त्रिपुरा में भाजपा की राह कितनी आसान?
इस साल के अंत तक नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल वाले होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इन्हें राजनीतिक दलों के शक्ति परीक्षण के तौर पर देखा जा रहा है। नौ राज्यों में होने वाले चुनाव की शुरुआत आज शाम को चुनाव आयोग की उत्तर पूर्व के तीन राज्यों त्रिपुरा मेघालय और नागालैंड में चुनाव कराये जाने की घोषणा कर दी गई है। बीजेपी जहां अपने पैर फैलाने के लिए और बाकि दल अपनी खोई प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए चुनाव में उतरेंगे।
आगामी जिन तीन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें त्रिपुरा सबसे अहम है। इसका कारण कि वर्तमान में वहां बीजेपी की सरकार है। यह उत्तर पूर्व के किसी राज्य में उसकी पहली सरकार है। पिछले चुनाव में बीजेपी, सीपीएम और उसके करिश्माई नेता माणिक सरकार को हराकर सत्ता मे आई थी। माणिक सरकार वहां पिछले 20 साल से सत्ता में बने हुए थे। बीजेपी की जीत और माणिक सरकार की हार को सीपीएम के खत्म होते जनाधार में आखिरी कील के तौर पर समझा गया।
इस बार के चुनाव में जहां कांग्रेस औऱ सापीएम मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं वहीं बीजेपी अकेले चुनाव के मैदान में जा रही है। गंठबंधन के सहारे जहां कांग्रेस औऱ सीपीएम अपना खोया जनाधाऱ पाने की कोशिश करेंगे तो वहीं बीजेपी की कोशिश रहेगी की पूर्वोत्तर की इकलौती सरकार को वापस में सत्ता में ला सके।
पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी की सरकार बनाए रखना बीजेपी के लिए इसलिए भी जरूरी है कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के काम करने के लिए मुफीद जगह है। संघ, मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण जैसे मुद्दों को पूर्वोत्तर के राज्यों के जरिये हवा देता रहता है जो उसके लिए उत्तर भारत की राजनीति में फायदा पहुंचाते हैं।
त्रिपुरा 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जिसने 43.5 प्रतिशत वोट और 36 सीटें पाकर बहुमत प्राप्त किया। पिछले 27 साल से सत्ता पर काबिज माणिक सरकार की पार्टी सीपीएम 42.22 प्रतिशत वोट और 16 सीटें पाकर दूसरे नंबर पर रही। तीसरे नंबर पर इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा रही जिसे 7.38 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 8 सीटों पर जीत मिली। सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ा जो 2013 के विधानसभा चुनाव में दूसरे नम्बर पर थी। इस चुनाव में चौथे नम्बर पर खिसक गई, जिसे केवल 1.79 प्रतिशत वोट मिले।
पिछले चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को ध्यान में रखकर देखा जाए तो इस बार कांग्रेस और सीपीएम गठबंधन मजबूत स्थिति में है, बशर्ते वे पिछले चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को बरकरार रख पाएं तो यह बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। पिछली बार के चुनाव में बीजेपी को 43.5 वोट मिले थे जबकि सीपीएम औऱ कांग्रेस को सयंक्त रूप से लगभग 44 प्रतिशत, जोकि बीजेपी के वोटों से .5 प्रतिशत ज्यादा है। बीजेपी और सीपीएम के वोट प्रतिशत में महज 1.25 प्रतिशत मामुली अंतर है। किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रही इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, जिसे 7.38वोट मिले थे, इस बार के चुनाव में गेम चेंजर की भूमिका निभा सकती है। देखना यह वह होगा इस चुनाव में उसका खुद का प्रदर्शन कैसा रहता है, अगर वह अपना वोट बरकरार रख पाती है तो वह चुनाव में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
नागालैंड साठ सीटों वाले नगालैंड में नेफ्यू रियो के नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी और भाजपा गठबंधन की सरकार है। एनडीपीपी का गठन 2017 में ही किया गया था जिसने एक साल के भीतर बीजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बना ली। चुनाव में दोनों ही पार्टियों को क्रमश: एनडीपीपी 18 और भाजपा ने 12 सीटें जीती थीं, जोकि बहुमत से एक थी। इसके लिए जेडीयू को साथ लाकर सरकार का गठन किया। चुनाव में सबसे जीतें 27 सीटें एनपीएफ को मिलीं थीं। वोट प्रतिशत के मामले में भी एनपीएफ ही सबसे बड़ी पार्टी रही जिसे 39.1 प्रतिशत वोट मिले। बीजेपी के साथ वाली एनडीपीपी को 25.4 प्रतिशत और बीजेपी को 15.4 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। एनड़ीपीपी 40 और भाजपा 20 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ेगी, इसकी घोषणा पिछले साल ही संयुक्त रूप से दोनों पार्टियों ने कर दी थी।
मेघालय नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीईपी) को 20.8 प्रतिशत वोट 19 सीटें मिलीं। इसने पीडीएफ 8.3 प्रतिशत वोट और 4 सीटें तथा एचएसपीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई। इन्होंने संयुक्त रूप से मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस (एमडीए) बनाया। 2018 में हुए राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे पार्टी बनकर उभरी जिसने यहां पर 28.8 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 21 सीटें जीतीं लेकिन सरकार बनाने में कामयाब नहीं हुई।