दिल्ली में ज़हरीली हवा: समाधान तब निकलेगा न जब इसे समस्या मानेंगे?
दिल्ली में ज़हरीली हवा पर फिर से हंगामा शुरू हो गया है। यह हर साल होता है। बिल्कुल रस्म अदायगी की तरह! ऐसा जैसे इस पर विवाद न हो तो पता ही नहीं चले कि सर्दी आ गई! आख़िर क्या वजह है कि सालों साल वही समस्या चली आ रही है समस्या भी सामान्य नहीं है। साफ़ हवा की समस्या। साँस लेना दूभर हो जाने की समस्या। वह चीज जो ज़िंदा रहने के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। आख़िर यह समस्या क्या है और इसका समाधान क्यों नहीं हो रहा है
इस साल इस पर फिर से विवाद उठा है। यह इसलिए कि सर्दी का मौसम शुरू भी नहीं हुआ है और दिल्ली में प्रदूषण बढ़ गया है। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई औसत रूप से 250 के आसपास तक पहुँच गया है। 201 से 300 के बीच एक्यूआई को ‘ख़राब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत ख़राब’ और 401 और 500 के बीच होने पर उसे ‘गंभीर’ माना जाता है। एयर क्वॉलिटी इंडेक्स से हवा में मौजूद 'पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषण के कणों का पता चलता है। पीएम यानी पर्टिकुलेट मैटर वातावरण में मौजूद बहुत छोटे कण होते हैं जिन्हें आप साधारण आँखों से नहीं देख सकते। 'पीएम10' मोटे कण होते हैं।
तो सवाल है कि दिल्ली में प्रदूषण इस स्तर तक कैसे बढ़ गया हर साल सबसे ज़्यादा जिसपर हंगामा होता है वह है पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा पराली का जलाया जाना। अब तो सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को देखने के लिए पूर्व जज के नेतृत्व में मॉनिटरिंग कमेटी गठित कर दी है। लेकिन सवाल है कि क्या इससे दिल्ली का प्रदूषण कम हो जाएगा
इसको समझने के लिए यह समझना होगा कि आख़िर दिल्ली में प्रदूषण के कारण क्या-क्या हैं दिल्ली में ख़राब हवा के लिए मुख्य तौर पर इन्हें ज़िम्मेदार माना जाता है-
- औद्योगिक इकाइयाँ
- सड़कों पर लाखों वाहन
- दिल्ली-एनसीआर में निर्माण कार्य
- कार्यालयों में जनरेटर
- थर्मल पावर प्लांट
- पड़ोसी राज्यों में पराली में आग
- फाइव स्टार होटल और हज़ारों ढाबे
अब इन समस्याओं को देखिए। दिल्ली में छोटी-बड़ी हज़ारों औद्योगिक इकाइयाँ हैं, जिनमें बड़ी संख्या में कोयला इस्तेमाल होता है। हज़ारों कार्यालयों में ज़हरीला धुआँ उगलते जनरेटर हैं। दिल्ली-एनसीआरी में बेतरतीब तरीक़े से चलाए जा रहे निर्माण कार्य हैं जो पीएम 2.5 और पीएम 10 के सबसे बड़े कारकों में से एक है। बदरपुर थर्मल पावर जैसे प्लांट हैं, हज़ारों ढाबे और बड़े फाइव स्टार होटल हैं।
लाखों दोपहिया और चार पहिया वाहन हैं, हर दिन नई कारें सड़कों पर आ रही हैं। क्या इन सबको लेकर कोई सवाल किया जाता है क्या इन पर लगाम लगाने में सरकार की कोई रुचि है
दिल्ली में प्रदूषण में कौन से कारण कितने ज़िम्मेदार हैं इसके बारे में अलग-अलग समय पर अलग-अलग रिपोर्टें आती रही हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, सर्दी के मौसम में उद्योगों से 27 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है, जबकि वाहनों से 24 प्रतिशत, निर्माण कार्यों व दूसरे कारणों से उड़ने वाली धूल से 25 प्रतिशत तथा आवासीय क्षेत्रों से 9 प्रतिशत प्रदूषण फैलता है। पराली जलाने के कारण और बायोमास से 4 प्रतिशत प्रदूषण उत्पन्न होता है। हालाँकि पिछले साल जब पराली जलाया जाना अपने शिखर पर था तब सिस्टम ऑफ़ एयर क्वालिटी वेदर फ़ोरकास्टिंग एंड रिसर्च (एसएएफ़एआर) की रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली में 44 फ़ीसदी प्रदूषण आसपास के राज्यों में पराली जलाने के कारण था।
