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अस्पतालों से छुट्टी के साल भर के अंदर 6.5% कोरोना मरीज़ों की मौत: शोध

अस्पतालों से छुट्टी के साल भर के अंदर 6.5% कोरोना मरीज़ों की मौत: शोध

कोरोना संक्रमित मरीज़ों की मौत इलाज के दौरान ही नहीं हुई, बल्कि इससे ठीक होने के बाद आने वाली दिक्कतों की वजह से अस्पताल से छुट्टी के बाद भी मौतें हुईं। जानिए, शोध में क्या सामने आया है।

कोरोना संक्रमण की घातकता को लेकर वैसे तो लोगों को अब साफ़-साफ़ पता चल गया है, लेकिन हाल में आई एक शोध रिपोर्ट से इसकी पुष्टि होती है कि कोरोना से ठीक होने के बाद का असर भी काफ़ी घातक रहा है! एक शोध में पाया गया है कि मध्यम से गंभीर कोरोना संक्रमण के साथ अस्पताल में भर्ती कराए गए लोगों में से 6.5% मरीजों की एक वर्ष की अवधि में ही मौत हो गई। 

यह शोध भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर के तहत किया गया है। यह शोध 31 अस्पतालों के 14,419 मरीजों के आँकड़ों पर आधारित है। इन अस्पतालों ने इन मरीजों का एक साल तक फोन पर फॉलो-अप किया था। 

अध्ययन के अनुसार सितंबर 2020 से अस्पताल में भर्ती लोगों में से 17.1% को पोस्ट-कोविड स्थितियों का अनुभव हुआ। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन में 'लॉन्ग-कोविड' की डब्ल्यूएचओ या अमेरिकी सीडीसी परिभाषाओं का ध्यान नहीं रखा गया है, क्योंकि वह अध्ययन शुरू होने के बाद आया था जबकि पहले से ही रोगियों का नामांकन शुरू हो गया था। लेकिन अध्ययन के लिए इसे थकान, सांस फूलना, या याद रखने में कठिनाइयों जैसी असामान्यताओं के रूप में परिभाषित किया गया था। शोध में शामिल लोगों को पोस्ट-कोविड स्थितियों के बारे में केवल तभी कहा गया था, जब उन्होंने चार सप्ताह में अस्पताल से छुट्टी के बाद पहले फॉलो-अप के दौरान इन लक्षणों की जानकारी दी थी।

अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार अध्ययन से पता चलता है कि अस्पताल से छुट्टी के बाद के वर्ष में मृत्यु का जोखिम पुरुषों में, 60 वर्ष से अधिक आयु वालों में, और एक साथ कई बीमारियों से पीड़ित लोगों में अधिक था। यह भी पाया गया कि जिन लोगों को टीके की कम से कम एक खुराक मिली थी, उनमें चार सप्ताह के पहले वाले हिस्से में मौत का जोखिम 40% कम हो गया था।

अमेरिका की स्वास्थ्य नियामक सीडीसी के अनुसार लॉन्ग कोविड यानी लंबे समय तक रहने वाले कोविड में स्वास्थ्य समस्याएँ कई सप्ताह, महीने या कई वर्षों तक बनी रह सकती हैं। लॉन्ग कोविड अक्सर उन लोगों में होता है जिन्हें गंभीर कोविड बीमारी थी। हालाँकि उस वायरस से संक्रमित किसी भी व्यक्ति को इसका अनुभव हो सकता है। जिन लोगों को कोविड के खिलाफ टीका नहीं लगाया गया है और वे संक्रमित हो जाते हैं, उनमें टीका लगवा चुके लोगों की तुलना में लॉन्ग कोविड ​​विकसित होने का ख़तरा अधिक हो सकता है। जब कोई व्यक्ति कोरोना से दोबारा संक्रमित होता है तो उसे लॉन्ग कोविड होने का ख़तरा होता है। 

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