आम आदमी की जेब क्यों काट रहे बैंक, आईसीआईसीआई बैंक का तुगलक़ी फरमान
क्या आपने कभी ऐसा सोचा था कि आपको बैंक की ब्रांच से पैसे निकालने पर या जमा करने पर भी शुल्क देना होगा। बैंकों द्वारा आम आदमी की जेब काटने का ऐसा ही काम स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (एसबीआई) ने किया था। बैंक ने मिनिमम बैलेंस के नाम पर एक निश्चित राशि बैंक खाते में रखना अनिवार्य कर दिया था और ऐसा न करने पर उसने कुछ राशि आपके खाते से काटनी शुरू की थी जो आज तक जारी है। तब इसे लेकर लोगों ने ख़ूब ग़ुस्सा जताया था और कहा था कि यह तो सरासर लूट है क्योंकि उससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था।
लेकिन प्राइवेट सेक्टर का आईसीआईसीआई बैंक एसबीआई से दो क़दम आगे निकल गया है और उसने एलान कर दिया है कि उसके बैंक में जिन खाताधारकों के ज़ीरो अकाउंट वाले खाते हैं, अगर वे बैंक की ब्रांच से पैसा निकालते हैं तो उन्हें हर कैश विदड्रॉल के लिये 100 से 125 रुपये देने होंगे। इसके अलावा बैंक ने यह भी कहा है कि यदि ज़ीरो अकाउंट वाले खाताधारक मशीन के जरिये बैंक की ब्रांच में कैश जमा करते हैं तो इसके लिए भी उन्हें शुल्क देना होगा।
यह ख़बर पढ़कर आपको धक्का ज़रूर लगा होगा और आपको यह लगा होगा कि यह तो आम आदमी के साथ क्रूर बर्ताव है कि आपको अगर पैसे जमा करने हैं या निकालने हैं तो आपकी ही जेब कटेगी। अब इसके पीछे बैंक ने जो तर्क दिया है उसे पढ़िए। बैंक ने शुक्रवार को जारी एक बयान में कहा है कि बैंक ने अपने खाताधारकों को डिजिटल ट्रांजेक्शन के लिए प्रोत्साहित करने के लिए यह क़दम उठाया है जिससे वे डिजिटल इंडिया कार्यक्रम में भागीदारी कर सकें।
हालाँकि बैंक ने एनईएफ़टी, आरटीजीएस और यूपीआई से किये जाने वाले फ़ंड ट्रांसफ़र में लगने वाले शुल्क को ख़त्म कर दिया है। बैंक ने अपने ज़ीरो बैलेंस अकाउंट होल्डर्स से कहा है कि वे अपने अकाउंट को या तो किसी अन्य बेसिक अकाउंट में बदल लें और अगर ऐसा नहीं करते हैं तो अपना अकाउंट बंद कर लें।
इस ख़बर को पढ़ने के बाद देश के किसी भी आम आदमी के मन में सवाल यह उठता है कि बैंक भले ही बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों और देनदारों से अपने पैसे वसूल न कर पाएं लेकिन वे आम खाता धारकों से पैसे कमाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ते।
मिनिमम बैलेंस के नाम पर लूट
खातों में मिनिमम बैलेंस के नाम पर बैंकों ने किस क़दर लूट मचा रखी है इस बारे में जानकारी पिछले महीने सामने आई थी। मिनिमम बैलेंस के नाम पर बीते तीन साल में चार बड़े प्राइवेट और 18 सरकारी बैंकों ने ग्राहकों से कुल 9721 करोड़ रुपये की पेनाल्टी वसूली है। इनमें चार बड़े प्राइवेट बैकों ने क़रीब 3566 करोड़ रुपये और 18 सरकारी बैंकों ने 6155 करोड़ रुपये की वसूली की है।
एक तरफ़ मिनिमम बैंलेस के नाम पर आम आदमी पर चोट की जा रही है लेकिन दूसरी ओर बीते कुछ सालों में कई कारोबारी बैंकों का पैसा लेकर भाग चुके हैं। नीरव मोदी और विजय माल्या तो बैंकों का पैसा लेकर भागे ही स्टर्लिंग बायोटेक के मालिक नितिन संदेसरा जिन पर 5 हजार करोड़ रुपये के बैंक घोटाले का आरोप है, वह भी देश छोड़कर भाग गए।
पीएनबी में 14 हज़ार कराेड़ के घोटाले के अभियुक्त नीरव मोदी को लेकर विपक्षी दलों ने लोकसभा चुनाव से पहले जमकर हंगामा किया था। चुनाव से ठीक पहले नीरव मोदी को लंदन में गिरफ़्तार भी कर लिया गया था लेकिन तब यह सवाल उठा था कि क्या मोदी सरकार नीरव को वापस ला पायेगी। विजय माल्या ने भी कई बैंकों से क़र्ज़ लिया और ब्रिटेन चले गए। बैंक घोटाले के अभियुक्त नीरव मोदी के मामा मेहुल चोकसी भी देश छोड़कर चले गए और उन्होंने अब एंटीगुआ की नागरिकता ले ली है।
सवाल यह है कि बैंक क्या इस तरह डिजिटल इंडिया बना पाएँगे। भारत की बड़ी आबादी इंटरनेट बैंकिंग नहीं जानती और उसे बैंक में पैसे जमा करने और निकालने में ही सहूलियत होती है। ऐसे में एक ओर जहाँ ये ख़बरें आ रही हैं कि डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए बैंकों का जोर एटीएम को ख़त्म करने है, ऐसे में सामान्य आदमी बैंक जायेगा तो वहाँ उसके पैसे कटेंगे तो वह आख़िर करेगा क्या। डिजिटल इंडिया बनाने के नाम पर बैंकों के इस तरह के तुगलक़ी फ़रमान से आम आदमी की मुश्किलों में इज़ाफ़ा होना तय है।