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कश्मीर में शांति के लिए ऐतिहासिक पहल का मौक़ा

कश्मीर में शांति के लिए ऐतिहासिक पहल का मौक़ा

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने का कहना है कि हुर्रियत के नेता अब कश्मीर के मसले को बातचीत से हल करना चाहते हैं। तो क्या यह शांति की पहल के संकेत हैं?

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कश्मीर के बदलते हुए हालात पर बहुत ही आशावादी टिप्पणी की है। उनका कहना है कि हुर्रियत के नेता अब कश्मीर के मसले को बातचीत से हल करना चाहते हैं। वे ख़ुद नहीं चाहते कि कश्मीर के नौजवान फिजूल में अपना ख़ून बहाएँ। कश्मीरी नौजवान कौन-से स्वर्ग (बहिरत) के लिए ख़ून बहा रहे हैं? कश्मीर तो ख़ुद स्वर्ग ही है, जैसा कि बादशाह जहाँगीर कहा करते थे। यदि वे अच्छे मुसलमान बनकर यहाँ रहें तो वे एक नहीं, दो-दो स्वर्गों के हक़दार बन सकते हैं। मरने के बाद कौन कहाँ, जाएगा, किसे पता है? यदि कश्मीर में शांति रहे तो वह भारत का सर्वश्रेष्ठ राज्य बन सकता है। इस टिप्पणी के साथ मलिक ने हुर्रियत के प्रमुख मीरवाइज उमर फारुक के इस बयान की भी तारीफ़ की है कि कश्मीरी नौजवान नशीली दवाइयों से दूर रहें।

मलिक के इस बयान ने भारत सरकार और हुर्रियत के बीच संवाद के दरवाजे खोल दिए हैं। हुर्रियत के नेताओं से पी.वी. नरसिम्हा राव और अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार का भी सतत संवाद चलता रहता था, हालाँकि उसका ज़्यादा प्रचार नहीं होता था। उन दिनों हुर्रियत का दफ्तर मालवीय नगर में होता था और मैं प्रेस एनक्लेव में रहता था। हुर्रियत के अध्यक्ष प्रो. अब्दुल गनी बट्ट तथा अन्य नेता अक्सर मेरे घर पैदल ही आ जाते थे और फ़ोन पर हमारे प्रधानमंत्रियों से उनका संपर्क हो जाता था। 

ज़रा याद करें कि इन अलगाववादी नेताओं से उस निरंतर संवाद का ही प्रभाव था कि राव साहब ने लाल क़िले से अपने भाषण में कहा था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन कश्मीर के लिए स्वायत्तता की सीमा असीम है, आकाश की तरह।

यही बात मैं ‘पाकिस्तानी कश्मीर’ के कई प्रधानमंत्रियों को इसलामाबाद और न्यूयार्क में कह चुका हूँ। बेनजीर भुट्टो, नवाज़ शरीफ़ और जनरल मुशर्रफ़ से जब-जब मेरी बात हुई, मैंने उनसे यही कहा कि मैं कश्मीर की आज़ादी का उतना ही समर्थक हूँ, जितना कि भारत और पाकिस्तान की आज़ादी का! कश्मीर न हमारा ग़ुलाम होकर रहे और न ही आपका! लेकिन उसका अलगाव तो उसकी ग़ुलामी के अलावा कुछ नहीं है। मैं हर कश्मीरी को श्रीनगर और मुज़फ़्फ़राबाद में उसी तरह आज़ाद देखना चाहता हूँ, जैसे कि मैं दिल्ली में आज़ाद हूँ या जैसे इमरान ख़ान इसलामाबाद में आज़ाद हैं। 

क्या मोदी-शाह कश्मीर मसला हल कर देंगे?

मेरे लिए हर कश्मीरी की आज़ादी, चाहे वह पाकिस्तान में रहता हो या हिंदुस्तान में रहता हो, उतनी ही क़ीमती है, जितनी मेरी अपनी आज़ादी है। मैं तो चाहता हूँ कि भारत और पाकिस्तान के बीच आज जो कश्मीर एक खाई बना हुआ है, वह एक सेतु बन जाए। कश्मीर का मसला हल हो जाए तो संपूर्ण दक्षिण एशिया को हम दुनिया का सबसे मालदार और सबसे सुखी इलाक़ा जल्दी ही बना सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के लिए यह ऐतिहासिक उपलब्धि होगी कि वे बातचीत के ज़रिए कश्मीर का मसला हल कर दें, जो आज तक कोई सरकार नहीं कर सकी।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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