकर नहीं आएगा।

गृह मंत्रालय ने एक झटके में सबकी खुशियां छीन लीं।

भारत सरकार ने विदेशी अभिदाय (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के तराजू पर इस संस्था को भी तौल दिया।

गरीबों के लिए इस संस्था के आर्थिक लेनदेन को नजरन्दाज किया जा सकता था।

दुनिया में ईसाइयत दो हजार साल से है। भारत में ईसाई आबादी 2 करोड़ 80 लाख है। भारत की कुल आबादी का दो फीसदी से मामूली ज्यादा। मुगलों की हुकूमत के बाद ब्रिटिश राज आया जो मूलतः ईसाई थे। इसके बावजूद भारत में न तो ईसाई आबादी बढ़ी और न ही ईसाई किसी अन्य धार्मिक समुदाय के लिए खतरा बने।

भारत में कम तादाद के बावजूद ईसाइयों की अपनी खास हैसियत और पहचान है।

शिक्षा के क्षेत्र में ईसाई मिशनरीज की सेवाएं किसी से छिपी नहीं हैं। मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटीज ने गरीबों के मुफ्त इलाज के क्षेत्र में नाम कमाया।

 - Satya Hindi

इस दूषित प्रचार का असर अब दिख रहा है। मिशनरीज आफ चैरिटीज के खाते फ्रीज करने से उन अराजत तत्वों के हौसले बढ़ेंगे, जो गिरिजाघरों पर हमले कर रहे हैं, ईसा की मूर्तियां तोड़ रहे हैं। इससे अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भी खतरा बढ़ेगा।

2014 से बहुत कुछ बदल गया

मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटीज दुनियाभर में एक सम्मानित संस्था के तौर पर जानी जाती है। मदर टेरेसा ने इस संस्था के जरिए गरीबों की इतनी मदद की है कि उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लेकिन भारत में इस संस्था का विवादों से भी नाता है।

मिशनरीज ऑफ चैरिटीज खासतौर से दक्षिणपंथियों के निशाने पर लंबे समय से है।


2014 में केंद्र बीजेपी सरकार आने के बाद गृह मंत्रालय ने विदेश से चंदा पाने वाले तमाम एनजीओ पर कार्रवाई की। उनके बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए थे।

एनजीओ से कहा गया कि उन्हें इसके लिए भारत सरकार के एफसीआरए कानून के तहत अनुमति लेनी होगा। अपने विदेशी पैसे के बारे में पूरी सूचना देनी होगी।

मोदी सरकार की इस कार्रवाई के दायरे में मिशनरीज आफ चैरिटीज भी आ गई। 

मोदी सरकार को सात साल से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन एनजीओ को लेकर नजरिए में कोई बदलाव नहीं आया है। ईसाई मिशनरीज और धर्मार्थ मुस्लिम संगठनों को विदेश से फंड मिलने को लेकर नियम सख्त से सख्त हैं।

एमनेस्टी इंटरनैशनल को बार-बार छापों और एफसीआरए नियमों की वजह से भारत में अपना दफ्तर तक बंद करना पड़ा।

कब स्थापित हुई

मिशनरीज ऑफ चैरिटीज की स्थापना मदर टेरेसा ने 1950 में की थी। उनकी जीवनी में लिखा है कि उन्हें 12 साल की उम्र में ही सपने में ईश्वर से बीमार गरीबों के इलाज करने का आदेश मिला। उन्होंने कोलकाता की मलिन बस्तियों में ऐसे सेंटर बनाए, जहां गरीबों के मुफ्त इलाज की शुरुआत हुई।

धीरे-धीरे मदर टेरेसा के काम की चर्चा होने लगी। भारत सरकार ने उनके काम की कई बार सराहना की। 2016 में पोप फ्रांसिस ने उन्हें संत की उपाधि दी। वेटिकन से यह उपाधि पाना आसान नहीं है। यह ईसाइयों में सर्वोच्च उपाधि मानी जाती है।

मदर टेरेसा का निधन 1997 में हुआ था। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ दफन किया गया था।

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क्या ग्राहम स्टेंस किसी को याद है

ग्राहम स्टेंस आस्ट्रलियाई मिशन उड़ीसा में चलाते थे। आज से 22 साल पहले 22 जनवरी 1999 में मनोहरपुर गांव (बारीपदा विधानसभा क्षेत्र) में उन्हें उनके दो छोटे बच्चों के साथ जलाकर मार डाला गया था।

ग्राहम स्टेंस की हत्या का जिम्मेदार चरमपंथी हिन्दू संगठनों को ठहराया गया था। इस मुकदमे में दारा सिंह नामक मुजरिम को फांसी की सजा हुई थी। लेकिन बाद में उसकी सजा उम्रकैद में बदल गई। इस घटना से जुड़ा एक नेता बाद में केंद्र में मोदी सरकार में मंत्री भी बना।

देश में लिंचिंग की घटनाएं बढ़ती चली गईं।

ग्राहम स्टेंस की हत्या के बाद ईसाई मिशनरियों के खिलाफ धर्मांतरण का आरोप तेज हो गया। बीजेपी शासित कर्नाटक में तो धर्मांतरण के खिलाफ कानून लाया गया है।

लोगों ने आलोचना की

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दोपहर में ही ट्वीट करके इस मामले पर नाराजगी जताई थी। ममता की नाराजगी की एक वजह यह भी है कि मिशनरीज ऑफ चैरिटीज के ज्यादातर प्रोग्राम पश्चिम बंगाल में चलते हैं। कोलकाता में उसका मुख्यालय है।

ममता ने अपने ट्वीट में इसे दुखद बताया।

ममता के ट्वीट को रीट्वीट करते हुए कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी इस पर दुख जताया। थरूर ने कहा कि जब मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार मिला था तो भारत सरकार ने खुशी जताई थी। जब उनकी संस्था गरीबों की सेवा करती है तो उसका दमन किया जाता है।

इस संबंध में कोलकाता के सबसे बड़े ईसाई धर्मगुरु फ्रांसिस डोमिनिक गोम्स ने कहा कि सरकार ने मिशनरीज ऑफ चैरिटीज के बैंक खाते फ्रीज कर क्रिसमस का सबसे बड़ा गिफ्ट दिया है।

उन्होंने कहा, यह सबसे गरीबों लोगों को दिया गया सबसे क्रूर तोहफा है। इससे 22000 हजार मरीजों पर सीधे असर पड़ेगा।

सीपीआईएम के नेताओं ने भी इसकी निन्दा की है।

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