ट्रंप से दोस्ती का दंभ मोदी को शोभा नहीं देता
इस वक़्त मोदी की अमेरिका यात्रा और उनके 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम पर आलोचनात्मक टिप्पणी करना ख़तरे से ख़ाली नहीं है। चारों तरफ़ ख़ुशफ़हमी का माहौल खड़ा कर दिया गया है। कुछ लोगों को यह लगने लगा है कि भारत ने मोदी के नेतृत्व में अमेरिका पर विजय पा ली है। भारत विश्व विजेता बन गया है। टीवी चैनलों पर सुबह से शाम तक गुणगान हो रहा है। कुछ विशेषज्ञ यह साबित करने मे लगे हैं कि भारत और अमेरिका के रिश्ते में एक निर्णायक मोड़ आ चुका है। और ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत के किसी नेता को इतना मान विदेश में मिल रहा है।
ये तसवीर मोदी के व्यक्तित्व को एक दूसरे स्तर पर ले जाते हैं। पर क्या इससे भारत को फ़ायदा होगा! क्योंकि विदेश नीति में राष्ट्रहित बढ़ाने से अधिक कुछ नहीं है। ऐसे में सवाल इतना-सा है कि भारत को कितना फ़ायदा होगा?
मोदी ने 2019 में एक बड़ी चुनावी जीत हासिल की है। जीतने के बाद उन्होंने अनुच्छेद 370 और तीन तलाक़ जैसे मसलों पर ठोस और साहसिक क़दम उठाये हैं। इस बहाने उन्होंने अपने आप को एक निहायत मज़बूत नेता के रूप में नये सिरे से पेश किया है। इससे ज़्यादा वह अपने हिंदू वोटबैंक को और संगठित करने में कामयाब रहे हैं। एक सचाई और भी है। पिछले पाँच सालों में अर्थव्यवस्था बद से बदतर हुई है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ऐसे बुरे हाल 1991 के बाद पहली बार हुए हैं। चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। बीजेपी को हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में अपनी सरकार बचानी है और दिल्ली में बनानी है।
अगर लोगों का ध्यान रोटी, कपड़ा, मकान और रोज़गार पर गया तो लोकसभा में मोदी की जीत के बावजूद राज्यों में वैसी ही दिक़्क़तें बीजेपी को आ सकती हैं जैसी दिसंबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आयी थीं। लिहाज़ा ह्यूस्टन का 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम जनता को स्वप्न लोक में कुछ समय तक डूबने-उतराने के लिए काफ़ी है। मतदाता ख़ुशफ़हमी में रहे तो फ़ायदा बीजेपी को होगा। और उसे सरकार की नाकामयाबी पर कड़े सवाल पूछने का मौक़ा नहीं मिलेगा।
दूसरे, हमें यह भी सोचना होगा कि डोनाल्ड ट्रंप क्यों इस फ़ंक्शन में आए? अमेरिका में अगले साल राष्ट्रपति का चुनाव है। ट्रंप की हालत बहुत अच्छी नहीं है। कई तरह के आरोप लग रहे हैं। उनके ख़िलाफ़ अमेरिका में महाभियोग लाने की चर्चा चल रही है। उनका दूसरी बार राष्ट्रपति बनना आसान नहीं है। लिहाज़ा उनकी पूरी कोशिश होगी कि जहाँ कहीं से वोट मिले उसे वह बटोर लें। मोदी ने 'अबकी बार ट्रंप सरकार' कह कर भारतीयों को संदेश दे दिया है। ट्रंप के लिए यह मुफ़्त का सौदा बेहतरीन था। न हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा। भारतीय वाक़ई में वोट देंगे, यह लाख टके का सवाल है। पर उन्हें उन भारतीयों से जुड़ने का मौक़ा मिल गया, जो डेमोक्रेटिक पार्टी को वोट देते आए हैं।
