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आसान नहीं है वामपंथी कवि वरवर राव की रिहाई? 

आसान नहीं है वामपंथी कवि वरवर राव की रिहाई? 

नक्सली विचारधारा के समर्थक रहे वामपंथी कवि वरवर राव की जेल से रिहाई की माँग ज़ोर पकड़ती जा रही है।

नक्सली विचारधारा के समर्थक रहे वामपंथी कवि वरवर राव की जेल से रिहाई की माँग ज़ोर पकड़ती जा रही है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं, कलाकारों, पत्रकारों ने वरवर राव की उम्र और बिगड़ते स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उनकी रिहाई के लिए केंद्र, महाराष्ट्र व तेलंगाना की सरकार से गुहार लगायी है। वरवर राव बुधवार सुबह कोरोना पॉजिटिव पाये गये हैं। 

परिवारवालों ने 81 साल के वरवर राव के स्वास्थ्य को लेकर न सिर्फ चिंताएँ ज़ाहिर की हैं, बल्कि गंभीर आरोप भी लगाये हैं। उनकी पत्नी हेमलता और बेटी पवना का आरोप है कि वरवर राव को जेल में मारने की साज़िश की गयी है। इस समय वरवर राव की हालत इतनी खराब है कि वे ठीक से बोल भी नहीं पा रहे हैं और अपने काम खुद से करने में असमर्थ हैं। 

परिवारवालों के आरोपों के बाद कई लोग खुलकर आगे आये और वरवर राव की रिहाई की माँग ने ज़ोर पकड़ा। बावजूद इसके केंद्र सरकार ने रिहाई को लेकर अभी तक कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है। 

केंद्र ने जिस तरह से वरवर राव की बेल याचिकाओं का अलग-अलग न्यायालयों में विरोध किया है, उससे यह साफ है कि वह उनकी रिहाई के पक्ष में बिल्कुल नहीं है।

सूत्रों की मानें तो, वरवर राव की रिहाई के लिए तेलंगाना सरकार और महाराष्ट्र सरकार की ओर से भी कोशिश न किये जाने का सबसे बड़ा कारण उन पर लगे गंभीर आरोप हैं। वरवर राव पर आरोप है कि वे उन माओवादियों से जुड़े हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश रची है। 

इतना ही नहीं, वरवर राव पर प्रतिबंधित माओवादी संगठनों के नेताओं के संपर्क में रहने, उन्हें सूचनाएँ और धन-राशि पहुंचाने, युवाओं को माओवादी संगठन में शामिल होने के लिए उन्हें उकसाने के आरोप हैं। जाँच एजेंसियों का कहना है कि साल 2018 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जाँच के दौरान वरवर राव के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले और इसी वजह से उन्हें गिरफ्तार किया गया है। 

इसी जाँच के दौरान पुलिस को माओवादियों की एक चिट्ठी मिली, जिससे प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश का खुलासा हुआ। इसी चिट्ठी में वरवर राव का भी ज़िक्र है। ऐसे में राव की रिहाई की संभावनाएँ बहुत कम हैं। वैसे तो राव यह सफाई दे रहे हैं कि इस मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है। 

बड़ी बात यह है कि राव पर ग़ैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के सख्त प्रावधानों के तहत मामले दर्ज हैं। केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने जैसे गंभीर आरोप हैं। 

चूंकि मामला प्रधानमंत्री से जुड़ा है, इसलिए तेलंगाना और महाराष्ट्र सरकार राव की रिहाई के बारे में कुछ करना तो दूर, कुछ कहने से भी बच रही हैं।

वरवर राव का संबंध तेलंगाना से है और वे फिलहाल महाराष्ट्र की नवी मुंबई की तलोजा जेल में हैं और उनकी गिरफ्तारी में महाराष्ट्र पुलिस की बड़ी भूमिका है। इसी वजह से अलग-अलग सामाजिक कार्यकर्ता और कलाकार इन दोनों राज्यों की सरकारों पर दबाव डाल रहे हैं। चिट्ठियाँ केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी को भी लिखी जा रही हैं, क्योंकि वे भी वरवर राव के गृह राज्य तेलंगाना से ही हैं। 

महाराष्ट्र में जब पिछले विधानसभा चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ था, तब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपियों पर नरम रुख़ अपनाने का संकेत दिया था। चूंकि प्रधानमंत्री से जुड़े मामले की जाँच नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी के हाथों में है, ऐसे में इन सभी ने भी अब चुप्पी साध ली है। 

विवादों में रहे हैं राव 

वैसे, वरवर राव शुरू से ही नक्सलियों और माओवादियों का समर्थक होने की वजह से विवादों में रहे हैं। उन्होंने ‘विरसम’ के नाम से मशहूर ‘विपलवा रचयतलु संघम’ यानी क्रांतिकारी रचनाकार संघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संघ से कई वामपंथी कवि, आलोचक, लेखक जुड़े। इस संघ के कर्ता-धर्ताओं पर नक्सलियों का समर्थन करने और नक्सली विचारधारा को आगे बढ़ाने का आरोप लगा। 

वरवर राव खुद एक कवि हैं। मार्क्सवादी आलोचक के रूप में उनकी खास पहचान है। वे प्राध्यापक भी रहे हैं। कई सालों तक उन्होंने कॉलेजों में साहित्य पढ़ाया है। सवर्ण जाति से होने के बावजूद वरवर राव को दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जाति के लोगों के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले नेता के रूप में काफी शोहरत मिली। 

नक्सल-आंदोलन समर्थक की छवि

मानवाधिकार संरक्षण के लिए उन्होंने कई आंदोलन किए। लेकिन शुरू से ही उनकी छवि नक्सल-आंदोलन समर्थक के तौर पर रही है। तथा-कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ों, न्यायिक हिरासत में नक्सलियों की मौत के खिलाफ भी वरवर राव हमेशा मुखर रहे हैं। अलग-अलग आंदोलनों में हिस्सा लेने के लिए वरवर राव कई बार गिरफ्तार किए जा चुके हैं। 

आपातकाल के दौरान भी उनकी गिरफ्तारी हुई थी। ज़्यादातर गिरफ्तारियां नक्सलियों के समर्थन में आंदोलन करने पर ही हुईं। जब-जब आंध्र प्रदेश सरकार ने नक्सलियों से बातचीत करने, शांति-समझौता करने की पेशकश की तब-तब वरवर राव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस बार वरवर राव महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के बाद सुर्खियों में आये। भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक सम्मेलन के बाद दलितों और कुछ हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष हुआ, हिंसक झड़पें हुईं। हिंसा में एक व्यक्ति की जान भी गई। 

भड़काऊ भाषण देने का आरोप

महाराष्ट्र पुलिस का आरोप है कि कुछ नेताओं ने भड़काऊ भाषण दिए और इसी वजह से भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई। हिंसा की आग महाराष्ट्र के कई इलाकों में फैली। कई जगह अप्रिय घटनाएँ हुईं। पुलिस ने पहले सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को गिरफ्तार किया। इसके बाद वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस की गिरफ्तारी हुई। 

सामाजिक कार्यकर्ताओं की इन गिरफ्तारियों के खिलाफ कई लोगों ने आवाज़ उठाई और इसे प्रजातंत्र के लिए घातक भी करार दिया। इन सभी की रिहाई के लिए कोशिशें हुईं। लेकिन केंद्र के सख्त रवैये की वजह से रिहाई की मांग धीरे-धीरे कमजोर पड़ गई। लेकिन अब वरवर राव के बिगड़ते स्वास्थ्य की वजह से उनकी रिहाई की मांग हर तरफ से उठनी शुरू हुई है।

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