दिल्ली दंगा: दो पक्षों को शांत कराने के दौरान हुई अंकित की हत्या; ताहिर ने उकसाया: पुलिस
दिल्ली दंगों के दौरान मारे गए इंटेलीजेंस ब्यूरो के नौजवान अफ़सर अंकित शर्मा की हत्या दो पक्षों को शांत कराने के दौरान हुई थी। दिल्ली पुलिस ने बुधवार को अदालत में दाख़िल की गई चार्जशीट में कहा है कि शांत कराने के दौरान हथियारबंद दंगाइयों ने आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के उकसावे पर अंकित को पकड़ लिया और घसीटते हुए ले गये। इसके बाद उसकी हत्या कर शव नाले में डाल दिया। चार्जशीट में लिखा है कि अंकित के शव पर धारदार हथियारों के 51 निशान थे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, चार्जशीट में लिखा है कि हुसैन ने लोगों को धार्मिक भावनाओं के आधार पर इकट्ठा किया, उन्हें हथियार उपलब्ध कराए और उन्हें हत्या में शामिल किया। चार्जशीट में लिखा है कि ताहिर हुसैन इनमें से कई को पहले से जानते थे। चार्जशीट में हुसैन के अलावा 9 अन्य लोगों का भी नाम है। इन सभी पर हत्या, आपराधिक साज़िश रचने और आईपीसी की अन्य धाराओं में मुक़दमा दर्ज किया गया है।
पुलिस ने कहा है कि उसने दंगों के प्रत्यक्ष गवाहों के बयानों पर भरोसा किया है, जिन्होंने यह बताया कि ताहिर हुसैन 25 फ़रवरी को मौक़े पर मौजूद थे और उन्होंने चांद बाग पुलिया पर खड़ी भीड़ का नेतृत्व किया था।
चार्जशीट के मुताबिक़, ‘गवाहों ने कहा है कि ताहिर के घर से भीड़ पत्थर और पेट्रोल बम फेंककर हिंदुओं को आगे बढ़ने से रोक रही थी।’ पुलिस के मुताबिक़, ‘गवाहों ने यह भी कहा है कि ताहिर हुसैन ने भीड़ को हिंदुओं/काफ़िरों को मारने के लिए उकसाया।’ पुलिस ने मामले में 81 लोगों को गवाह बनाया है।
गवाहों के आधार पर पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया है, ‘25 फ़रवरी की शाम को 5 बजे अंकित शर्मा हिंदुओं के पक्ष की भीड़ से निकलकर ताहिर के घर से कुछ कुछ दूरी पर खड़े लोगों को समझाने के लिए आगे बढ़े। दंगाइयों की संख्या 20-25 थी और वे हथियारों से लैस थे। तभी दंगाइयों ने ताहिर के उकसावे पर अंकित को पकड़ लिया और घसीटते हुए चांद बाग पुलिया की ओर ले गए। इसके बाद धारदार हथियारों से उसकी हत्या कर दी।’
पुलिस ने अदालत को बताया है कि दंगाइयों द्वारा सीटीटीवी कैमरों को तोड़ दिए जाने के कारण उन्हें कोई सीसीटीवी फ़ुटेज नहीं मिली। हालांकि उसके पास तीन लोगों द्वारा एक लाश को नाले में फेंकने का वीडियो है लेकिन वीडियो में दिख रहे लोगों के चेहरे साफ नहीं हैं।
ताहिर हुसैन के वकील जावेद अली ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा, ‘पुलिस ने ताहिर और दंगाइयों के बीच जो लिंक जोड़ा है, वैसा कुछ भी नहीं है और न ही ऐसे कोई कॉल रिकॉर्ड हैं। जब यह घटना हुई तो ताहिर मौक़े पर मौजूद नहीं थे क्योंकि दिल्ली पुलिस उन्हें उनके घर से रेस्क्यू करके ले गई थी।’
पुलिस ने चार्जशीट में कहा, ‘ताहिर ने 24-25 फ़रवरी को 12 पीसीआर कॉल की थीं। पुलिस दंगाइयों की भीड़ के कारण वहां दिन के बजाय रात में पहुंच पाई थी और तब ताहिर अपने घर के सामने ही थे।’ पुलिस के मुताबिक़, ‘ताहिर के आसपास के घरों को नुक़सान पहुंचा था लेकिन उनका घर सुरक्षित था और उनके परिवार वालों को भी कोई चोट नहीं लगी थी।’
पुलिस ने कहा है, ‘उस वक्त वहां के हालात को देखकर ऐसा लगता था कि दंगाई ताहिर को जानते थे। ताहिर दंगाइयों के साथ मौजूद थे और उन्होंने सोच-समझकर भविष्य में होने वाले क़ानूनी पचड़ों से ख़ुद को बचाने के लिए ये पीसीआर कॉल की थीं।’
पुलिस का कहना है कि ताहिर के पास एक लाइसेंसी पिस्टल थी जो खजूरी खास थाने में जमा थी लेकिन ताहिर ने दंगों में इस्तेमाल करने के लिए इसे 22 फ़रवरी को वापस ले लिया था। पुलिस ने दावा किया है कि ताहिर को 100 कारतूस दिए गए थे लेकिन इनमें से सिर्फ़ 64 जिंदा और 22 खाली मिले, बाक़ी कारतूस कहां गए, इस बारे में ताहिर की ओर से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।