मोदी और ट्रंप बड़े 'शोमैन'
जो मोदी और ट्रंप की केमिस्ट्री देख रहे हैं वे शायद यह भूल रहे हैं कि दोनों ही बड़े 'शोमैन' हैं। हर मौक़े का फ़ायदा उठाना और अपने को बड़ा साबित करना इन्हें ख़ूब आता है। डर इस बात का है कि 'हाउडी मोदी' भी कहीं एक और नोटबंदी न साबित हो। हम यह क्यों भूलते हैं कि मोदी ने उसे भी सफलतापूर्वक बेच दिया था। उन्होंने यह कहा था कि नोटबंदी से आतंकवाद ख़त्म हो जायेगा, नक्सलवाद की कमर टूट जायेगी, नशीली दवाओं का व्यापार ठप हो जायेगा और काला धन फुर्र हो जाएगा। हुआ क्या? क्या आतंकवाद ख़त्म हो गया? 'हाउडी मोदी' के अगले दिन ही ख़बर छपी है कि पाँच सौ आतंकवादी कश्मीर में घुसने की तैयारी में हैं। काला धन सारा सफ़ेद हो गया? नक्सलवाद जस का तस है। और नशीली दवाओं का धंधा पंजाब से निकल कर हरियाणा और दिल्ली को अपने चपेट में ले रहा है।
हो सकता है कि मुझे पेशेवर निराशावादी कहा जाए पर हक़ीक़त यह है कि ट्रंप पर भरोसा करना ख़तरे से ख़ाली नहीं है। ट्रंप राष्ट्रपति के साथ-साथ बिज़नेसमैन भी हैं। उन्हें न तो भारत से मुहब्बत है और न ही मोदी से प्यार।
ट्रंप और मोदी की दोस्ती (जैसा कहा जा रहा है) महज खामख्याली है। ट्रंप पर भरोसा करने के पहले हमें देखना होगा कि अमेरिका पाकिस्तान से कैसा रिश्ता रखता है। क्या अमेरिका पाकिस्तान को छोड़ सकता है? अमेरिका कितना ही आतंकवाद का रोना रोये वह पाकिस्तान को छोड़ नहीं सकता। उसे भारत की नकेल कसने के लिए पाकिस्तान की ज़रूरत है। यह अकारण नहीं है कि मोदी से मिलने के थोड़ी देर बाद ही ट्रंप ने प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की तारीफ़ कर दी। जिस इमरान को भारतीय टीवी चैनल 'हाउडी मोदी' वाले दिन ही न जाने क्या-क्या कह रहे थे उसके बारे में ट्रंप ने कहा, ‘इमरान एक महान नेता हैं। और वह भारत पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हैं।’ ट्रंप ने पिछले कुछ दिनों में तीसरी बार यह बात कही है। ट्रंप के पहले किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने इतना खुल कर कभी नहीं बोला। भारत बार-बार कह चुका है कि यह दो देशों के बीच का मसला है। तो फिर ट्रंप बार-बार यह क्यों दोहरा रहे हैं? कहीं अंदरखाने वह भारत पर दबाव तो नहीं बना रहे हैं? अगर ऐसा है तो यह भारतीय मामलों में खुली दखलअंदाजी होगी। आने वाले दिनों में हो सकता है कि भारत को इस मामले में किरकिरी झेलनी पड़े। क्या मोदी और देश इस के लिए तैयार है?