सरकार की कार्रवाई कैसी
यही कारण है कि जब हंगामा होता है तो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने को रोकने की माँग की जाती है। फिर दीपावली के पटाखे जलाने पर दोष मढ़ा जाता है जबकि इसके प्रदूषण का असर तात्कालिक होता है। कुछ दिनों में ही इसका असर ख़त्म हो जाता है। आख़िर में दिल्ली में प्रदूषण फैलने के कारणों पर चर्चा होती है। औद्योगिक इकाइयाँ बंद की जाती हैं, डीजल वाले जेनरेटर बंद किए जाते हैं, निर्माण कार्य प्रतिबंधित किए जाते हैं और ऑड-इवन फ़ॉर्मूला लागू किया जाता है। लेकिन दिक्कत यह है कि ऐसे उपाय तब किए जाते हैं जब समस्या काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाती है।
यह सब देखने से लगता है कि हवा, जो ज़िंदगी के लिए सबसे ज़रूरी चीज है, उसके प्रति सरकारों का रवैया कैसा है। ऐसा तब है जब इसके बहुत घातक परिणाम आते रहे हैं।
पीएम 2.5', 'पीएम 10', सल्फ़र डाई ऑक्साइड जैसे प्रदूषक स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़तरनाक होते हैं। ये नाक या गले से फेफड़ों में जा सकते हैं और इससे अस्थमा जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। डॉक्टर कहते हैं कि इससे दमा, कैंसर और ब्रेन स्ट्रोक जैसी घातक बीमारियाँ हो सकती हैं। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट भी कहती है कि वायु प्रदूषण से कैंसर, अस्थमा, फेफड़े का इन्फ़ेक्शन, न्यूमोनिया और साँस से जुड़ी कई गंभीर इंफ़ेक्शन हो सकते हैं।
ऐसी ख़तरनाक बीमारियों के कारण मौत तक हो जाती है। कुछ महीने पहले आई एक रिपोर्ट में कहा गया था कि दिल्ली में प्रदूषण से होने वाली बीमारियों से हर रोज़ कम से कम 80 मौतें होती हैं। क्या यह चेतने के लिए काफ़ी नहीं है।
बच्चों और वृद्ध पर ज़्यादा असर
सामाजिक काम करने वाले एक संगठन ग्रीनपीस ने भी भारत में प्रदूषण पर एक रिपोर्ट दी थी। इसकी रिपोर्ट में कहा गया था कि हवा को प्रदूषित करने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड का दुनिया में सबसे ज़्यादा उत्सर्जन भारत में होता है। यह सबसे ज़्यादा दिल्ली-एनसीआर, उत्तरप्रदेश का सोनभद्र, मध्य प्रदेश में सिंगरौली, ओडिशा में ताल्चेर-आंगुल में होता है।
पहले भी वायु प्रदूषण से मौत की रिपोर्टें आती रही हैं जो साफ़-साफ़ कहती हैं कि इससे बच्चों और वृद्ध पर ज़्यादा ख़तरनाक असर होता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने 2016 की एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत जैसे देशों में 98 फ़ीसदी बच्चे ज़लरीली हवा से प्रभावित होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, उस वर्ष हवा प्रदूषण के कारण भारत में एक लाख से ज़्यादा बच्चों की मौत हो गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य के सबसे बड़े ख़तरों में से एक है। पाँच साल से नीचे की उम्र के 10 में से एक बच्चे की मौत हवा प्रदूषण के कारण हो जाती है।
2018 में आई एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, 2016 में प्रदूषण के कारण दिल्ली में क़रीब 14800 लोगों की समय से पहले मौत हो गई थी। प्रदूषण से मरने वालों के मामले में दिल्ली सबसे अव्वल रही थी। इसके बाद मुंबई में 10500, कोलकाता में 7300 और चेन्नई में 4800 लोगों की मौत हो गई थी।
पिछले वर्षों की ये रिपोर्टें सबक़ होनी चाहिए, पर लगता नहीं है कि किसी की दिलचस्पी इसमें ख़ास है। दिल्ली-एनसीआर में हर तरफ़ धुआँ-धुआँ सा है। धुआँ क्या, पूरा का पूरा ज़हर सा है। लेकिन इसकी फ़िक्र किसे है! सरकारी प्रयास तो हमेशा 'चुनावी मोड' में ही होते हुए लगते हैं।