ट्रंप की नज़र भारत के बाज़ार पर
पाकिस्तान का इस्तेमाल अमेरिका ने हमेशा भारत पर दबाव बनाने के लिए किया है। उसकी नज़र भारत के बड़े बाज़ार की तरफ़ है। वह इसमें अमेरिकी कंपनियों के लिए मुनाफ़े का मार्केट देखता है। जिस तरह से चीनी कंपनियों ने भारतीय बाज़ार में पैठ बनायी है वह अमेरिका को खटकता है। ट्रंप ने साफ़ तौर पर कहा है भारत 5जी के लिए चीनी कंपनी व्हाबे से सौदा न करे। अमेरिका ने राष्ट्रीय सुरक्षा का आरोप लगा कर अमेरिका में व्हाबे के प्रोडक्ट को अपने बाज़ार से बाहर करने की कोशिश की है। वह भारत पर लगातार दबाव बना रहा है कि वह अमेरिकी कंपनी से सौदा करे। अमेरिकी सौदा चीन से कहीं ज़्यादा महँगा है।
ट्रंप को इस बात पर भी आपत्ति है कि भारत रक्षा हथियार रूस या दूसरे देशों से क्यों ख़रीदता है। हाल ही में भारत के रूस से एस-400 एयर डिफ़ेंस सिस्टम ख़रीदने पर वह नाक-भौं सिकोड़ चुका है और आर्थिक प्रतिबंध तक लगाने की धमकी दे चुका है। अमेरिका को इससे क्या मतलब कि भारत किससे हथियार ख़रीदे?
ईरान का मसला हाल का है। जब परमाणु हथियार की आड़ में अमेरिका ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया और भारत समेत दूसरे देशों को भी धमकी दी कि वह उससे तेल न ख़रीदे, भारत को मन मार कर अमेरिका की बात माननी पड़ी। यह भारत के लिए घाटे का सौदा है। ईरान के साथ भारत के सदियों पुराने रिश्ते हैं। भारत को ईरान से सस्ते में तेल मिलता रहा। अब भारत को तेल आयात करने के लिए नया देश खोजना पड़ रहा है। यह तेल उसे महँगा भी पड़ रहा है। एक तरह से ट्रंप भारत की बाँह मोदी के रहते मरोड़ने में कामयाब रहे हैं। क्या ट्रंप व्लादीमिर पुतिन के रूस के साथ ऐसा कर सकते हैं! कदापि नहीं।
ट्रंप ने व्यापार में भी दिखायीं आँखें
फिर ट्रंप ने व्यापार में भी भारत को आँखें दिखायी हैं। कुछ महीने पहले उसने जीएसपी के तहत भारतीय सामानों को मिलने वाली छूट भी वापस ले ली। कुछ जानकारों का तर्क है कि इससे भारत को ज़्यादा नुक़सान नहीं होता है। भारत से होने वाले सिर्फ़ 5 बिलियन डॉलर के निर्यात पर ही असर पड़ेगा। ताज़ा आँकड़ों के हिसाब से भारत अमेरिका व्यापार 142 बिलियन डॉलर का है। भारत अमेरिका को 58 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात करता है। पिछले हफ़्ते भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने ट्रंप प्रशासन से अपील की है कि वह जीएसपी को बहाल करे। अगर भारत को इससे कोई ख़ास घाटा नहीं है तो फिर यह अपील क्यों?
ट्रंप एक ऐसे नेता हैं जिनको अमेरिका में गंभीरता से नहीं लिया जाता है। उनके ऊपर कई तरह के नैतिक और अनैतिक आरोप हैं। राष्ट्रपति बनने के पहले कई महिलाओं के साथ शारीरिक बदतमीज़ी करने के लिए वह जाने जाते रहे हैं। ये आरोप गंभीर हैं। 23 सितंबर को न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार डेविड लियोनहार्ट ने ट्रंप के बारे में लिखा, 'वह हर हफ़्ते झूठ बोलते हैं। कभी अर्थव्यवस्था के बारे में तो कभी वोटर फ़्रॉड या फिर मौसम पर ही ...वह अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। और वह हर उस चीज़ के लिए ख़तरा हैं जिसके लिए अमेरिका जाना जाता है।'
अमेरिका के राष्ट्रपति होने के नाते उनसे हाथ मिलाना एक राजनयिक मजबूरी है पर उनसे दोस्ती का दंभ भरना और उस पर गर्व करना भारत जैसे आध्यात्मिक देश के लिए गौरव की बात नहीं हो सकती। यह बात मोदी और देश को समझनी चाहिए।